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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१८२

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कलकत्ता १८३. हिदके जहाजोंम रहे। उन लोगों के प्राणको प्राशा व्यवसाय कार्य चलेगा, किन्तु उनके मरनेपर फिर रहते भी हिदने सैन्य सामन्त बढ़ा बालेखर आक्रमण फोटं सेण्ट बाज (मन्दाज)के अधीन रहेगा। किया। बालेश्वर आक्रमणके दिन ही टाकेवाले दूतने चारनकके मरनेपर बवाल पुनार मन्द्राजके आकर संवाद दिया-नवावकी फौज अगरेजोंके अधीन पधीन हुवा और उनका पद इलिप साहबको मिला। बाराकान अधिकार करेगी। हिंद धयाम लेने की किन्तु इलिस कमिसारोजेनरल और सुपरवाइजर सर सम्भावना देख उत्ता प्रस्ताव सम्मत हुये। १९८८ई की जे गोडसवरको सन्तुर कर न सके। इसलिये उनके पद १३ वौं दिसम्बरको वह बालेखर छोड़ चट्टग्रामको पर ढाकेकी कोठी के अध्यक्ष प्रायार साहव नियुक्त हुये। और चले थे। चग्राम सुरक्षित देख आराकानक १६८५ ई.को डिरेकगेके श्रानानुसार सूतानुटी राजाको इस्तगत कर उन्होंने कार्योहारकी चेष्टा वडालके प्रधान एजेण्टका वासस्थान हरायी गयो लगायो। किन्तु राजार्क उत्तर देने में विलम्ब हुवा। उस वर्ष सूतानुटीम २००१) रु. शुल्क लगा था। इससे दिने चयाम पाक्रमण करनेको ठहरायो। १६८६ ई में एक घटना वश युरोपीय वणिकीको उन्होंने पूर्वोक्त छुटे लोग बङ्गालमें हो छोड़ पन्च सकलको विशेष सुविधा हुयो। शोभासिह नामक वधमानके मन्द्राज पहुंचाने लिये १३ वौं फरवरीको यात्रा की। किसी ताल कदारने उक्त स्थान के राजाको मार उड़ी- पौरङ्गजे, बने इस संवादसे विगढ़ देशसे अगर जोशी सेवाले पठान सरदारके साहाय्य से बहालवाले सूर्व- निकालनेका आदेश दिया था। फिर नाना प्रत्याचार दारकै विषधर्म विद्रोहका पनन भड़काया था। यह हुये। भागस्ता-खान्ने ध वयसमें घागर जाकर प्राय राजद्रोह दबाने की ययोरके फोजदार नवना पर भार छोड़ा। पलवदी खान्के पुत्र इनाहीम खान नवाब पड़ा। किन्तु वह भोरता वश हुगलोक किलेगे भाग बने। वह बड़े दयालु थे। उन्होंने नवाव होते ही गये। विद्रोहियोंने सुविधा देख हुगली पधिकार सब बन्दी अङ्गारेजीको छोड़ दिया और समाटका किया। शोमासिइने बङ्गालकै अधोद्धा बनने को भो आदेश मंगा बंगदेशमै अङ्गरेज लाने के लिये चारनकको वड़ा उद्योग लगाया था। इसी सुयोगमें परेज, 'पत्र लिखा। अोलन्दाज, फरासीसी प्रभृति युरोपीय वणिकोको १६८० १०को २४वी० अगस्तको अरेज सूता- अपने उपनिवेश सुरक्षित रखने के लिये नवाको अनु। नुटीम पाकर स्थायी रूपसे रहने लगे। वादशाही मति मिली। फलनः कलकत्ते में परेजोका दुर्ग कोप, वात्सरिक ३०००) रु. जमा दै पूर्व की भांति बनने लगा। इङ्गालेण्डके तत्कालीन राजा विलि- बङ्गालक नाना स्थानों में कोठी बनाने और व्यवसाय यमके नामसे दुर्ग खड़ा किया गया। वाणिज्य चलानको (१६८१ ई०, हिजरी १००२) नव उपरोता घटनासे सम्राट् औरङ्गजेब बङ्गालके चारनकने नवाब इब्राहीम खानसे सम्राट्का दिया सुवेदार इब्राहीम खानपर असन्तुष्ट हुये। उन्होंने उनके भादेश पाया। अङ्करेनों को सूतानुटीम उपनिवेश स्थापन लड़के वाजिम-उस-शानको बङ्गालका सुवेदार बनाकर करनेकी अनुमति मिलते भी दुर्गको बनानेको आज्ञा १८८८ ई.को पहरेज़ वणिकोने मुद्रा न यौ। फिर १६८२ ई०को १०वी० जनवरीको तथा विविध उपढीकनादि प्रदानपूर्वक प्रीति बढ़ा धारनक मर गये। डिरेकने आना रखी थी,- पानिम-उस-शानसे सूतानुटो, कलकत्ता और गोविन्द- चारनकके जीवनकान्त पर्यन्त वङ्गालम मन्द्रानसे पृथक पुर तीन ग्राम क्रय किये भेजा था। 2 ! Broom's History of the Rise and Progress of the Bengal Army, Vol. 1. p. 26. A

  • Vide Bruce's Annals of the East India Cos.

Vol. III. p. 113-4. + Vide Historical and Topographical Sketch of Calcutta, by James Rainos,