पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१४८

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कर्पूर १४१ स्कन्ध (Dryobalanops aromatica)से है। यही वृक्ष बहुत बड़ा होता है। इस जातिका वृक्ष हिमा- कपूर सर्वोकट होता है। - हिन्दीमें इसे 'भीमसेनी लयके पूर्वाञ्चल, खसिया गिरि, चट्टग्राम, पेगू, ब्रह्म कपूर' कहते हैं। दाक्षिणात्य चार प्रकारका कपूर और चीनके दक्षिणांशमें उपजता है। किन्तु ब्रह्मदेशमें चलता है-कैसरी, सूरती, चौना और वटाई। हो इसकी अधिक उत्पत्ति है। ब्रह्मदेशीय कपूरवक्षक युरोपीय डाकरोंने स्थान और गुणभेदसे इसे चार विषयमें किसने कहा है, यदि सब होसे कपूर रेणीमें विभत किया है-प्रथम फारमोसा या चीन निकलने पाये, तो पृथिवीके अर्धाशका कार्य वन जाये। जापानका कपूर है। फारमोसा दीप और चौमके डाकर डाइमकको बम्बई अञ्चलमें उता जातीय मध्य राज्यमें 'काम्फर नरेल' (Cinnamonum एक प्रकार कपूरोत्यादक वृक्ष सिता था। बम्बईवाले Camphora) नामक एक वृक्ष होता है। भारत में कण्डु (खुजली) मिटानको उसे व्यवहार करते हैं। खदिर वृक्षसे जैसे खैर निकलता, वैसे ही उल्ल वृक्ष चतुर्थको सुगन्धि द्रव्यमें पड़नेवाला कपूर कहते हैं। काठके कुचले नियांससे स्वच्छ काचके सदृश कपूर यह नाना नातीय वृक्षसे उत्पन्न होता है। इसे उतरता है। फिर उसका सार ले लिया जाता है। तम्बाकूका पत्ता, किंवा पांशिक परिमाणमें थिमस उ वृक्षका कपूरमात्र चीन में कपूर कहाता है। (Thymus) तेलका सार टपका निकालते या पाचुली पहले विलायत और भारतमें यह कपूर बहुत विकता वृक्षसे बनाते हैं। शेषोल वृक्षसे निकलनेवाला कपूर था। किन्तु अब इसकी आमदनी कम पड़ गयो। अनेक स्थानमें 'पाचुली कपूर कहाता है। नारगोसे जापानमै उता वृक्ष अधिक उत्पन्न होता है। जो कपूर बनता, उसका अंगरेजोमें नेरोलो काम्फर सहद्रका शीतल, वायु उसके लिये प्रति उपकारी है। (Neroli Camphor ) नाम पड़ता है। बङ्गालमें भी सत्समा पौर बनो जिले में कपूरका काम चलता है। एक वृक्ष (Nimnophila gratioloides )से कपूर द्वितीयको भीमसेनी कपूर कहते हैं। इसका निकलता है। भारतवर्षमें लाखों रुपयेका कपूर प्रकत नाम 'वरस' है। सुमात्रा दीपक बरस नामक पाता जाता है। स्थानमें शान सदृश एक वृक्ष (Dryobalanops aroma देशीय वैद्य इसे कामोद्दीपक और मुसलमान काम- tica) होता है। इसके काण्डमें काचके समान शक्लिनासकारक बताते हैं। हिन्दू और मुसलमान एक प्रकार पदार्थ जम जाता है। खदिर, खैर और दोनोंके मतानुसार चक्षुको प्रदाइ अवस्थामें पलक पर चन्दन भगुरुकी तरह काण्डको अभ्यन्तर तथा वृक्षके कपूर लगानेसे विशेष फल मिलता है। हृदयमें भीमसेनी कपूर देख पड़ता है। स वृक्ष खासरोग अधिक बढ़नेपर कपूर और हिड चार जितना बड़ा लगता, कपूर भी उतना ही अधिक चार ग्रेन गोली बनाकर २३ घण्टे पीछे खितानसे बड़ा निकलता है। किन्तु लोग उसेःबहुत बढ़ने नहीं देते। उपचार होता है। इसीके साथ छातीपर तारपीनका कपूरके लोभसे शतशत वृक्ष काट डाले जाते हैं। तेल मलना चाहिये। पुरातन वातरोग, ५ ग्रेन कपूर ७।८ वर्षका वक्ष न होनेसे कपूर कम मिलता है। ग्रेन अफीमके साथ सोते समय खिचानेसे पसीना ओलन्दाज-अधिक्षत सुमात्रा-दीपके उत्तर-पथिम निकलता और व्यथाका लाघव लगता है। कपूर उपकूल अयार-बान्नीस बरस और सिद्धल नामक नगर और हिमु एकत्र खिलाने से हृदरोग दूर होता है। पर्यन्त समुदाय स्थान, वीरनिवो हीयके उत्तरांश और बालककाल सड़कोंको खांसी पानपर एक में लेबुधानहीपमें कपूरका वृक्ष होता है। कपूर लगा और तपा रात्रिकाल वक्षपर रखने वड़ा ढतीयका नाम नगैया कपूर है। अंगरेज इसे लाभ पहुंचता है। ब्लमिया काम्फर (Blumea Camphor) कहते है। खप्रदोष और शुक्रक्षय प्रकृति रोममें रात्रिकाल चीन देश काण्टन नगरमें यह कपूर बनता है। इसका सोते समय ४ ग्रेन कपूरकै साथ पाध ग्रेन अफीम Vol. IV. 38