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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१५७

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४ कर्म के २५८ कर्मधारय-कमन्यास १ दुष्ट कर्म, पायजनक हिंसादि, गुनाह, इज़ाबका नुसार इस नदीको छूनेसे महापाप लगता है। कारण काम । २ कर्मजन्य पापादि,कामका इजाब । ३ कम रावणके प्रस्रावसे इसकी उत्पत्ति है। बैद्यनाष देखो। विषयक दोष, गलतो, भूल । किसी किसीके मतानुसार सूर्यवंशीय त्रिशङ्ग रानाने कारणस्वरूप मिथ्याज्ञानकी वासनाका दोष, बुरा 'अमहत्याका पाप किया था। वह अपना पाप छोड़ाने चालचलन। पृथिवीको यावतीय पुण्यतोया नदीका जल लाये और कर्मधारय (सं० यु० ) व्याकरणोत समानाधिकरण उसमें नहा ब्रह्महत्या पापसे कूट पाये। भाजकल पदर्धाटत समास विशेष। समानाधिकर पक्षनरुपः कर्मधारयः। जो कर्मनाशा वहतो, उसकी विदमण्डछौ त्रिगा पा ।।२। इसमें विशेषण और विशेष्यका समान प्रधि राजाका गानधौत अपवित्र जल कहती है। फिर करण होता है। जैसे-रजालता। हिन्दीमें यह कोई उस समयसे अपवित्र बताता, जिस समय युक्त समास नहीं लगता, क्योंकि विशेषण और विशष्य प्रदेशका निष्ठावान् प्राचीन ब्राह्मण इसको पार कर अलग रहता है। फिर संस्कृतकी भांति विशेषणमें कोकट अथवा वङ्गदेश भाता न था। किन्तु नदीकूल के विभक्ति भी लगायी नहीं जाती। अधिवासी कर्मनाशाको पवित्र नहीं समझते और कर्मध्वंश (सं०४०) कर्मणो वशः, -तत् । कम चति, जलसे सायंसन्ध्याकार्य किया करते हैं। भविष्य ब्रह्मा मज़हवी कामके फायदेका नुकसान, नाउमोदी। खण्डके लेखानुसार गङ्गा और कर्मनाथाके सामने कम ना (हिं०) कोया देखो। नहानसे अशेष पुरख मिलता है- कर्मनाम (सं० लो०) क्रियासे बना हुवा नाम, "भागीरप्या समं तत्र वर्मनामा नदी विजः। इसाफायल। मनतिं पुणदी प्राधा खोकतारपईतवे" (५५४०) कर्मनाशा (सं० स्त्री०) कम नाशयति, कमन् नथ उक्त प्रखण्ड में ही लिखा, कि कम नाथाके कुल णिच्-अण्-टाय। एक प्रसिद्ध नदी। यह (पक्षा. २४. पर ताड़का राक्षसोका बन था। ३८३०३०उ० तथा देशा• ६३. ४१३०पू०) कम निबन्ध (सं• पु.) कर्म का पावश्यक फल, कामका विहार प्रदेशस्य थाहावाद जिलेके कैमोर पर्वतसे जरूरी नतीजा। निकली है। इसने उत्तरपसिम मुख पहुंच दरिहार कम निर्हार (सं• पु. ) असत्कर्म वा फलका दूरी ग्रामके निकट थाहाबाद और मिर्जापुर जिले दोनों कारण, बुरे काम या उसके नतीजेका इंटाव । ओर रख विहार एवं युक्तप्रदेशको स्वतन्त्र कर दिया है। कर्मनिष्ठ (सं० वि०) कर्मणि निष्ठा यस्य, बहुनी। फिर चौसा ग्रामके निकट यह गङ्गा नदीसे जा मिली। यागादि कर्मासक्त, नित्य नैमित्तिक कर्म करनेवाला । है। इसकी दो शाखा है-धर्मावती और दुर्गावती । "ज्ञाननिष्ठा रिजाः केचित वपोनिष्ठावधापरे। पर्वत पर जहां कर्मनाशा बहती, वहां नदीगर्भको तपःखाध्यायनिष्ठाय कर्मनिष्ठास्वथा परे।” (मनु) भूमि प्रस्तरमय पड़ती है। किन्तु मृत्तिका मिलनेसे कम निष्ठा (सं. स्त्री.) कर्मणि निष्ठा प्रासलि नदीगर्भ कर्दमयुक्त और गभीर रहता है। माघ फाला न ७-तत् । कर्ममें पासत्ति, काममें सगे रहनेको हावत । मास यह नदी सूख जाती है। किन्तु वर्षाकाल इसके | कमन्द-भिक्षुसूत्रकार एक ऋषि वेगका कीयो ठिकाना नहीं। उस समय पल्प जसमें कर्मन्दी (सं० पु.) कमन्टेन भिचुस्नकारकेन :ऋषि- भी उतरना कठिन पड़ता है। ट्रव्य सामग्रीसे भरी विशेषण प्रोज मिस्त्रमधीवे, कर्मन्द-इनि। गर्मद- बड़ी नौका अनायास इस पर चला करती है। मिर्जापुर यावादिनिः। पाश मि, सन्यासो। निलेके छानपायर नामक स्थानमें यह नदी १०० फीट कमन्यास (सं• पु०) कमयां विहितकर्मयां विधिना नीचे गिरती है। अधिक दृष्टिके समय मत जलप्रपात यासः सागः। १ कर्मत्याग, सन्यास । १ कर्मफल- अतिसुन्दर देख पड़ता है। अनेक लोगोंके कथमा त्याग, वामके नतीजेको शेड़ देनी हालत