पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१९५

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१९५ कलचुरि-कलछुला शताब्दको (५६७.६१० ई० ) चालुक्यराज मङ्गलोथने । वृहत्संहिता तथा पाणिनिके अखादिगमें प्रार्जुना- किसी किसी कलचुरि राजाको हरा करद बनाया था। नयन शब्द एक जनपद और उसी जनपदवासीक फिर भौ डाइल और कर्णाटके उत्तरांच, इस लिये पाया है। वराहमिहिरने उक्त जनपदको वंशक राजावाने ई० द्वादश शताब्द पर्यन्त निविवाद भारतके उत्तरपत्रिम प्रश्नच अवस्थित प्रपरापर राजनचलाया। डाइलमपल देखो। जनपदोंके साथ उल्लेख किया है। उनका मत माननेसे इस वंशन प्रायः नौ सौ वर्षकाल उत्तर वैपुर वा पार्जुनायन पाणिनि-गणोक्त प्रख (पक्षक) जनपदके चेदि, पथिम भेलमा (विदिशा ), पूर्व छत्तीसगढ़, निकट पड़ता है। आर्यावर्त वधा आर्शनायन देखो। वर्त- और दक्षिण गोदावरीतट पर्यन्त विस्तीर्ण भूमिखण्ड / मान जलालाबाद जाते समय उक्त स्थानको लोग उपभोग किया। 'श्राब्जुन' कहा करते है। प्राचीन कालको उसी यह सब शैव वा शनिके सेवक थे। चेदिवाले कल. प्रदेश और सन्ननपदवासीका नाम प्रार्जुनायन था। चुरिराज कर्णदेवके अनुशासनमें सुवर्ण वृषभधन और कलचुरिवंश समुद्रगुप्तके पनुसाशन-स्तम्भका वर्णित चतुहस्तपरिशोभिता हस्तिपरिहता कमलाको मूर्ति पाई नायन हो नहीं सकता। पक्ति है। इनके पुत्र गाङ्गेयदेवकी वर्णमुद्रामें पूर्वकालको कलरिराज एक खान्न संवत् भी चतुर्कस्ता पावतोमूर्ति मिलती है। व्यवहार करते थे। इनके पनुशासन तथा खोदित- देशावली नामक रखतग्रन्यमें 'करचुरि' राज- शिलाफलकमें उक्त संवत् व्यक्त हुवा है। पूतोंका नाम लिखा है,- कलचुरि संवत्का प्रारम्भकाच निर्णय करना "चौहानय दौषितय रेकीवारततः परम् । सुकठिन है। प्रत्नतत्वविद कनिकामके मतमें कम- करचलिः परिहारी चाग्देवासी भूपोचमः ॥ चुरिराजकटक कालचर पधिकारके समय छत बाघेलो वयसो भूपः कया राजपुत्रकः । संवत् चन्दा है। वह २४९-५० ई० को उसका राठोरो रणरय राणाख्यरषदुनयः । भारम्भकाल बताते हैं। फिर अध्यापक किरहोरनके विशेषः प्रवषो पुरे दादयाः परिकीर्तिताः। (रपस्तम्भ-विवरण) मतानुसार २४९-३८को उक्त संवत् चचाया गया। यह करचुलि राजपूत किसी समय बघेलखण्ड (Cunningham's Indian Eras, p. 60; Arcbæs- (प्राचीन चेदिराज्य )में रहे। रेवासे ५ कोस उत्तर logical Survey of India, Vol. IX. p. 9; Aca. पूर्व भनेक सम्भान्त राजपूत वास करते और अपनेको December 1887, p. 394; R. Sewell's 'कारचुलि राजपुत' कहते हैं। यह बताते,-"हम Sketch of the Dynasties of Southern India, देय वयीय सहस्रार्जनके वंशधर है। हमारे पूर्व पुरुष रायपुर-रतनपुरसे पाकर इस प्रश्वल में बसे थे।" कचका (हिं. पु.) बदाकार चमस, बड़ा चम्म । करचुल वा कारचुलि राजपूत ही सम्भवतः कलछो (हिं. स्त्री.) सुट्चमस, छोटा चम्मच । प्राचीन शिलानिपिवर्णित कलचुरि वा कालचुरि | कलकुल (# स्त्री० ) खजाका, करछो। यह चोहे होंगे। प्रनतत्वविद फौटने इन्हीं कलचुरिवंशी या पोतलको होती है। लम्बी डण्डीके सिर पर इसी योको पार्जनायन माना है। ( Fleets' Inscrip. जैसा एक चौड़ा हिस्सा लगा रहता है। यह तरकारी tionum Indicarum, Vol. III. p. 10) fara टालने या पूरी कचौरी निकालने में काम प्रातो है। स्खल पर हम क्लोट माहबका मत कैसे युक्तिसङ्गस कलछुना (हिं. पु०) १ बादाकार चमस विशेष बाह सकते हैं। कार्तवीर्यार्जुनके वंशधर हैक्य नामसे बड़ो कलकुल । २. चवेना भूननको एक छड़। परिचित हैं। वह किसी पुराण या प्राचीन ग्रन्थमें लोहका होता है। इसके सिरेपर एक कटोरा सगा भानुनानयन लिखे नहीं गये। किसी किसी पुराय, । देव हैं। भड़भूज चबेना या बहुरो भूनते समय भाइसे demy, p. '286.) 1