लिखो है। कर्णवलूका-कर्णनाद १२७ कर्यजन्तका (सं० स्त्री०) कर्णस्य कर्ण वा नलूका उसके पीछे ही कर्णदेव सविस्तृत टिकराज्य पा कर व, पमि.। कर्ण कोटा, कनखजरा। दिग्विजयकी उच्चायासे निकल पड़े। इन्होंने गुज कनौका (सं० स्त्री०) कर्ण जलौकिय । कण रातसे बङ्गालतक समय देय जीता। कर्णदेवको कोटी, कनसतायो। समामें गङ्गाधर कविका बड़ा पादर था। फिर कर्ष जाप (पु. ) गुप्तसंवाद, कानाफूसी । चोड़, कुरुः इण, गौड़, गुर्जर और कोरके राजा कजा (सं० को०) कणोशों रोग, कामकी एक इनकी हाजिरी में रहते थे। नागपुस्प्रयस्तिके अनु- बीमारी। प्रकुपित दोष थोत्र, पति, प्राण और सार जिसे देशकै अन्य राजावौन सताया और कने वदनमें मर डाल देते हैं। उनसे कान पक और रोगी अपने अधीन बनाया था, उसे मालवके उदयादित्यने बधिर पड़ जाता है। (सहव) छोड़ाया। कमिश्चके प्रबोधचन्द्रोदय और अन्य कर्ण नाह (सं० की० ) कर्णस्य भूनम, कर्ण लाहम् । शिलालेखमें लिखा है-"चन्देल कीर्तिवर्मा सेनापति कर्यमूल, कानको जड़। गोपालने कर्यको पराजय. किया था। हेमचन्द्रके वर्ष जित् (सं० पु.) कर्ण जितवान्, कर्ण-नि-हिए। वचनानुसार यह पहिलवाड़ने २य भीमदेवसे अन्जन। इन्होंने कयं को नीता था। हार गये। फिर विष्हणने भी विक्रमादेवचरितमें कर्ण मोरक (सं० क्लो. ) क्षुद्र जोरक, कोटा जीरा । पथिमोय चालुक्य एम मोमदेवसे इनके हारनेको वात कन्योति (सं.स्त्री.) कस्कोटा, कामकी घुम्गो । कर्पतः ( अध्य.) कर्ण से पृथक, कानसे दूर कर्णदेव (सं. पु.) एक प्रसिद्धचालुक्य राजा यह वर्ष ताल (सं० पु. ) कणे ताल: ताड़ना, ७तत् । पनहिवाड़ाधिपति भीमदेवके पुत्र थे। राज्य काउ कण साड़ना, कानको फटकार। संवत् ११२०-११५. रहा। इनके पुत्र का नाम नय- कर्ण तीर्थ (सलो. ) तीर्थविषेष । (उन्नीलतन्त्र) सिंह सिदराज था। इसो वंयमें दूमर कर्ण देव भी कर्ष दर्पण (पु.) कणे दर्पण इव, उपमिल। हुये। वह सारङ्गदेव पुत्र थे। उन्होंने संवत् १३५३से ताइट नामक कर्णभूषणविशेष, कानमें पहननेकी १३९० तक गुजरातके पनहिंसवाड़में राजत्व किया। एक वायी। कर्णदेवता (सं० पु.) थोत्रेन्द्रिय अधिगति वायु । 'कर्ण दुन्दुभि (सं० स्त्रो०) कणे कर्णाभ्यन्तरे दुन्दुभिरिष कर्णधार (सं० पु.) कर्णमरिच धारयति, कार्य-. तत्तुल्य ध्वनिजनकलात्। शतपदी, कनखजरा। पण ण्यन्तात् अच वा। १ नाविक. मलाह। (नि.) ‘कर्णदेव-चेदिराजवंशके एक अद्वितीय महावीर और २ दुःखादि निवारक, तकलीफ वगैरह मिटानेवाला। दिग्विजयो राजा। यह कलचुरि राना गानेयदेवके "पधारा धियो शून्येव प्रविभातिके । पुत्र और उत्तराधिकारी थे। इण-राजकुमारी भावन- गते दशरथे खग रामै चानन्यमाथित " (रामायय शब१०) देवीसे इन्होंने विवाह किया। इन्होंने कर्णावती नगर | कर्णधारता (स. स्त्री०) नाविकका कार्य, मलाही। बमाया; और पाडा, मुरल, कुङ्ग, वन, कलिङ्गः / कर्ण धारिगो (से. स्त्री) कर्ण भन्यजीवापेक्षाया कौर और इणक राजाको वशीभूत किया था। विपुलं धाति, कर्ण-पिनि डीप । इस्तिनो, इंयिनी। कर्ण देवके पिता गाङ्गेयदेवने बुंदेलखण्डसै पयिम इसके कान दूसरे जीवको अपेक्षा बड़े होते हैं। कन्नौजतक राज्य किया। उन्हींके समय इन्होंने प्रथम कर्णनाद (सं.पु.) कर्णस्रोतोगत रोग, कानको मगधपर माक्रमण मारा था। किन्तु दोपहार प्रतीय एक बीमारी नत्र वायु नी डोके मार्गसे इंट जाता, के यबसे सन्धि हो गयो। १.४. ई.को प्रयागके तब कर्य में पहुंच भेरी, मृदङ्ग और शवत् नाद सुप्रसिद्ध अध्यक्ट मूलपर गाङ्गेयदेवने प्राण छोड़ा सगाता है। (माधवनिदान, मुन्नत) सर्षपतेश अध या। (Memoira, A. S. B.Vol. III. Vol. p.11) अपामार्ग नचा पौर कलाके माय तितेर पका
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१२६
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