पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१७

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कपोत-कपोतपाद गिर पड़ा। महाराजने उहिग्न हो उस रेत:को लिखा है। महर्षि चरकके मतसे कपोतका मांस पत्तेके दोने में भर और किसी येन पचीको सौंपकर कषाय, मधुर, शीतल और रतपित्तनाशक है। पत्नी के निकट भेजा था। श्येनने वह दोना मुखमें हारीत उसे हण, बलकर, वातपित्तनाशक, प्तिकर, दवा चेदिराजधानीके अभिमुख जाते जाते विसी दूसरे शुक्रवर्धक, रचिकर और मानवको हितकर बताते खेनसे झगड़ फेंक दिया। इससे मत्स्यके उदरमें हैं। फिर भावमिथने कपोतके मांसको गुरु, निग्ध, व्यासको जननी मत्स्यगन्धाका जन्म हुवा। उक्त रक्तपित्त एवं वायुनाशक, संग्राही, शीतल, त्वको उयाख्यानसे समभा पड़ता-श्यनपक्षी भी शिक्षित हितकर और वीर्यवर्धक कहा है। सुश्चत तथा होनेसे लिपिवहनका कार्य कर सकता है। एतदिन | वामटके मतमें कृष्णवर्ण कपोतका मांस गुरु, लवम- नलदमयन्तीमें 'इंसदूत' को कथा मिलती है। युक्त, स्वादु और सर्वदोषकर होता है। घु-धू देखो। दमयन्तीका पोषित हंस भाकर नलसे उनको रूपमा (को०) सौवीराजन, सुरमा। २ कपोताप्लन, उत्कर्ष बता गया था। यह उपाख्यान इतने दिन भूरा सुरमा। कविको कल्पना मान उपेक्षित होते रहे। किन्तु जब कपोतक (सं० को०) कपोत इव कपोतवर्णवत् कपोतके इस स्वभावको वात खुली, तब उस पाराणिक कायति प्रकाशने, कपोत-के-क। १ सौवीराजन, उपाख्यानोंके प्रमूलक होनेको श्रद्धा घटी। सुरमा। २ कपोताञ्जन, भूरा सुरमा। (पु.) ३ क्षुद्र- हम देखते-प्रायः सकल ही देशों में लोग कपोतको. कपोत, छाटा कबूतर । ४ हाथ जोड़नेको एक रीति। पवित्र पक्षो समझते हैं। भारतवासी इसे लोका कपोतकनिषादी (स'• पु०) मखका एक वातव्याधि, वरपान कहते हैं। फिर मक्का नगरमें कयोलेश्वर घोड़ेको होनेवाली बाई की एक बीमारी। कठिनतासे नामक शिवलिङ्ग पौर कपोतेशी नानी भवानीको | उठाने पर भी जो घोड़ा भूमिपर गिर पड़ता, वह इस मूर्ति विद्यमान है। प्राचीन पासिरीया देशके राजा रोगसे पीड़ित ठहरता है। कपोतनिषादी होनेपर इसकी परम भक्ति करते थे। घरव देशके सत्काय अश्व मुश्किलसे जीता है। (जयदत्त) नील कपोतको महासम्मान मिलता है। मुसलमानोंके कपोतकीय (सं० वि०) कपोतोऽस्त्यस्य, कयोस-छ. धर्मग्रन्यमें इसे 'स्वर्गदूत' कहा है। मुसलमान कुक् च । नादोनो अक् च । पारा । कपोतयुक्ता, कबू- बताते-मुहम्मद जब कुछ जानना चाहते, तब स्वर्गसे तरीसे भरा हुवा। कपोत आ उनके कानमें सब बात सुनाते थे। मके के कपोतकीया (सं० स्त्रो०) कपोतयुक्त्व देय, कबूतरोंसे काबमें यह अति यत्नसे पांले जाते और मुसलमान भरा हुवा मुल्क। पन्हें कावको कुमरी समझ कभी नहीं खाते। पहले कपोतचक्र (सं० पु०) वाटचक्र वक्ष, बेंटुवा । अंगरेज भी कपोतको होली बर्ड (Holy bird) अर्थात् अपोतचरणा (सं० वी०) कपोतस्य चरणश्चरणवत् पविन पची समझ आदर करते थे। पाकारो ऽस्त्यस्याः, कपोत-चरण पर्श आदित्वात् पच्- हमारे पुराणमें भी लिखते-थिवि राजाको दान टाप। १ नलोनामक गन्धद्रव्य, एक खुशबूदार चीज। शीलता देखनेको अम्नि कपोत और इन्द्र श्येनका रूप २ चौरिका, खिरनी। धना उनके निकट उपस्थित हुये। कणेतने श्येनके कपोतपर्णी (स. स्त्री०) एला, मूलायचौका पेड़। भयसे भीत हो शिविक मोडमें पड़ भाषय मांगा पोतपावा (सं० पु०) कपोतस्य पाकः डिम्बः, इ-तत्। था। शिविर्ने शरणागतको वचा और श्येनको तुष्ट' १ कपोतशिश, कबूतरका बच्चा। २ पार्वत्य जातिभेद, करने के लिये अपने देहका समस्त मांस गंवा महायश एक पहाड़ी को। पाया। इसीसे कपोतका नाम अग्निभूर्ति पड़ा है। कपोसपाद (सं.वि.) कपोतस्य पादाविष पादौ यथा, हमारे पायुर्वेद शास्त्र में इसके मांसका गुणागुण भरत्यादित्वात् मान्यचोपः । पादस बोपोऽयादिमः। 1 Vol. IV 5 -