"क" शब्दका कम्फा-- क्य्फा (हि.पु.) १ पहिफेनखेद,अफीमका पव। है। माके जो उल्लिखित पञ्चविध कार्य कोदनादि इसमें वस्त्र आकर मदक प्रस्तुत करनेको शुष्क करते हैं। २ चालनी, गिरवाला, साफ़ा। यह एक पृथक पृथक पड़ते, उन्हें भी इस स्खलपर लिखते हैं- प्रकारका वस्त्र होता है। किसी पात्रके मुख में लपेट "के दमः के दयचत्रमात्मशक्त्याऽपराण्यपि । इसपर अफीमको शुष्क करते है। अनुपहानि च में मस्खामान्यटककर्मणा । रमयुक्तामवीय इदयस्थानलम्दनम् । कप्यास्य . (६० पु.) कपिराख्या यस्य, बहुव्री। विकसकारणचापि विदधात्ववन्दम्बनः । १ वानर, बन्दर। २ सिल्हक, लोबान्। रमनावस्थित परमनी रसोधनात् । कण्यास (सं० यु०) कयौनां प्रास: (प्रास्यते अनेन सेम: खेदानेन ममतेन्द्रियतदा । इति भासः), ६-सत्। वानरगुद, बन्दरको पीठके से भणसर्वसन्धीनां यं शेष विधायसी (सनुन ) सामनेका हिमा। रमले दन नामक प्रेमा पपनी शक्तिसे भुत कफ (सं० पु.) वेग जलेन फलति, क-फरख-ड। ट्रव्यको भिगाता और पिचावति सकस आहारीय बन्दम्वपि दृश्यते । या शरा। शरीरस्थ धातुविशेष, श्लेमा, वस्तुको गलाता है। फिर यह भिन्न (गम्बा हुवा) बलगमा अर्थ देह और “फल" धातुका अब देके अन्यान्य सकन्न स्थानों में पहुंच हृदयाव- . अधे मति है। सुतरां इससे स्पष्ट समझ पड़ता- सम्बन, विक (मेरुदण्डके निम्न एवं उपरिस्थ सन्धि- प्राणियोंके देश में सर्वत्र गमन करनेवालेको विद्वान् कफ स्थान अर्थात् गुहाके सबिलट शेषास्थि तथा धाट), 'कहता है। यह शरीरस्थ सौम्य (जलीय, स्निग्ध सन्धारण, रसग्रहण एवं इन्द्रियसमूहको चैत्यगुणसे सुगतिथिह) धातु है। हिन्दी में भी इसे प्रायः कफ ही सन्तप्तिकरण तथा सन्धिसंश्लेषण प्रभृति उदककर्म कहते हैं। इसका संस्मत पर्याय-लोदन, सहात, द्वारा धानुकूल्य पहुंचाता है। श्य-वक्षःस्वन- सौम्मधातहेमा, धन और बली है। कफ देहको धारण खित अवलम्बन नामक नेप्या रसके सहयोग करनेसे 'धातु, समस्त देहकी दूषित करनेमे 'दीप' खोय शक्ति द्वारा वृदयको अवलम्बन और विक- पौर रद द्वारा सर्वशरीरको मलिन करनेसे 'मल' देशको धारण करता है। क्य-रसन नामक बहलाता है। यह नाम, स्थान और कार्यभेदसे पांच रसनास्थ कफ प्राहारीय वस्तुसमूहके रसका भान मागमें विभक्त है- उपमाता है। हम नामक लेमा यदार्य प्रदानपूर्वक कि समस्त इन्द्रियकी ति लाता है। "कफ तानि नामानि के भयावसम्मनः । रखनः बहनयापि प्रय: स्थानभेदसः" (मन्नत) ५म-अपय नामक कफ सन्धिसमूहका संश्लेष (मेल) बदन, २ भवसम्बन,'३ रसन, ४ इन और विधान करता है। वाभटके मतसे- पण कफके पांच नाम हैं। "कृपयावाशिषायां यत् करोषवलम्बनम्। असोऽवलम्बकाशेपा यस माश्यसथितः । "पामायये ऽथ उदये कर शिरसि सन्धिषु । केटक: चोऽवसाझेदनात रसदोषनाता स्वादिष्वेषु मनुष्या या विष्ठत्यक्रमात " (सुखवोध) पोषको रसमास्थायी शिमलोऽधितर्पयत्। पामाशय, २६दय, ३ कण्ड, ४ मस्तक, और तक: समिम पापकः सन्धिषु स्थितः। (वामठ) सविसान-शरीरके पांच स्थान में श्लेमा प्रधानतः रहता है। लेदन नामक याका आमाशय, अव अवलम्वक, लोदक, श्लेषक, बोधक एवं तर्पक- पांच नामसे कफ ५ भागमें विभक्त है। अवलम्बक, सम्बनका दय, रसमका कण्ड, मेडनका मस्तक नेमा पूर्वोक्त अवलम्बन कफीक क्रियाशील एवं और क्षेत्रणका पाध्यस्थल सन्धिखान है। सर्वशरीर- ब्याणी होते मी जब यह पविक्षत अवस्वामि रहता, तब तथा स्थानमत, अथक पूर्वोक्त अभबके साम किया बैंक्समात्र पूर्वात प्रामाशयादि पक्षसानमें ही ठहरता खानगत, केदक मेमा केदनको मांति कार्यकारी
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२०
दिखावट