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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१३८

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--- काटिक १३६ 'मदुराके युहमें उनका पराजय हुवा। किन्तु उन्होंने मांस वा सबको अपने साथ ले भारत पा पहुंचे। • त्रिचनापनी पहुंचते ही फरासीसी सैन्यको उखाड़ उन्होंने पाते हो अंगरेजोंका सेण्ट डेविड दुर्ग पाक- डाला। फरामोसौ सैन्याध्यक्षने हार कर त्रिचनापल्ली मण किया था। एडमिरल टिभेन्सको अधीनस्य प्रकारेज अंगरेजों को सौंपी। इसी बीच बन्दोबास नामक सेनाने उन्हें रोकनेको किया, किन्तु उसका कोई फन स्थानके भासनकर्ताने अंगरेजीको राजख देना अखी न हुवा । लालीने दुर्ग अधिकार कर मन्द्राजपर चढ़ना 'कार किया। करनल पालडार क्रन उनके विरुद्ध चाहा था। किन्तु आवश्यक पर्थ न मिलने से वह सङ्कल्प बढ़े और नगर घर पड़े थे। किन्तु फरासीसी बन्दी. जैसेका तैसा ही बना रहा। फिर प्रथं सग्रहके लिये वासके शासनकर्ताका पक्ष ले अंगरेनोंसे लड़नेकी उन्होंने तक्षोरराज-प्रदत्त ५६ चाख रुपये का तम- अग्रसर हुये, जिससे कप्तान आरडार न अपना स्मक चुकानेको दौड़ धूप लगायो, किन्तु उसमें भी 'अवरोध छठा चलते बने। फिर मराठोंने वहांके कोई सिद्धि न पायो। तमोरके राजाने अंगरेजोको नवाबसे जा राजस्वको चौथ का बाकी ४ लाख रुपया मन्त्रणा पड़ रुपया देनेपर वृथा विलम्ब डाला था। मांगा था। किन्तु नवाब उस समय इतना रुपया इसी अवकाशमें अंगरेजों को नौ-सेना भा पहुंची। कहां पाते। वह नाना भनुनय विनय करने लगे। लालीने वाध्य हो मेण्ट डेविड दुर्गका अवरोध छोड़ा 'अन्तको महाराष्ट्रीय साड़े चार लाख रुपयेमें समस्त था। लानीने किवेलरका एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर 'ऋण निबटानेपर सम्मत हुये। उस समय पठान तोड़ पूजक ब्राह्मणों को तोपसे उड़ा दिया। इसी 'नवाव दाक्षिणात्यके सूवेदार और मराठा-नायक समय फरासीसी सेनानी बुसो निजाम राज्यमें महा- “सुरारी रावकी अधीनता अधिक मानते न थे। सुतरां समादरसे रहते थे। लालौने उन्हें बोला भेना । बुझीके उन्होंने अंगरेजीसे कहता मेजा-हम मराठौके लालोक निकट पहुंचते ही उत्तर-सरकारके फरामोसो 'विरुद्ध पापको साहाय्य देनेपर प्रस्तुत है। किन्तु अधिकारमें गड़बड़ पड़ा था। वियाखपतनके राजा अगरेज उनसे वैसी सन्धि स्थापन कर न सके। कारण प्रानन्दराजने फरासीको अधिकार पाक्रमण किया। इस समय महाराष्ट्र अंगरेजोंसे सदय व्यवहार रखते किन्तु भविष्यत्में फरामोसो अाक्रमणसे राज्यरक्षाको थे। इसी प्रकार एक मास बीतनेपर दूसरे मास (जून : चिन्तापर वह घबरा उठे। पन्तको अन्य उपाय न देख १७५७ ई० ) कप्तान कालियडने फिर मदुरापर चढ़ने- उन्होंने बङ्गानसे क्लाइवका साहाय्य मांगा था। लाइवने को उद्योग लगाया। युहम अंगरेजोंको विस्तर पावश्यक सन्धि ठहरा उत्तर-सरकारसे फरामोसियों को 'क्षति हुयी और प्रथम प्राक्रमणसे कोई बात न बनी। भगाने के लिये करनल फोर्ड को २ इनार सिपाही, किन्तु कालियड उतनी क्षति उठा भी युदसे शान्त न ५०० गोरे और ६ तोपोंके साथ राजमहेन्द्रोको ओर हुये और ८वीं भगस्तको नगरमै घुस पड़े। फिर भेजा। राहमें फरासीसी सेनानी कनफलाङ्गाने उतने ही उन्होने शासनकर्तासे १७०००० रु. बाकी राजख सैन्यके साथ उन्हें हरा सब तो छोन लौं। किन्तु फोर्ड पाया था। इसके पीछे भी अंगरेज़ मदुरा राज्यके उससे दुःखित न हो कनफलाङ्गके लोटते हो पोछे दौड़ 'क्षुद्र क्षुद्र दुर्ग भारमण करते रहै। किन्तु किसी पड़े। रानमहेन्द्री जा उन्होंने वहां किसीको पाया पक्षपर जय पराजय स्थिर न हुवा। न था। सुतरां वह ससैन्य मछचोपत्तनकी ओर बढ़े। इसी समय फिर युरोपमें अंगरेज-फरामोसी लड़ बीच में अनेक स्थल पर भानन्दराजने वाधा डालनेकी पड़े। फरासीसियोंने काउण्ट डि-खाली नामक एक. चेष्टा लगायौ थी। किस्तु अन्तको (छठी मार्च १७५८ जन विख्यात सैनिकको सेनाका नायक बना एक दल ई०) फोर्ड अपने दलके साथ मछलीपत्तन पहुंच -नो-सेनाके साथ भारत भेजा। लालीके साथ निजका भी गये। कनफागने निजामसे साहाय्य मांगा । निजा- एक सहस्न पाईरिश सैन्य था। १७५८ के भने। मने भी साहाय्य देना स्वीकार किया। इधर फोर्ड के