पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१७२

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१७३ काम। कमान्तर-कर्मी कामका पनाम । ३ कार्यप्रबन्ध, कामका इन्सिलाम । यज्ञ एक दीवानी और दो फौजदारीको प्रदानते ४ अष्टभूमि, जीता हुवा खेत। हैं। पुलिसके तीन थाने लगते हैं। नानाप्रकार शस्य, "महन्यान्यवन कर्मान्तान् वाइनानि।" (मनु १७१८) माष, शण, सर्पप और अपरापर ट्रव्य उत्पन्न होता है। सोनारीमें प्रति वर्ष मेला लगता है। कर्मान्तर (सं० क्लो०) कर्मणः पन्तरं तस्मादन्य इत्यर्थः। तत्. । १ कार्यान्सर, दूसरा २ कर्माल उपविभागका प्रधान नगर। यह प्रक्षा० १८. २४०पौर देशा० ७५.१४२०" २ यज्ञादि धर्म कार्यके मध्यका अवकाश, कामके बीचकी छुट्टी। ३ प्रायश्चित्त, कफारा। पू० पर अवस्थित है। शोलापुर कर्मात ६८ मौत -उत्तर-पश्चिम पड़ता है। नगरका क्षेत्रफल १८८ कान्तिक (सं० पु.) कर्म अन्तिके समीपे यस्य, एकर है। बहुव्री। १ कमैकारक, कामकाजी। (त्रि.) पाहले कर्मालमें निम्बालकर मण्डलेश्वरोका आधि- २ प्रन्तिम, पाखिरी। पत्य था। उन्होंने एक सुन्दर दुर्ग बनाया। प्राजकल कर्मार (सपु०) कर्म लोहनिर्माणादि कार्य गच्छति उसमें अंगरेज कर्मचारियोंका कार्यालय खुचा है। पापोति, कर्मन्-ऋ-अण्। १ कर्मकार, लोहार । दुर्ग प्रायः चौथायो वर्गमील विस्तृत है। उसमें १०० "हमारस्य निषादस्य रखावतारकस्य चा" (मनु भ२२५) मुह बने हैं। किसी समय यहां बड़ा वाणिज्य व्यव- २ वंश, बांस। ३ कमरङ्ग, कमरख । साय था। पूना, अहमदाबाद, शोलापूर, बारसी कर्मार-काठियावाड़के झालावाड़ विभागका एक शुद्र प्रभृति स्थानसे अनेक द्रत्यसामग्रियां पाती-जाती थी। राज्य। इसकी भूमिका परिमाण ३ मौच मात्र है। किन्तु आजकल वह बात नहीं रही। फिर भी पशु, यहां एक सामन्त रहते हैं। वर्ष ७६६१) शस्य, तैल, वस्त्रादिका बड़ा बाजार लगता है। देशी राज्यका पाय है। इसमें २११) २० अंगरेज सर- कपड़ा बुननेके कयी करघे चलते हैं। वार्षिक मेला कार और कोयौ ५१) रु० जनागढ़के नवाबको राजस्व- ४ दिन रहता है। यहां विद्याचय, औषधालय, खरूप देना पड़ता है। डाकघर और पाठागार विद्यमान है। कर्मारक (सं० पु. ) कर्मार स्वार्थ कन् । १ कर्मार, कर्माविधायक (सं० वि०) कर्मणः प्रविधायकः, ६-सत् । लोहार । २ कर्मरत वृक्ष, कमरख । (वि) कार्यको विधान करनेवाला, जो काम बताता हो। ३ कर्मप्राप्त, काम पाये हुवा। कर्माधय (सं० पु०) कर्माणामाशयः, ६-तत् । कर्मक कारम्भ (सं• पु०) कर्मका प्रारम्भ, कामवा पागाज। धर्माधर्मका गुण, कामकी भलाई वुराईका वस्फः । .. काह (सं. पु.) कर्म अर्हति, कर्मन्-मई-पण् । कर्मिक (सं० वि०) कर्म असत्यस्य, कर्म-ठक् । कर्म- १ मनुष्य, आदमी। (वि०) २ कर्मके योग्य, काम विशिष्ट, कामकाजी। कर सकनेवाला। कर्मिष्ठ (सं० वि० ) अतिथयेन कर्मी, कर्मिन्-इष्ठन् । कर्माल-१ बम्बई प्रान्तके शोलापुर जिले का एक उप इने लुक् । अतिशय कार्यकारक, काममें लगा विभाग। यह पक्षा. १७५७ तया १८३२३० और रहनेवाला- देशा० ७४ ५२ एवं ७५. ३१ पू॰के मध्य अवस्थित | कर्मिष्ठता (सं• क्ली.) कर्मिष्ठस्य भावः, कर्मिष्ठ-तल्- है। भूमिका परिमाण ७६६ वर्ग मील पाता है। टा। प्रतिथय कार्यकारिता, काममें लगे रहनेकी इस उपविभागमें कोयी १२२ ग्राम और ३२०० हायता मंह होंगे। पश्चिमको भौमा और पूर्वको सौना नदी | कर्मी (स'. पु.) कर्म प्रस्थास्ति, कर्म-इनि। १ कर्म- प्रवाहित है। कर्मालका अधं भाग उर्वर एवं वणवणं विशिष्ट, कामकानो। २ फलको पाकामासे यज्ञादि पौर अपराध रतवर्ण तथा रतीला है। कार्य करनेवाला। Vol. IV. 44