१४२ कर्णिकाचल-कर्णीवान् त्रिदोष तथा रानाशक, वर्णकर, तिल, कटु और । अस्यास्ति, कणिका इनि । इस्ती, सूडको उंगली परिपाककारक होती है। ११ यानिरोगविशेष, रखनेवाला हाथी। औरतीके पेशाबको जगह होनेवाली एक बीमारी। कणिन (सं० वि०) विकणं, बड़े कानोवाचा । इससे योनिपर कणि काकार मांसग्रन्थि पड़ जाता | कणिनी (सं० स्त्री० ) योनिरोगविशेष, पौरतोंके है। प्रसवसे पूर्व अनुपयुक्त समय ज़ोरमै काखनेपर पेशाबको नगह होनेवाली एक बीमारी। (Disease गर्भक द्वारा वायु रुक श्लेष्मा तथा रक्तमें मिलता, of the uterus or Polypus uteri), fie fati .जिससे यह रोग लगता है। (चरक) कर्णिल (सं०नि०) कर्ण प्रायव्येन प्रस्थास्ति, कर्ण इस गगमें सर्वप्रकार कफनाशक औषष व्यवस्थेय है। इक्षच्। तुन्दादिम्य इलच् । ५२११७॥ दीर्घकण,बड़े कानोवाना। कुष्ठ, पिप्पलो, अक्षको कोमल शाखा पर्थात् ऋणि शर (सं० पु० ) शरविशेष, किसी किसका तौर। अग्रभाग और सैन्धव लवण झागके मूत्रमें योस बत्तो कौँ (सपु०) कौँ पचौ अस्त्वस्य, कर्ण इनि । बनाने और योनिमें प्रविष्टकर लगानेसे कर्णिकारोग १ सप्तवर्ष पर्वतके मध्य पर्वत विशेष, एक पहाड़। निवारित होता है। (धमादत्त) "हिमवान् शेमकटच निषधो मैसरैव च । १२ दारणपोड़ा, दर्द-शदीद। चैनः कणी'च सौ च सौ ते वर्ष पर्वताः।" (हारावली) कणि काचन्न (सं० पु०) कणिकायां स्थितः प्रचलः। २ वाणविशेष, किसी किस्मका-तोर । सुमेरु पर्वत । "यस्या नाम्यामवस्थितः पर्वतः सौवर्ण: कुलगिरिराजी "करोति कपि नो यक्षु यस्तु खर गादि कवर। मेरुद्धीपायामसमुम्राहः कणिकाभूतः कुवलयकमलस्य । (भागधव ४१७) प्रयान्ति ने वियसने नरके भग दारूगे।" (विशपु० २५६१६) 'कर्णिनी वाणविशेषान् । (श्रीधर) कणि काद्रि (सं० पु०) कर्णिकायां स्थितःअद्विः। समरुपर्वत। कर्षिकापर्वत, कर्णिकाचल देखो। ३ पारवहन, अमलतासका पेड़ । ४ गणिका- रिका, कोई पेड़। ५ क पावं, कनपटी। कॅणि कार (सं० पु.ली.) कर्णि भेदनं करोति, धार, मांझी, मक्षाह। (नि.) ७ प्रशस्तकर्ण, बड़े कणिक-अण । वक्षविशेष, कनियार, कनकचम्पा । कानोंवाला । ८ कण युक्त, जिसके कान रहे। कानमें इसका संस्क त पर्याय-हमोत्पत्त, परिव्यध और क्षो. कोई चीज़ रखे हुवा। १० ढोली खटकती चौजवाना, त्पल है। २'कर्णिकारपुष्प, कनकचम्पाका फल । दामनदार । ११ ग्रन्यियुक्त, गंठोला । १२ पतवारवाला। 'वर्ण प्रकर्ष सति कर्णिकारम् । (कुमारस०) ३ भारग्वध | कर्णी (सं० स्त्री०) कर्ण-डो। १ वाणविशेष, किसी विशेष, छोटा अमलतास। इसका संस्क त पर्याय- किम्मका तौर। २ मूलदेवको माता। मूलदेव देखो। राजतरु, प्रग्रह, कृतमातक, सुफल, चक्र, परिव्याध, कणों मान् (सं० पु. ) को वाणविशेषाकारः फलो व्याधिरिपु, पित्तवीजक और सधारग्वध है। यह एक ऽस्त्यस्य, कर्णिन-मतपं संज्ञायां दीर्घः। भारावध, विशाल वृक्ष है। फच दोध और पारग्वध सदृश होता अमलतास। है। इसका गूदा जुलाबमें लगता है। राजनिघण्ट के ) कर्णीरथ ( सं० पु. ) कर्णः सामोध्यात् स्कन्धः मतानुसार कणि कार सारक, तित, कटु, उष्ण और अस्यास्ति वाहनवेन, कर्ण-इनि; की चासो रथचेति कर्फ, शूल, उदरकमि, मेह, व्रण तथा गुल्मनाशक है। दीर्घश्च, कर्मधा। १ क्रौडारथ, खेचनेको गाड़ी। कणिकारक, कर्णिकार देखो। २ मनुष्यके वहन करने योग्य रथ, पादमौके चला सकने कणि कारप्रिय (सं० पु.) शिव। शिवको कर्णि- लायक, गाड़ी। ३ स्त्रीवहनार्थ वस्त्राच्छादित यान विशेष, परदेदार डोलो। इसका संस्कृत पर्याय- कर्णिकारिका (सं० स्त्री०) हरिद्राक्षाच, हल्दीका पेड़। प्रवहन, यन, प्रहरण और डयन है। कणि की (. सं. पुः ). कणिका गुण्डाग्राङ्गुलिः | कर्णीवान्, कयौं मान् देखो। € 46 कार अत्यन्त प्रिय है।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१४१
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