पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१८६

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कलकत्ता १८० थे। उन्होंने लिखा, 'नदी किनारे दक्षिण गोविन्दपुर और उत्तर बराहनगरमें कम्पनीके उपनिवेशका एक सोमाचिङ्ग रहा। इन दोनों चिटोंका व्यवधान तीन कोस होगा। भूमिकी ओर धापे या लोने विल

तक सीमा यौ। फलतः निर्णय कर नही सकते-

उस समय कलकत्ते की प्रवत सीमा क्या रही। १७८२ ई०को भास्कर-पण्डितले परिचान्चनाधीन मराठे उड़ीसस मेदिनीपुर तथा वर्धमानकी राह राज. महनतक नगर एवं पल्लोग्राम समस्त लूटने लगे। . फिर उन्होंने कलकत्ते के सत्रिक भागीरथीके अपर यार टाना किला छोन हुगची लूटी। उस समय -भारीरयोके पश्चिमपारवाले अधिवासियों ने कलकत्ते में 'धा पाथय लिया था। मराठोंके आक्रमणसे रक्षा करनेको अगरेजोंने पूर्व पार रहते .भी कलकत्ते को चारी और किलेको एक गहरी खाई खोदनेके लिये नवाब अलोवर्दी खान से अनुमति मंगायो। सूनानुटीके 'उत्तर अंशसे गोविन्दपुरकै दक्षिण अंश पर्यन्त खाई खोदनकी बात थी। छह मासमें डेढ़ कोस (तीन मोल) भूमि खुदी। किन्तु अचीवदों के अध्यवसाय- में मराठ कचकत्ते से ३० कोस दूर ही रहे। इस लिये खाई खीदना रुक गया। इस खाईको "मराठा -खात" (Mahratta Ditch) कहते हैं। श्यामवाज़ारके 'निकट दमदमे जाते समय इस खात (खाई)का स्थान 'मिलता है। अमौ साहबके मतानुसार अधिवासियोके "ही अनुरोध और व्ययसे यह खाई खोदी गयी। हलवेल साइनका कहना है-१७५२ ई को भी सिमुलिया, मलङ्गा, मिर्जापुर (कलकत्तेके एक महल्ले) और हुगलकुड़ियामें कुल ३०५० चौधे भूमि थी। यह 'धारी स्थान उपनिवेशको सीमा न रहने कम्पनीने खरीदनको विशेष चेष्टा लगायो, किन्तु अधिकारियों की 'किसी प्रकार सम्मति न पायो। सुतगं यह कई स्थान कलकत्ते की सौमासे बाहर थे। किन्तु बनियापोखर, पटलडांगा, टांगरा और धनन्द मिलकर २८८ चौधे भूमि कन्चकत्ते के अंशमें परिणत रही। दो वर्ष पोछे अर्थात् १७५४ ई०को हलवेल साहबने कम्पनीके लिये रसिक मनिंक और नवायग मल्लिकसे २२८). मूल्यमें सिमुचिया खरीद ली। १७५६ ई०को सिराजुद्दौलाने कलकत्ता आक्रमण और अधिकार किया था। उस समय उनके पादेयसे अल्पकालके लिये ) इसका नाम 'अलीनगर' रखा गया। फिर अन्धकूपहत्या हुयी। दूसरे वर्ष ही जनवरी मास क्लाइव पोर वाटसनने बान्तकता ले लिया) उमीचन्द, अन्धकूप पोर साइव शब्द देखो। १५५७ ई. की बौं फरवरीको सिराजुद्दौलासे सन्धि चली। सन्धि ठहर गया,-"कम्पनीको सनदसे मिले पर ग्रामीका अधिकार देना पड़ेगा और वैचनेमें जमी- न्दारीको कोई वक्तव्य न रहेगा।" पलामो युद्धके पीछे नवाव मोरजाफर नये सूबे- दार हुये। उन्होंने किसी सन्धि हारा अक्षरेजों को कलकत्तेका मौरूसी नमोन्दार बना दिया । पचासौ और मोरनाफर देखो। उस सन्धि द्वारा मध्यस्थित भागको छोड़ मौरजा- फरने कम्पनीको कलकत्ते को सीमासे बाहर ११०० हस्त परिमित भूमि सौंपो थी। फिर उन्होंने काल- कत्ते से दक्षिण कुचयो तक कम्पनीको जमीन्दारी ठहरायो। मौरजाफरको आज्ञा थी-इस अंशक समत. कर्मचारी कम्पनौके अधीन रहेंगे और दूसरे जमी- न्दारोकी भांति पङ्करेज़ भी राजख दे देंगे। दूसरे वर्ष १७८५ ई०के दिसम्बर मास फर्द- सवानातसे ताजुक या जागीरको तौर पर कलकत्ता कम्पनीकै हाथ पाया। अर्थात् अङ्करेज वणिक कोने अपनी कोठी सुरक्षित रखनेका अधिकार पाया । बन्दरोंको देखमाल भी उन्होंके अधीन रहने मौरजा- फरने ८८३६) • रिहा कर कम्पनीको कवकना, Selections from the Unpublished Records of the Government, p. 56. it Bolts Indian Affairs, p. 81. - D.Rise, Progress and State of the English Govern meat in Bengal, by Harry Vereilest, 1772. App. p. 164 • Orme's History of Iodia, Vol. II, p. 15. + Holwell's Indian Tracts, 2nd ed. 1761. p. 140.