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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६

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. कपोत. पर दूर देशसे लिपि ला सकता है। इसका पक्ष रूपसे लिपि लगा देनेपर कपोत प्रापपणसे उड़ा अत्यन्त सबल होता है। पायर्यका विषय प्रतिपालक गृह पा पहुंचता है। इसको सिखाने में देखाता-इस श्रेणौके कपोतमें जिसका पक्ष जितना प्रथमत: घर भूल न जाने और बड़ी दूरसे लौट संबल पाता, वह उतना ही अधिक जी जाता अनिके लिये पाव कोस दूर ले जाकर छोड़ना पड़ता यह स्वभावतः दीर्घकाय और बलिष्ठ रहता, किन्तु है। पाव कीस अभ्यस्त होनेपर प्राधकोस, धीरे- देखनेमें अति सुन्दर लगता है। रानकयोत हिन्दु धोरे एक, दो, तीन, चार, पांच कोस पर ले जाकर स्थानी कौडियालेके अन्तर्गत है। अाजकल इसके द्वारा इसे छोड़ते हैं। पीछे ग्रामान्तर और अवशेषको लिपि प्रेरणको बात अधिक सुन नहीं पड़ती। पहले देशान्तर ले जा इसे सिखाना पड़ता है। यह अति तुर्की राज्यमें उक्त प्रथा बहुत चलती थी। भान भी यौन सीखता है। शेषको इतनी क्षमता पाता, कि वहां कहीं कहीं धनियों के पास दो-एक लिपिवाही यह समुद्र पार भी पाता-जाता है। शिक्षित कपोत विद्यमान हैं। १९४७ ई०को वुगदादक सम्राट कपोत एक घण्टेमें २० कोस उड़ सकता है। नूरुद्दीन मुहम्मदने यह प्रथा चलायी थी। फिर अधिक दूरसे पत्र मंगानेको इसे उड़ाने के पहले पाठ ११२५८ ई०को वुगदाद नगर मङ्गोलीयोंके हाथ पड़नेसे घण्टे पनाहार किसी अन्धकार रहमें वन्द कर देते यह प्रथा रहित हुयी। फ्राझो सिया युद्दमें भी यह है। शेषको छोड़ने पर एकबारगी ही प्रति ऊर्ध्व कपोत देख पड़े थे। थोड़े ही दिन हुये कलकत्तेकी देशसे उड़ते उड़ते क्षुधाको ज्वालामें प्रभुके निकट प्रा बड़ी पदालतमें एक पत्रवाही कपोत आ गया पहुंचता है। सुनमें आया, कि समुद्र पार करनमें था। अंगरेजीमें इसे कारियर पिजन ( Carrier कितने ही कपोतीने पानी पर गिर अपना प्राण- .pigeon) अर्थात् चिट्ठी पहुंचानेवाला कबूतर कहते गंवाया है। कुहरा पड़ने या पानीको झड़ लगनेसे हैं। वर्तमान युरोपीय समरमें इसने कुछ कम काम यह सहज और स्वल्पायासमें उड़ नहीं सकता। नहीं किया। सुतरां ऐसे समय उड़ाने या राहमें ऐसा समय पा लिपिवाही कपोतको सिखनिमें बहु यन, पायास जानसे इसपर अत्यन्त विपद पड़ती है। और.समय लगता है। शावक परिणत होनेपर एक यह प्रथा केवल तुर्की में ही न रही, पीछे युरोपके . स्त्री और एक पुरुष निकाल एकत्र रखना और नाना स्थानों में चल पड़ी। पहले मिसर, पालेस्ताइन, यथेष्ट प्रणय उपजानिको यन करना पड़ता है। तुर्की, अरबस्थान और ईरानमें युद्धके समय जय- फिर पत्र लानेके स्थानको इन्हें पिंजड़ेमें डाल भेज पराजय, सैन्य आनयन, खाद्य प्रप्राचुर्य प्रमृतिका देते हैं। इनमें एकको पृथक् कर कहीं ले जानेपर संवाद इस कपोत द्वारा सहजमें सम्पन्न होता था। दूसरा भी उड़ उसके पास निश्चय पहुंच जाता है। बङ्गलेण्डके विलासो धनी लोग भी उस समय इनके बहुत पतले और कड़े कागज पर पत्र लिख किसी द्वारा प्रणयिनी और बन्धुवान्धवके निकट संवादादि पक्षक पालकमें बालपीनसे नत्थी कर देते हैं। आल भेजते रहे। पौनका सूक्ष्माग्रभाग शरीरको बाहरी पोर रहता अनुमान लगा सकते-रामायण महाभारतादिके है। फिर उड़ा देने पर यह उसी घरमें ना यहचता, समय भी भारतमें पचीके मुखसे संवाद भेजनेकी प्रथा चलती थी। महाभारतमें एक गल्प लिखा है- जिसमें इसका नोड़ा रहता है। वासस्थानके प्रति समें ऋतुमती और कामातुर पल्ली छोड़ चेदि. अत्यन्त ममता बढ़नसे एकमात्र कपोत पालनेसे भी काम चल सकता है। इसी प्रकार शिक्षित . देशाधिपति महाराज उपरिचर पिताके निर्देश कपोत जहां संवाद लेना आवश्यक प्राता, वहां मृगयाको गये थे। वहां वृक्षको छाया शान्ति दूर किसीके हाथ सौंप भेज दिया जाता है। पूर्वोक्त करते-समय पनीको स्मरण पर साते हो उनका रेत: