पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१७३

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.. 11 कोर-कबुरः कर्मीर (सं० वि०) कर्म-ईरन्। चित्रित, चितकबरा । । कवंटक (सं० पु० क्लो) कवंट स्वाथै कन् । १ सवंट, कर्मारक (सं० पु.) शाखोट वृक्ष, सहोरेका पेड़।। मण्डी, शहर। २ पर्वतका उत्सङ्ग, पहाड़का उतार। कमेन्द्रिय (सं० लौ० ) कर्मणां सम्मादनाय कर्माथे कवंटी (सं० स्त्री० ) कवैट-डोषः। नदौविशेष, एक वा इन्द्रियम्, मध्यपदलो। वाक्यादि कर्म सम्पादक दरया। (रामायण). • पञ्चेन्द्रिय, काम करनेवाला रुक्क । वाक, इस्त, पद, कवर (म. लो०) कृवरच् वा कु विक्षेपे वरच् । गुध और उपस्थ पांच कर्मेन्द्रिय होते हैं। यथाक्रम कृचतिभ्यः वरच् । उप रा१२३ । १ व्याव, बाघ । २ राक्षस। इनका कार्य उच्चारण, पादानादि, गमनादि, उत्सर्ग ३ पाप । ४ कर्म, काम । ५ औषधविशेष, एक दवा । और आनन्द है। फिर अधिष्टाढदेवता वडि, इन्द्र, कवरी (सं० स्त्री० ) कवर डोष। १ उमा, पार्वती। उपेन्द्र, मित्र और ब्रह्मा हैं। इन्द्रिय देखी। २ व्यांनो, बाधन) २ हिङ्गपत्री, एक घास । ४ राक्षसौ। कर्मीदार (सं० पु०) उदार कर्म, इज्जतका काम। कायत नगर-मन्दाजके उत्तर अरूकदु (अर्काट) कर्मोयुक्त (सं०नि०) कर्मणि उद्युक्तः, ७-तत् । कर्मका | जिले की एक बड़ी जमीन्दारो। यह अचा० १३. ४ उद्योग लगानेवाला, जो खूब काम करता हो। तथा १३.३६ ३० ७० और देगा० ७५. १७ एवं कर्मोद्योग (पु.) कर्मका उद्योग, कामकी कोशिश । ७. ५३ पू के मध्य अवस्थित है। भूमिका परिमाण करी (हिं. पु०): १ तन्तुवायके सूत्रप्रसारणका कार्य, ३८० वर्गमील लगता है। लोकसंख्या प्रायः तीन जुलाहोंके सूतको फैला ताननेका काम। (नि.) लाख है। इससे उत्तर चन्द्रगिरि, पूर्व कालहस्ती तथा २ कठोर, कड़ा। ३ कठिन, सख्त । चङ्गालपट, दक्षिण बालाजापेट और पश्चिम चित्तर करीना (हिं.क्रि.) कठोर पड़ना, सख्त बनना। पड़ता है। कर्वायत नगरमें पार्वत्य भूमि पधिक है। करी (हिं. स्त्री०) १ वृक्षविशेष, एक पौदा। यह मन्द्रानरेलवे यहां चलती है। नगरी पर्वतसे काह देहरादून तथा अवधके वन और दक्षिणात्यमें होता काटकर मन्द्राज भेजते हैं। मोमें साठ भाग भूमि

है। इसका पत्र पति दोघं रहता और मार्च मास कषिके योग्य नहीं। शेषके अर्धा में इस चलता

भड़ता है। फल जन मास पका करता है। करों के है। नील बहुत होता है। कषक परिश्रमी और पत्ते यशको खिलाये जाते हैं। बुद्धिमान हैं। पुत्तूर और तिरुतानीमें सब-मजिष्ट्रेट कवं. (सं० पु०) किरति विक्षिपति चित्तं विषयेषु, कृ. रहते हैं। पटनिर्माण प्रधान भिल्यकर्म है। इस स्थानको किसी किसने बनाराज कहा है। प्रथम व। कृपदम्यो षः । तथ् ॥१५५ । १ काम, खाहिश, प्यार। २ इन्दुर, चहा। कर्णाटिक युद्धके समय बम्मराज नामक एक पति- कवट (सं• पु. लो:) कर्वप्रटन्। दो शत ग्रामके गार राजवं करते थे। कर्वायत. नगरका पेयकम मध्यका सुन्दर स्थान, दो सौ गांवके बीचको अच्छी वा स्थायी कर प्रायः २७०७३५) रु. है। जगह। २ शतग्रामवासियोंके क्रायविनायका स्थान, इस भूभागके प्रधान नगरको भी कर्वायत नगर जिस शहरमें सौ गांवके लोग जाकर लेनदेन करें। हो कहते हैं। यह पुत्तुरसे मौल पश्चिम अव- ३चारो ओर समग्राम, चौकोर गांव । ४ चतुर्दिक स्थित है। कर्वायतनगर पहले ८ फीट उच्च प्राचौरसे समान टहस्थान विशेष, चौकोर बराबर घरको जगह। सुरक्षित था। दक्षिण और पश्चिम एक-एक. तोरणद्वार ५ नगर साव, कोई शहर । रहा। पाजकल वह बात नहीं, केवल भग्नावशेष कवंट-बङ्गासने दक्षिणका एक प्राचीन जनपद । मार्क- ण्डेयपुराणमें इसका नाम कवटासन लिखा है। कवुदार (स.पु.) कवं दारयति, कव-ठण-दृ-पम् । कीविदार वध, कचनारका पेड़। : .. "तावलियच राजानं कटाधिपति बथा। कवुर (सं० पु.) कर्वति हिनस्ति, कई तरच ! सुधानामधिपतवच सागरवासिमः।" (भारत २३०१२) - पड़ा है।