पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१८०

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कलकत्ता १८१ - रखनेसे सानिध्य वश कोयी असुविधा देख.न पड़ी। जब-चारनक सूतानुटीमें* पहुँच घाटसे कुछ अष्टम-गङ्गा पूर्ववङ्गको पन्यान्य नदीको भांति वन्य दक्षिण एक हत् निम्ब वृषके नीचे झोपड़े डाल रहने और प्रवच कहां। नवम-सूतानुटीके निकट अनेक लगे। उक्त निम्ब वृक्षके नामसे ही वर्तमान 'नौमतला' बहु जमाकीर्ण ग्राम थे। सुतरा व्यवसाय और वस नाम निकला है। १८८३ ई०को पानन्दमयोके मन्दिर वासको सुविधा रही। दशम-सूतानुटीमें उस समय निकट पग्निदाहसे गिरनेवाला प्राचीन निम्बद्यक्ष नव- - तन्तुवाय बहुत वसते थे। वह वस्त्र बुनने और सूत्र चारनकने समय का नहीं। कारण उस समय नीम- प्रस्तुत करने में विशेष पारदर्थों रहे। सुसरा उन्हें तल्लेको भूमि गङ्गाके गर्भमें डूबी थी कोठोके अधीन रख वस्त्र व्यवसाय खोज सकते भी १९८७ ई के फरवरी मास जब चारनक को संवाद विशेष लाभ उठानेकी पाया मिला,-'नवाब शायस्ताखान्के सेनापति अब्दुल वौं दिसम्बरको जब-चारनकने समदखान बहु संख्यक पखारीही सैन्य ले हुगली हुगली छोड़ी। वह अपने समस्त वाणिज्य द्रव्य और पहुंचे है। बङ्गालसे अङ्गारेजों को निकाल देना ही यावतीय कर्मचारी ले सूतानुटो पहुंचे। जिस स्थान उनका उद्देश्य है।' इससे उन्हें सूतानुटीमें भी रहना पर जब चारनक प्रथम सतर, उसको सूतानुटी कहते युतिसङ्कत देख न पड़ा। कारण बङ्गालके नवाबसे थे। उस समय भूतानुटौम तुला, सूत्र और वस्त्रका लड़ने योग्य स न्यबल न था। फिर उस प्रकार अरक्षित वानार लगता था। बाजारके सामने ही अङ्गारेजोंक उतरनेका घाट रहा। कम्पनीके अमुद्रित पवादिमें नढोके दक्षिण गोविन्दपुर ग्राममैं जाकर इसे। साकोंके कथनानुसार एक मानचित्र है। इसमें सूतानुटीका स्थल निर्दिष्ट युरोपीयोंके साथ बाणिक्य करनेक लोभसे ही घर गोविन्दपुरमै रहने लगे। है। सम्भवतः सूतानटी वर्तमान पाहोरोटोलेके उत्तर चिन्तु यह बात ठीक समझ नहीं पड़ती। कारण वाणिज्यके लिये उन्हे' चम्पातले और रचतले घाटके निकट थी। फिर भी केन्द्र युगसो या उसके निकटवती स्थानको जाना था। इतनी दूर पाणा पावश्यक न रहा। फिर सेठके वंशधर अपने पादिपुरुष मुकुन्दरामसे ५०० सूतानुटी घाटका यथार्थ पवस्थान अाजकल नगरके पुरुष, कालिदास बसाक बंशधर सय पुरुष और पन्ध सौन-वसाकौंकि पूर्वांशमैं पड़ गया है। प्रवादके अनुसार सूतानुटीका यधर १५२ पुरुष अधक्षम थे। यह बंशावली देखने से समझा पड़ता,- घाट और हाट वर्तमान बड़े-बाजारके सेठ-वसाकोंक उपादिपुरुषोंके नाते समय (५० पञ्चदय मतान्द) सप्तयामको अवस्था यनसे बना था। उस समय सुतानुटी और उसके अधिक बिगड़ी न थी। उस समय भी समयाम बङ्गालन प्रधान वाणिज्य दक्षियवर्ती कलकत्ते तथा गोविन्दपुर ग्राममें उनका स्थान था। इससे खदेभम किसी विशेष कारण वश उत्पीडित और वास रहा। विरक हो वह पात्मीय वान्धवसि दूर रहने के लिये हो गोविन्दपुर गये। क्योंकि उस समय कलकत्तेक प्रसिद्ध बाणिना स्थान रहने का कोई प्रमाण Vide Map attached to the Selections from Unpub नहीं मिलता। ई०१५ शताब्दकी वाणिज्यको पाशासे उनका गोविन्द- lished Records of Government. पुरजाना कैसे ठहर सकता है। + सेट वसाक कहत-कशताब्द पूर्व मधामके प्रधान वाणिज्यकेन्द्र *सके ठहरानेका कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता-सूवाउटाका . समयामक नोचे सरखती नदीका (पाजकल पान्दूल, महियाही और नाम युरोपीयोको किसने दिनसे अवगव बार बारीष्टिन नामक किसी राजस्तके नौवेसे पाकर वो भदौ गहाम मिल जावी, वह सरस्वती कहानी बौद्धन्दाम साहबने १९ ५०को एक मानचित्र बनाया। इसमें सूता- धौ। विशौक नीचे सरखवीका कुक विद्यमान है। किन्तु पादि नटोके स्थल पर "विशनुटो" (Chittanuttee) नाम पड़ा है। फिर पाकी भांति सरखती भी पिगड़ गया है। पादिगा स्थान स्थान करनेन यूखनै 'धिया, हातस के बागजपत्र देखते समय कई बहुत पर पूर नानसे 'घोषगडा' और 'बीसगका' नामक पुष करयो मावमैं पुरानो चिड़ियां पायौं। उनमें एक सूतान टोसे १६८ की २५ को परिपत हुयी। सौ प्रकार मावजदछ, ननाई प्राप्त पामक नीचे दिसम्बरको लिखी गई थी। उनकै पुस्तकसे भी समझ पड़ता-पर- सरस्वती नदी के पुरातन गर्भविशिष्ट सराकर और चित्र देख पढ़ते है।) रेजोंको १८८१ से पहले स्तान टी स्थान मालूम रहा। एल साहवन "सोत- घट बानिसे यलो शहर कालका सबसे बड़ा बाधिन्यस्यान कहा-१५०५० सखिय पाइलट और प्राचीन समंद्रयावियोंक बन ममा था। उस समय रेठोके एक साकोर चार आदिपुरुष सूता मानचिन'मैं सूवानु गैसा बना है। Vol. IV. 46