कर्णवालिस-कर्णविट कारक अंगरोंके अधीन रहने की बात ठहरी थी।। अत्याचार देखाले थे। म्बाई कर्णवानिस इन मन बहुत दिन तक अधिकार न पाने पर १७८८ ई०को विषयों का अनुसन्धान लेने लगे। अन्तको तालुकदारोंसे इन्होंने कपतान कनवयेको दूतखरूप भेज दिया। इन्होंने एक नियम किया था। यह दशसान्चा बन्दोबस्त किन्तु निज़ामने कुछ न सुना। लार्ड कर्णवालिसने कहाता है। शिन्तु इस नियम मो प्रसुविधा देख पन्तको युद्धका भय देखा सैन्य प्रेरण किया। निजाम- लार्ड कर्य वालिसने जमीन्दारों को चिरकादके लिये ने शान्त भावसे वश्यता मानी और टीपू सुलतानके भूखामित्व दिया और गवरनमेण्टके साथ करका पाससे कितना ही राज्य छोड़ा लेनेको अंगरेजोसे प्रबन्ध किया। यही चिरस्थायी बन्दोवस्त कहाता है। सहायता मांगो। फिर उन्होंने टीपूको डरानके लिये १७५३ ई० को २२वौं मार्चको यह वन्दोवस्त हुवा या। एक कुरान भेज कहलाया था-'प्रभूत विक्रम अंग पहले विचारक और तहसीलदार या कलेकरवा रेमि विवाद आवश्यक नहीं जंचता। एक धर्मा. काम एक ही व्यक्ति करता था। इन्होंने इन दोनों वलम्बी रहते हम दोनों के विवाद मिटानको दूसरेको कार्य पर दो खतन्त्र व्यक्ति रखनेको व्यवस्था बांधी। मध्यस्थता मानना क्या अच्छा है।' टोपूने उत्तर दिया, लार्ड वालिसने ही जिले मिले दीवानी प्रदा- "यदि आप अपनी कन्यासे हमारा विवाह कर दें, तो लत खोली थी। फिर दीवानी प्रदानतको प्रपोच हम भी आपकी बात मान लें। निज़ाम इस पर बहुत सुननेको दूसरी चार प्रदाचते बनौं। पपीनी प्रदा- बिगड़े थे। फिर भयका युद्ध रक न सका। मसूली. लाके विचार जाँचनेका भार कलकत्त को सदर पहनको सन्धिके अनुसार अंगरीन निवाम पक्षमें टीपूरी दीवानी अदालतपर पाया। फिर निजामतको पदा- बनेर खोकत हुये। टीपूके साथ विवादका दूसरा लतके प्राइनकानन भी बहुत कुछ बदल गये। मी कारण था। मङ्गलरके सन्धिपत्रानुसार विवाहोड़ १७८३ ई.के पलोबर मास यह बदेवको परे अंगरेजोंका रचित राज्य निर्दिष्ट हुवा। विवाहोड़के थे। इनके पीछे दश-साता और चिरस्थायी बन्दोबस्नको रामाने पोसन्दामोंसे करतानर और पायकोटा प्रथा स्थिर करनेवाले सर खान सोरने भारत मामक दो नगर खंरीदे। टीपूने यह क्रय न माना और कोचिनराजका पच ले विवाहोड़से युद्ध ठाना था। लार्ड देशमें जाकर बार्ड कर्णवालिसने महासन्मान वर्ष वालिसने विवाहोड़के साहाय्यार्थ परिकर बांधा। और माचिस उपाधि पाया था। १९५८ को या युद्ध होने सगा। १७८८ को जनरल पावरने पायलण्डके शासनकर्ता बने।- वहां भी बाई कर उपकूलस्थ काननका एक प्रदेश पधिकार किया। वालिस थान्त भावसे विद्रोहादि मिटाने पर डोक- प्रथम महिसरयुद्ध इसासे बन्द हो गया। प्रिय हो गये। १८०१०को राजदूत बन यह प्रान्स बार (१९८१ ई.) लार्ड कर्णवालिस स्वयं सेनापति ( फरासीस) पहुंचे थे। इन्हींको मध्यस्थतासे बन लड़ने घले। इस युद्धमें टोपू हारे थे। किन्तु इन्हें एमिन्मको सन्धि स्थापित हुयी। मो खायके प्रभावसे सम्य पं जय न मिला और ससैन्य १८.५०को यह फिर भारतके रात्रप्रतिनिधि पोछे लौटना पड़ा। अन्तको मराठोंके साहाय्यसे फिर बने थे। यहां प्रगत मास.प'चते हो चाई कर एर पता। टोपूने वाध्य हो सन्धि कर ली वालिस एक दल सैन्यके अधिनायक हो पश्चिमोत्तर महिसरमें इतकार्य हो इन्होंने शासनविधिक । प्रदेशको चले पौर पत्तोवर मास गानीपुर पीड़ित संस्कारयर मन लगाया। उस समय कर लेनेका पड़े। उसो मासको ५वी तारीखको इनका सत्व, प्रबन्ध बहुत विशाल था। अकबरने पैमायश करा हुवा। गाजीपुरमें लार्ड वर्षवासिसको काबनी है। भूमिका जो कर ठहराया, वही बरावर चला आया। वर्णविद् (संस्बी) कच कर्ण बाता वा विट् । पर सेनेवाले कार्य वंशानुक्रम पचा नाना प्रकार कमल, कामका मेला - भाधनका भार उठाया। द्वितीय
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१३१
दिखावट