२९, १३८ कर्णाटक-काटिक २ पधखर और ३८ व्यञ्जन हैं। किन्तु विशुद्ध कर्णा २ गदेव (नान्यपुन) ११ वर्ष। टोके ४७ ही वर्ण रहते हैं। बाकी ८ वर्ण संस्कृत ३ नरसिहदेव (गड़ के पुत्र) शब्दोंका उच्चारण निकालनेको बने हैं। संस्कृ तादि ४ मदेिव (नरसिपके पुत्र) भाषाकी भांति कर्णाटीमें भी यथेष्ट भित्ररूप युत्ताक्षर ५ रामसिइदेव (शक्तिक पुत्र) ५८ ६ इरिदेव। विद्यमान हैं। मिथिला देखो। कर्णाटकदेश, दर्याट देखो। इसके समुदय शब्द पांच गोमें विभक्त है-इम | कर्णाटक भट्ट-एक प्राचीन संस्कृत कवि । (मुमापिवावलो ) मूल कर्णाटो, २य कर्णाटी प्रत्ययादि युक्त संस्क त, | कर्णाटक भाषा (स' स्त्री० ) कर्णाटदेशको मापा। ३य संस्क त-परिवर्तित, ४थ अपभ्रंश एवं अपभाषा | कर्णाटदेव-संस्कृत के एक प्राचीन कवि । ( चिकणमव ) और ५म अन्यान्य भाषाके शब्द। फिर कर्णाटो भाषामें | कर्णाटदेश, कर्पाट देखो। विशेष्य शब्दके चार भाग है-वस्तुवाचक, विशिष्ट, | कर्णाटशिखर (स० लो०) महारख प्रदेशख चित्र- क्रियावाचक और यौगिक । इसमें देवता तथा कूटादि पर्वतका चूड़ादेश। मनुष्यको पुलिङ्ग, देवी और मानवीको स्त्रीलिङ्ग और कर्णाटिक-मन्द्राजप्रान्तका एक प्रदेश । कुमारी अन्त- समस्त पशुपक्षी कोटपतङ्गादि एवं अचेतन निद रोपसे उत्तर सरकार-पर्यन्त पूर्वघाट और करमण्डन पदार्थको क्लीवलिङ्ग माना है। वचन दो ही है- उपकूल अर्थात् समस्त तामित्त प्रदेशका धमक्रममे एकवचन और बहुवचन । सर्वनामको ८ भागमें युरोपीयोंने यह नाम रखा है। कर्णाटिक कहने बांटा है-व्यक्तिवाचक, पूरणवाचक, अनिथयात्मक, कर्णाट सम्बन्धीयका बोध होता है। किन्तु उक्त सख्यावाचका, स्थानवाचक, समयपरिमाणवाचक और विस्तीर्ण भूखण्ड प्राचीन कर्णाट राज्यके अन्तर्गत न मनसूचक। क्रिया सकर्मक और हिकर्मक होती है। रहा। कर्णाट देखो। वरं इसके उत्तरांग विचनापल्ली काल पाठ प्रकारका है। द्वितीय पुरुषके अनुजा पौर कावेरी नदीका उपकूचस्य भूमिखण्ड किमी कालका रूप ही धातुका मूलरूप रहता है। समय दक्षिण कट कहाता था। प्राजकन अंगरेज इसमें उपसर्गादि अव्यय, क्रियाविशेषण, समु जिसे कर्णाटिक बताते, वर्तमान पार्कोट (अरुकोदु ), चयादि अव्यय और विस्मयादि अव्यय भी होते है। मदुरा और तन्नोर राज्य उसीके अन्तर्गत पाते हैं। किन्तु भाषामें जो विशेषत्व रहता, उसको लिखकर पलासी-युद्धके समय कटिकमें अंगरेज़ कई बार देखानका कोई उपाय नहीं ठहरता। शून्यके योगसे लड़े थे। इसीसे दाक्षिणात्य, अंगरेजों के प्रभुत्वको मित्ति दशगुणोत्तर संख्या समझी जाती है। दृढ़ पड़ गयो। नीचे उक्त युद्धका विवरण देते हैं- कर्णाटी भाषाके सम्बन्ध में विशेष विवरण समझ जिस समय क्लाइव कलकत्तेके अंगरेजोको विपद at Dr. Mc Kerrell's Grammar of the सुन एडमिरल वाटसनके साथ बङ्गालको ओर बढ़े, Carnataka language a Caldwell's Dravidian उसी समय (अप्रेल १०५८ ई.) कप्तान कालियड Grammar देखना आवश्यक है। नामक मन्द्राजके एक अंगरेज-सेनानी बाको राजस्व २ नेपालका एक राजवंश। पार्वतीय वंशावली लेनेको मदुरापर चढ़े। कप्तान कालियड विचना- पढ़नेसे समझ पड़ा, कि कर्णाटक राजाने नेपाली पलीके शासनकर्ता थे। उनके मेदुरा जोतने को विचना- संवत् से २२० (८८० से ११० ई०) तक २१८ पनी छोड़ते ही अंगरेजोंके तदानीन्तन मनु फरासीसि- वर्ष राजत्व किया था। निम्नलिखित नेपालाधिप योने त्रिचनापली पाक्रमण करनेको एक दर सैन्य कर्णाटकोका नाम मिलता है- भेज दिया। फरासीसी सैन्यने विचनापनी पहुंच अंगरेजोंका दुर्ग अधिकार किया था। कप्तान कसियाड नाम ५० वर्ष। या संवाद सुनते ही त्रिचनापलीको मोर खोट पड़े। १ नान्यदेव । राज्यकाच
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