पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६८

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कर्मविपाक पर लोगोंको भ्रान्तिमें डाल अन्य प्रकार कथा कहने के गमनसे चार मेह हो जाता है। ४ सतीत्वहरणसे लगता, उसे नरकान्तको भ्रम वा मूळ रोगाक्रान्त हो सान्द्रमेह पड़ता है। ५ रोगिणीगमनसे माविष्ठमेह जन्म लेना पड़ता है। बढ़ता है। ६ मित्रस्त्रीके गमनसे शुक्रमेह बढ़ता ५० हृद्रोग-लोभ वा इपसे किसीकी सताने या है। ७ चतुष्यदगमनसे सिकतामह भाने लगता है। मान्तिक वेदना पहुंचाने पर परजन्म, द्रोग वर्णहरणसे क्षीरमेह निकलता है। ८ सुरापानसे, उठता है। सितमह उठता है। १० ऋतुमतीगमनसे कालमेह ५१ प्रामवात-यज्ञको दक्षिणा अथवा उससे किया होता है। ११ रजस्वलागमनसे रहामा चनता है। हुना वस्तु वाणको न देने और अधर्माचरणसे धन १२ नोचजातीय स्त्रीगमनसे मन्नमेह आता है। कमा जोड़ लेने पर जन्मान्तरमें पामवात सताता है। १३ विधवासङ्गमसे इक्षुमेह उठता है। १४ ब्राह्मणी- ५२ सर्वाङ्गवातव्याधि-सुरा पीकर हठात् स्त्री गमनसे इस्तिमेह उभरता है। १५ प्रचतयोनिगमनसे सहवासके लिये बी चल जाने अथवा परस्त्रीका वस्त्र हारिट्रमेह भड़कता है। फिर माता, भगिनौ, कन्या, घोरानसे नरकान्तको नियंकयोनि घूम मनुष्यजन्ममें खय, अक्षतयोनि, भ्राटजाया, मातुलानो, गुरुपनी, सर्वाङ्गगत वातरोग लगता है। राजपत्नी, मित्रपत्नी प्रभृति अन्यान्य कुटुम्विनीके गमन- ५३ तुन्दरोग-ब्राह्मणका घट चीरा लेने अथवा से जीवनान्तको ज्वलन्त लोहखण भक्षण प्रभृति बहु- यन्नकाल सङ्कल्पकर दक्षिणादि न देनेसे मेद सञ्चित विध यमयन्त्रमा उठा पांच वत्सर शूकरयोनि,दश वत्सर होकर तुन्द अर्थात् स्थौल्य रोग उठता है। कुक्कुरयोनि, तीन मास पिपीलिकायोनि तथा एक वमर ५४ अम्लपित्त-लोमसे निषिद्ध द्रव्य खानेपर वधि कयोनिमें उत्पन्न हो गोजन्म लेना और सर्वशेष जीवनान्तको काक, कुक्कुर और ग्टन योनि पाकर मनुष्य धन अनेकप्रकार मेहरोग झेलना पड़ता है। परजन्मम मनुष्य देह धारण करना और पम्लपित्त रोग ६२ पुंस्त्वनाश-धर्मपत्नीको छोड़ अन्य स्त्रीके भैलना पड़ता है। साथ सम्भोग करनेसे पुंस्त्व नष्ट होता है। ५५ शोथोदर-लोभ, मोह वा पिसे अधर्माचरण ६३ मुष्कहहि-लुब्धकके साथ मित्रताकर सर्वदा करनेपर नरकान्तमै जन्म ले मनुष्य शोथोदरी होता है। वनमें व्याधकी भांति मृगादि मार घूमनेसे नरकान्तको ५६ जलोदर-ब्रह्मा, विष्णु और महेखरको भिन्न | पुनर्जन्म पानपर मुष्कादिरोग लगता है। समझनेसे जन्मान्तरमें जलोदर रोग लगता है। ६४ उन्माद-वैष्णव, पितामाता तथा ब्राह्मण ५७ योथ-विना अपराध वेब प्रभृतिसे किसीको प्रभृति सम्मानाई व्यक्तिको न पूजने, अथवा निन्दा मारनेपर जम्मान्तरमै थोथरीग उठता है। करने, किंवा ब्राह्मण गुरु प्रभृतिके प्रति दण्डाचरण ५८ मूत्रकृच्छ्र-विधवागमन वा मद्यपान करनेसे रखने और उनकी स्म तिधमकारी कोयो द्रव्य देनसे नरकान्तमें जन्म ले मूत्रकृच्छ्र रोग भोग करते हैं। जन्मान्तर, उमाद पाता है। ५८ मूत्राघात-दम्पतोके मैथुनमें विघ्न डालनेसे ६५ अपस्मार-कोप बढ़ने, उपकारोके निकट जम्मान्तरको मूत्राघात रोग होता है। अवतन्न बनने, अधम मानवके साथ ब्राह्मणका ग्रास ६.अश्मरी-अप्रीति वा क्रोधसे ऋतुमाता स्त्रीक रोक रखने अथवा रब्न द्वारा गोमुख जकड़नेमे नर- पास न जानेपर मृत्यु के पीछे पूषयोपितपूर्ण नरक कान्त व्याल, व्याघ्र और शूकरयोनि भोग मनुष्य भोग परजन्मको अश्मरी रोग दौड़ता है। होनेपर अपस्मार रोग झेलना पड़ता है। ६१ मेहकर्मानुसार विगति प्रकार मेह होता १६ अस्थिशून्नादि-छागी, तिलधेनु, लोहवर्म, है। १ शूकरयो निमें मैथुन करनेसे उट्रक मेह चलता तिवाजिन, गज, सालुक, मधु, तेन्न, लवण एवं महा- है। २ माढगमनसे मधुमेहकी उत्पत्ति है।३रजको दान लेने किंवा कामवय, अधर्मावरण पूर्वक मैथुन Vol. . IV. 43