- समय सर्वदा परमायु होगा २१४ कलि और उसको भगिनांके गर्भसे कलि उत्पन्न हुवा। जातीय और धनन्लोलुप बनेंगे। स्त्रियां पतिशय दुर्दान्त, उसका रूप तैलस युक्त अजनकी भांति कृष्णवर्ण, कर्कश, कलहरत और पतिनिन्दक निकलेंगी। पृथिवी कराल, जिद्धा लोल, उदर काकको तरह और सर्वाङ्ग अख्य शस्य उत्पादन करेगी। मेव अधिक न बरसेंगे। में पूतिगन्ध था। ऐसी ही भयानक मूर्तिके साथ वाम चौमें स्वल्प फन लगेंगे। माता, पामोय, अमात्य हस्त द्वारा उपस्थ धारण किये कलिने जन्म लिया और प्रमृति सामान्य मान धनके लिये परस्पर लड़ेंगे। मद्य जन्म लेते ही स्त्री, मद्य, द्यत, सुवर्ण प्रभृतिमें पासव पौने और मांस खाने में कोई न हिचकेगा। सबको हो गया। कलिके औरस और उसको भगिनी दुरुति- निन्दा होगी। पापियों को दण्ड न मिलेगा। के गर्भसे 'भय' नामक पुत्र तथा 'मृत्य' नामो कन्याको माघी पूर्णिमाको शुक्रवारके दिन कलियुगको उत्- उत्पत्ति हुयो। (बल्कि १०) पत्ति हुयी थी। इसका पायुःकाल चार लाख बत्तोस कलियुगका लक्षण-जिस मिथ्या, हजार (४३२०.०) वत्सर है। आर्यभटक मतमें तन्द्रा, निद्रा, हिंसा, विषादन, शोक, मोर, हीनता | कलियुग १५७७८.१७५० दिन रहता है। प्रभृतिका प्रभाव रहेगा, उसोका नाम कलिकाल श्रीमद्भागवतमें वर्णित है, कलिमें मनुष्यों का ५. पड़ेगा। वर्ष । कलिके दोषसे देहियोंका देश इस युगमें मनुष्य कामी और कटुभाषी होंगे। क्षीग पड़ जायेगा। वर्षायमाचा चोगोंका धर्मपथ सकल जनपद दस्यपीड़ित रहेंगे। चारो वैद पाषण्डसे बिगड़ेगा। धार्मिक पाषण्डप्राय वनेंगे। राजा दस्य- दूषित बन जायेंगे। राजा प्रजापीड़न करेंगे। ब्राह्मण प्राय निकलेंगे। मनुष्य चौर्य, मिथ्या, व्याहिंसा शिश्न और उदरपरायण बनेंगे। ब्राह्मणबालक व्रतशून्य पादि नाना हत्तियां पकड़ेंगे। ब्राह्मण आदिवर्ष और बाचि निकलेंगे। मितु परिवारपोषक देख शूद्रप्राय ठहरेंगे। गो छागतप्राय रहेंगे। बन्धु योन- पड़ेंगे। तयत्री ग्राममें टिकेंगे। न्यायो प्रथलोलुप प्राय होंगे। मेध विद्युत्प्राय देख पड़ेंगे। पोषधिका उधरेंगे। फिर मनुष्यमाव.सुद्रकाय, अधिक भोजनशील गुण घटेगा। पर्वत नीचेको झुकेंगे। यह शून्याय और चौयं माया प्रतिमें समधिक साहसी होंगे। और धर्मरहित बनेंगे। चीग दुःसहचेष्टित देख पड़ेंगे। कलिकालमें भृत्य प्रभुको और सपाखी व्रतको त्याग फिर धर्मके परिवाणको सत्वगुणसे भगवान् कल्कि पव- करेंगे। शूद्र तपोवेशके उपजीवी बन प्रतिग्रह लेंगे। तीर्ण होंगे। पाप ( परीक्षित)के जन्मसे महानन्दक सब मनुष्य सहिग्न, अनलकार एवं पिशाचतुल्य हो राज्याभिषेक पर्यन्त १९५० वर्ष बीतेंगे। सप्त नवना. प्रस्खात अवस्थामें भोजन करते भी अग्नि, देवता, मक सप्तर्षि मण्डलके मध्य उदयके समय दो नक्षत्र- अतिथि प्रभृतिको पूनेंगे। पिण्डोदक क्रिया लोप हो रूप ऋषि पाकाशमें प्रथम उदित होते देख पड़ते हैं। जावेगी। सकल ही स्त्रीरत और शूद्रसम बनेंगे। उन दोनोंके बीच समदेशपर अवस्थित अखिनी पादि स्त्रियां भयभाग्य, अधिक सन्तानवतो और सस्पतिकी नधन रातको रहते हैं। उनमें एक एक मिल सप्तर्षि अवज्ञाकारिणी निकलेंगी। कोयो विष्णुको पूजा मनुष्य परिमापके सौ सौ वत्सर अवस्थिति करते है। न करेगा। किन्तु कलिकालमें एक भलाई रहेगी, वह सकल ऋषि अब पाप (परीक्षित )के समय में कि कृष्णनाम कीर्तन करनेसे ही मानवको मुलि मधाको पकड़े हुये हैं। सप्तर्षि मण्डलके मधानधन मिलेगी। (गस. १९००) में घूमनेसे कलिको प्रवृत्ति के १२०० वर्ष बीतेगे। फिर उनासतम्धमें भी कलियुगका लक्षष कहा सन्ध्या प्रतिक्रान्त होगी। जिस समयसे सप्तर्विमहत इस युगमें वैदिको शिक्षा, पौराषिकी शिक्षा और पाप मघा छोड़ पूर्वाषाढाको चलेगा, उस समय पर्थात् पुस्थको वेदसम्भव परीक्षा सोपी जायेगी। स्थान नन्दाभिषेक सक कलि पतिथय बढ़ेगा। जिस दिन स्थान पर गङ्गा शिवभिन देख पड़ेंगी। राजा म्लेच्छ जाणका बेकुरह जाना दुवा, उसो दिनसे कलियुग सगा -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२१३
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