पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१४७

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१४८ कपरिकातुत्य-कपूर कपरिकातस्य (स'• ली.) कर्परिकैव तुत्यम्। १ तत्य कफनाशक, तितरस और कुछ, कण्ड तथा वमि- विशेष, एक लिया। निवारक होता है। करी (सं• स्त्री०) कप बाहुलकात् अरट लवाभावः यह उद्विदजात, दृढ़ीभूत, गन्धयुद्ध और चपर डीए। काथोद्धव सुस्थ, खूपरिया, दारुहल्दोके काढ़े का उद्घायुगुणविशिष्ट (उड़ जानेवासा) एक त पदार्थ दूतिया। इसका संस्खात पर्याय-दार्विका और है। रसायनशास्त्रज्ञ इसे उजिङके उद्घायुगुपयुक्त तुत्थाजन है। तेलको हितोय अवस्था बताते हैं। मानाप्रकार जिद कर्यास (सं. पुलो०) क-पास । कषः पास: । इण् । ५७१५ । से ही कपूर मिलता है। कर्पास बच, कयासका पौदा। कार्पास देखो। कपूरका विकास-इस बात पर बड़ा गड़बड़ पड़ा- कर्पासक, बार्पास देखो। किस समयसे कपूर मानव जातिके व्यवहारमें लगा कसफल (सं० लो०) कर्यासस्य फलम् तत् । और गुणागुण निर्णय हो सका। युरोपीय पण्डितों के कार्पासवीज, बिनौखा, कपासका बीज । यह स्तन्य निर्णयानुसार १० षष्ठ शताब्दसे प्राचीन प्रोंमें वर्धक, वृथ, सिन्ध, गुरु और कफकारक है। (भावप्रवाय) इसका उल्लेख मिलता है। इद्रमौतके किन्दा राव. वर्षासी (स• स्त्री.) कर्पासनासित्वात् गौरादित्वात् वंयोय पमरू कैस नामक किसी राजपुत्रने पष्ठ वा डीए । कर्यास वक्ष, कपासका पेड़। इसका शताब्द अरबीम एक कविता लिखी थी। इसमें संस्कृत पर्याय-कार्यासो, सण्डिकेरी और समुद्रान्ता कपूरका उल्लेख पाया है। है। भावमियने इसे लघु, ईषत् उष्णवीय, मधुररस किन्तु हमारी समझमें उससे बहु पूर्व भारत- पौर वायुनाशक कहा है। कर्यासीका पन वायु. वासियोको इसका सन्धान लगा था। सुश्रुत, चरक, मायक, रक तथा मूत्रवर्धक और कर्णपीड़ला, कर्णनाद वामट,हारीत प्रभृति प्राचीन पायुर्वेदप्रचारक कपूरका और पूयत्राव शान्तिकारक है। नाम और गुणागुण पर्यन्त लिख गये हैं। कपूर (स'• पु-को०) कप-जर् । खलिपिचादिस्य उरीखची। शाक-इवन्-प्रामन् नामक किसी परबी विविध एए । सुगन्धित द्रव्यविश्वेष, एक एशबूदार चौड़। सक और इवन सुददुवा नामक एक परवी भौमो- से फारसीमें काफूर, हिन्दी कपूर, तामिल करुपू. लिकने षष्ठ शताब्दको लिखा था-'मलय रम, सिइसौमें कपूर और अंगरेजी भाषामें काम्फर प्रायोद्दीपसे कपूर बाहर भेजा जाता है। फिर ई. (Camphor) कहते हैं। इसका संस्कृ त पर्याय बयोदा शताब्दको प्रसिह भमणकारी मार्कयोलीने घनसार, चन्द्रमा, सिताग्र, हिमवालुका, हिमकर, लिखा,-'फनसूर नामक स्थानमें सर्वोत्छ? कपूर पौतप्रभ, सिताभ, घमसारक, सितकर, शीत, प्रशार, उत्पन्न होता है। फनसूर स्थान भूमाता दीपक मय यौला, शीतांश, शाम्भव, शांश, स्फटिकाभ, कारमि- है। प्राजकस, वहांका कपूर 'चरस कहाता है। हिका, तारान, चन्द्राक, चन्द्र, लोकतुषार, गौर, पहले युरोपमें से कोई नानता न था। चीनसे यह कुमुद, हतु, हिमाद्य, चन्द्रमा, वैधक और रेणु युरोपमें पहुंचा। इसी प्रकार १५५१ से युरोपी- यों को इसका सन्धान मिला। सारक है। कर्पूर त्रयोदश प्रकार होता है,-पोतास, भीमसेन, सितकर, शहरवास, पांश, पिन, अइसार, प्राचीन कार भारतवर्ष के लोग कपूरको पक्ष पौर अयक दो भागमें वाटते थे। हिमवालुक, शुतिका, तुषार, हिम, शीतल और पत्रिकाख्य। भावप्रकाशके मतसे यह शीतल, वृष्य, डाकर उदयचन्द्रके कथनानुसार पक कपूर चक्षुःहितकर, लेखन, लघु, सुगन्धि, मधुर, तिह ( Cinnamonum Camphora) किसी चीनदेयीय रस, और कफ, पित्त, विषदोष, दार, कृष्णा, मुख वृक्षके काठसे निकलता पौर रौद्रके तापमें पकता है। विरसता, मैदा तथा दुर्गन्धनाशक है। चौना कपूर अपक्क कपूरको उत्पत्ति बोरनियो दीपक एक र