पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६६

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कमविपाक - डालने या देवनिन्दा करनेसे मृत्यु के पीछे नैऋत एवं विवाद बढ़ाती और परस्पर सेह वैषम्य' लगाती, वह पथिम दिस्थित पिकला नामक नगरमें पिशाचोंके परजन्ममें सपनीसे सतायी जाती है। साथ बहुकाल रह मनुष्य छिन नासिक..होकर जन्म २० जात्यन्तर-अपवित्र अवयति प्रभृति भिक्षुक- नाम करता है। को देनेसे जात्यन्तरमें जन्म होता है। १० छिवकर्णता-मिथ्या अपवाद द्वारा किसीको २१ मूकता-किसी नृत्यगीतादिकारीको 'सनेसे सतानसे छिन्नकणं होना पड़ता है परजन्ममें भूकता आती है। ११ इस्तपदहीनता-उमय सैन्यके दारुण संग्राम २२ गद्गदवाक्य-जिगीषासे जो व्यक्ति विवाद स्थलमै खाय प्रभुको छोड़ भगानसे मृत्व के पोछे दुःसह बढ़ाता अथवा मूर्खतासे गुरुको निन्दा उड़ाता, वह नरक भोग मनुष्य पुस्तपद छीन होकर जन्म लेता है। मृत्यु के पीछे बहुविध यन्त्रणा उठा परजन्ममें गद्गदः भाषी बन जाता है। १२ पक्षाघात-अस्त्र लेकर निरस्त्र शव को मारनेसे २३ मुखरोग-पिटनिन्दा, गुरुनिन्दा एवं देव- वडुनन्म पशयोनि पानिपर मनुष्य जन्ममें पक्षाघात रोग लगता है। निन्दाकारी, मिथावादी पौर पभच्यभक्षक व्यक्ति १३ वैधव्य-जो स्त्री यौवनके गवं स्वीय अनुगत नरकान्तमें जन्म ले मुखरोगाकान्त होता है। २४ कर्णरोग-प्रसम्बन्ध प्रचापका पायवाक्य पतिको विरूप बता दिवसमें निन्दा करती, रात्रिको सुनने परजममें कर्णरोग लगता है उसको शय्या नहीं छूती और पतिको आज्ञासे अत्यन्त सष्ट रहती, वह परजन्ममें वैधय यन्त्रणा सहती है। २५ दुर्गन्धगावता-सुगन्धि ट्रव्य चोरानेसे मनुष्य मूत्र तथा विष्ठायुक्त नरक भोग परजन्ममें दुर्गधगाव १४ वध्यता-पिपासातं वत्सके जलपानमें वाधा होता है। गाने, दक्षिणाशून्य व्रत उठाने, मिष्टफलादि देवताको २६ दारिद्रा और विरूपता-दानकार्यम विन निवेदन न कर खाने और किसीको मैयनका उद्योगी डालनेसे परजन्म दरिट्र और विरूप बनना पड़ता है। देख उसकानेसे वन्ध्यता पाती है। २७ खिन्नपादपाचिता-लवण चोरानसे मृत्यु के १५ गर्भन्नाव-जो स्त्री हिंसावश सपनी वा अन्य पोछे क्षाराब्धि नामक नरककी यन्त्रणा उठा परजन्ममें नारोका सन्तान दुट औषध वा दुष्ट मन्वादिसे मार इस्तपद खेदयुक्त रहते हैं। डालती, वह नरकान्तमें मनुष्ययोनि पा किसी २८ दाइन्वर-अग्नि द्वारा रह, ग्राम, क्षेत्र प्रभृति अन्य पुण्यफलसे ऐश्वर्यशालिनी होते भी गर्भस्रावको जवानसे प्राणान्तको रोरख नरक भोग परजन्म में मनुष्य पीड़ा उठाती है। दाहच्चरका कष्ट उठाता है। १६.मृतभायंता-ज्येष्ठ भ्राता अविवाहित रहते २८ अग्निमान्द्य-व्राह्मणके पाककाल विघ्न डाल- कनिष्ठ विवाह करनेपर मृतभाय होता है। सप्तमी नेसे कल्मष नामक नरक भोग परजन्ममें पग्निमान्द्य तिथिको तैल छूनसे भी ज्येष्ठा स्त्री मर जाती है । रोगग्रस्त होते हैं। १७ बहुपुत्रता और अपुत्रता-गायके मुखमै भोग्य -पाक बना पाकाग्नि जलसे वुझाने- वस्तु खाँच दूर फेंकने पर मृत्यु के पीछे तीन मन्वन्तर पर प्रनीर्ण रोग लगता है। काल निर्जन मरुभूमिमें रह परजन्मको बडुपुत्रक वा ३१ प्रतीसार-यज्ञाग्नि बिगाड़ने और दान अपुवक होना पड़ता है। छिया या चोरीसे दूसरेका छाग मार डालनेसे नर- १८ दौर्भाग्य-तीया तिथिको तेल छूनेसे दौर्माग्य कान्तमें तीन वत्सर मत्सयोनि हो मनुष्ययोनिमें अती- पाता है। सार रोगका दुःख उठाना पड़ता है। १८ सापत्न्य-जो स्त्री मिथ्यावाक्यं प्रयोग द्वारा ३२ ग्रहपी-जी धनलाभसे दान,भोजन, हव्यकव्यं ३. अजीर्ण-