फटकार। । गहना। कर्णाटिका-कणिका १४१ स्थान फरासीसियोंके अधिकारमें रह गया। कुछ दिन | कर्णार्बुद (सं• पु.) कर्णस्रोतोगत रोग विशेष, कामका पोछे अङ्गारेजोंके यह भी स्तगत हुवा। फोड़ा या मस्सा। कर्णाटिका (सं० स्त्री० ). कर्णाटा साथै कन्टाय कर्णाश, कर्णावुद देखो। कर्णालङ्कार (सं० पु.) कणं पलकीयते येन, कर्ण- इस्त्रः। कर्णाटो देखो। अल-क-धन । कर्णभूषण, कानका गहना । कर्णाटी (सं० स्त्री० ) कर्णाट डोप । १ कोई रागिनी। यह मालव राग वा कर्णाटकी स्त्री है। इसके गानका कलिङ्गति (स. स्त्री०) कर्णयोरलतिरलङ्करणम्, ६-तत्। समय रात्रिके द्वितीय प्रहरको हितोय घटिका है। कर्णभूषण, कानका गहना। २ कर्णशोभा, २ इंसपदीक्षुप, एक वेल । ३ कर्णाटदेशको स्त्री। कानकी सजावट। ४ अनुप्रास विशेष। शब्दालङ्कारमें कवर्गका पनुप्रास कर्णालंक्रिया (सं० स्त्री०) कर्णयोरलंक्रिया अलङ्कर- कर्णाटी कमाता है। ५ मर्याटकी भाषा। णम्, ६-तत्। कर्ण शोभा, कानको सजावट। कर्णास्काल (सं० पु०) कर्ण योरास्फाल: पास्कालनम् । कर्णा (सं० ली.) कर्णः नियंग्रेखाकारवान् इव अहम् । हस्तिमतिका कर्ण सञ्चालन, हाथी वगैरह कानको गृहविशेष, किसी किस्मका मकान्। यह तिर्यक्- यानको भौति पाषाणादि फैलाकर बनाया जाता है। कर्णि (सं• पु.) कर्ण इन्। १शर विशेष, किसी "विभिदुस्त मणिसम्मान कार्यावधिखराणि च ।" (भारत, बम, २६५ १०) किस्म का तौर । भाये इन्। २ भेदकार्य, छेदाई। कर्णादेश (सं० पु० ) कर्णालङ्कार विशेष, कानका एक कर्णिक (म. पु. ) . गणिकारिका, कोई पेड़ । २ पद्मकोष, कंवलको खोल। ३ सन्निपातज्वरविशेष, कर्णानुन (सं० पु० ) कर्णस्य अनुजः, कर्ण-अनु नन् एक बुखार। इसमें दोषत्र यसे तीव्र ज्वर पाता और ड। कर्णके छोटे भाई युधिष्ठिर । कर्ण के मूलपर शोथ चढ़ जाता है। फिर कण्ठ कर्णान्तिक (सं.वि.) कर्ण समीपस्थ, कानके पास सकता, कानसे सुन नहीं पड़ता, श्वास चढ़ता, प्रताप पड़नेवाला। बढ़ता, प्रस्खेद चलता, मोह लगता और देह जल कर्णान्दु (सं० लो०) कर्णस्य पान्दुरिव। १ कर्ण उठता है। (भावप्रकाश ) पाली, कानको लो। २ स्विप्तिका, बाली। कर्णिका (सं० स्त्री०) कर्ण-इकन्-टाप् । वर्णललाटात कर्यान्दू (सं० स्त्री०) कर्णान्दु जङ,। १ कप पानी, वनखार । पाश६५ । १ कर्णभूषण विशेष, कानका एक कानकी लौ। २ मुरकी, वाली। कर्णाभरण (सं.क्ती. ) कर्णस्य कर्ण धाय वा पाभर- नेवर। पूसका संस्कृत पर्याय-तालपत्र, ताड़ा और यम्। कर्णालद्धार, कानका गहना। दन्तपन है। २ करिशण्डाग्रभागरूपाङ्गुलि, हाथोंकी कर्णभरणक (सं० पु) कर्णाभरणमिव पुष्पैः। वोजकोष, कंवलका छत्ता । ४ हस्तको मध्यम अङ्गति, सूड़के अगले हिस्से को गलोजैसी चीज । ३ पद्म- कायति प्रचाशते, काँभरण-के-क। पारग्वध वृक्ष, हाथके बीचको उगतीं। ५ क्रमुकादिच्छटांश, डण्ठल'। अमलतासका पेड़। करा (सं० स्त्री०) कर्ण: भयंते विध्यते धनया, कर्ण- ६ लेखनी, कलम। ७ अग्निमन्यवक्ष। ८ अनशृङ्गी, मेड़ासौंगो। र अप्सरो विशेष, एक परी। “मनका ऋ-धन-टाए । कर्णवेधनी, कान छेदनेको सलायो। सहजन्या च कर्णिका प्रधिकरणला ।" ( भारत, पादि १२६१) कर्णारि (सं० पु.) कर्णस्य परिः-तत्। १ कर्णके १० सेवती, सफेद गुलाब। इसका संस्क त पर्याय- शत्र अर्जुन । २ पर्जनवृक्ष । ३ नदीसवृक्ष, एक पेड़ । शत्रपत्री, तरुणी, चारुकेशरा, महाकुमारी, गन्धाव्या, कण (सं० क्लो) कर्णस्य कर्णयोर्वा अर्पणं। श्रुति- लक्षपुष्पा और प्रतिमखुला है। 'भावप्रकाशके मसले योग्यविषयमै कर्णका अर्पण, कानको लगाई। यह पाबादकर, शीतल, संग्राची..पक्रवर्धक, लघु, Vol. IV. । । 36
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