पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनुसन्धानसे अव्याइति और मुर्शिदाबादकी टकसारमें कलकत्ता विलियम हामिल्टन नियुक्त हुये। १७१५ ई०के प्रार• बढ़ गया। अङ्गारेजोने वाणिज्य द्रव्यादिको नौकावोंके मकाल दूत लोग कलकत्तेसे युरोपजात बहुमूल्य विविध द्रव्यादिका उपढौकन ले प्वौं जुलाई के दिन तीन दिन कम्पनीका रुपया ढालनेको अनुमति पायो। दिल्ली पहुंचे सूतानुटी, कलकत्ते और गोविन्दपुरके लिये परेजोको उस समय सम्राट् फरुखसियार के साथ अजित्- कोई ११८५) रु. वात्सरिक देना पड़ता था। फिर सिंह नामक राजपूत राजाको कन्याका विवाह था। ८१२११) रु. अधिक प्रति वर्ष वादशाही कोषमें किन्तु सम्राट ऐसे पीड़ित हुये कि राजकीय चिकित्सक भरना स्वीकार कर उता ग्रामवयक सनिकट दक्षिणको यथासाध्य चेष्टा लगाते भी रोगको दवा न सके। भागीरथोके उभय पार पांच कोसके बीच उन्हें ३८ फलतः विवाह कक गया। फिर खान-दौरानके अनु ग्राम मोल लेनेका आदेश मिला रोधसे सम्बाट्ने समागत अक्षरेज दूतदलके डाकर सम्राटसे इस प्रकार सनद ले अनिमें नवाव सुरथिद- हामिल्टन साइजको अपनी चिकित्सा करनेकी कुलो-खान् अङ्गरनों पर बहुत बिगड़े थे। ग्राम अनुमति दी। सौभाग्य-क्रमसे उन्होंने विलक्षण खरीदनेको सबाटकी आमा अवज्ञा कर प्रकाश्यमें वित्रतासे साथ अति अल्प कालमें ही सम्घाटका रोग किसी प्रकार शुब्रताचरणका साहस न देखाते भी आरोग्य किया। इस घटनासे हामिल्टन साहब सम्राट्के गुप्त भावसे उक्त ग्रामोंके नमीन्दारीको उन्होंने धमका विशेष प्रियपात्र बने। रोगसे मुक्ति लाम करने पीछे दिया। नवाब कुलीखान्ने चुपके कक्षा था, सम्राट्ने राजकीय वदान्यताका यथेष्ट परिचय दे कितना ही अधिक मूल्य मिलते भी यदि कोई प्रतिज्ञा की थी,-हामिल्टन साइब जो मांगेगे, वह जमीन्दार अङ्गरेजोंके हाथ अपनी भूमि वेचेगा, सो यथासाध्य यावेंगे। हामिल्टन साहबने भी बाउटनको वह हमारे कोषका प्रभाव देखेगा। उन्होंने अपने भांति अपना स्वार्थ और लाभाभिलाष सम्पूर्ण रूपसे छोड़ | मनमें सोचा-यह सकल स्थान हाथ लगनेसे भागीरयो जिसमें दौत्यकार्यको प्राये अङ्गरेजों का मनोरथ पूर्ण सम्यूण रूपसे अङ्गरेजोंके पायत्ताधीन हो जायेगी और पड़ता, उसोको प्रार्थना किया। सम्बाद उनका वैसा इच्छानुसार उभय पार'दुर्गादि बननेपर उनकी शक्ति निःस्वार्थभाव देख चमत्कत और सन्तुष्ट हुये। उन्होंने वृधि पायेगी। प्रतिज्ञापूर्वक कहा था,-विवाहकार्य सुसम्पन्न होने बोलट साहबके कथनानुसार सम्बाट्न सब ३८ पर आपकी प्रार्थना विशेष रूपसे सोच समझ अपने ग्राम अक्षरेजोंको दे न डाले थे। उन्हें उपयुक्त मूख साम्राज्यको मर्यादाके उपयुक्त देने में हम उठा न दे केवल क्रय करनेको पाना रही। जमीन्दार प्राम रखेंगे। रोगशान्तिक पीछे ही विवाह सुसम्पन्न बैचनेको सम्मत न हुये, किन्तु अजरजोने पन्तको इवा। किन्तु १७१६ ई.से पहले पारेज अपना अनेकोंसे प्रतारणा अथवा बलपूर्वक ग्रहण किये। भावेदनपत्र सम्राटके समीप पहुंचा न सके। फिर कपतान हामिल्टन १७१० ईको कलकत्ते पाये विलक्षण उस्कोचके साहाय्यसे भरेज-दूतोंका उद्देश्य सफल हुवा। १७१७ ई के समय (हिजरी ११२)

Appendix C, History of the Rise and Progress of

बङ्गाख, विहार और उड़ौसमें वाणिज्य बनाने के लिये the Bengal Army by Oapt, A. Broome and East Indian Records, Book No, 293. ईष्ट इण्डिया कम्पनीको सम्राट् फरुखसियारसे सनद + Broome's Rise and Progress of the Bengal Army, मिली थी। तदहारा कम्पनी का पूमाप्त अधिकार Vol. I. p. 86. Stewart's History of Bengal, p. 395-6; Auber, Bolt's Consideration on Indisu Affairs, 1972, App. p. I note Vol. 1, p. 16.