पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२१२

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कलावन्त -कलि मस्य वः। सार भूतहि आदि विधानकर शिष्यके देहपर मन्चोक रहती है। महावत कलावें में अपना पैर डाल हाथोको न्यास करना पड़ता है। कुम्भस्थ देवताको पञ्चोप हांकता है। ४.इस्तिकण्ठ, हाथोकी गरदन । चारसे पुनार पूज अलमृत पिथको अन्य प्रासनपर कलावान्. (सं० पु.) कलाः सन्तान, कला-मतुप बैठाते हैं।. कुम्भके कल्पक्षरुप सकल पन्नव शिष्यके १ सोतविद्यावित्, कमावत। २ चन्द्र, मस्तकपर रख मन ही मन माटका जपपूर्वक वशिष्ठ चांद। ३ नट, कन्नाबाजी करनेवाला । (त्रि.) संहिती अभिषेकके मन्त्रसे कुम्भका जल विष्यक ४ कलाविशिष्ट, हुनरमन्द । शरीरपर सेवन करना चाहिये । शिय अवशिष्ट कलाविक (स.पु.) कर पाविकायति विशेषण जलसे पाचमन ले वस्त्रदय परिवर्तनपूर्वक गुरुके रौति, कल-पा-वि-के-क। कलाधिक, मुरगा। समीप उपवेशन करता है। फिर गुरु शिष्यसंक्रान्त कसाविकल (सं० पु०) कलया कामावेशेन विकल- और भामदेवताको एक समझ गन्धादि द्वारा वश्वलः, ३-तत्। चटक, चिड़ा। चटक देखो। पूजते हैं। कलाविधितन्त्र .(क्लो०) एक सन्त्रशास्त्र । .

इसके पीछे मन्त्रसे शिष्यको शिखा बांध थियके कलास (सं• पु.) वाद्यविशेष, एक वाजा। यह

शरीरम कलान्यास और मस्तकपर हाथ रख १०८ वार अतिप्राचीन समयमें बजाया और चमड़ेसे मढ़ाया मन्त्र जप कर 'मैं अमुक मन्त्र तुम्हें सुनाताई' कहते जाता था। हुये शिष्यके हाथपर नलदान करना पड़ता है। लासारसन्न (स. क्लो०) एक तन्त्रशास्त्र। शिष्यको भी 'ददस्ख' कहकर जल लेना चाहिये। फिर कलासी (हिं. स्त्री०) रेखाविशेष, एक सतर। दो गुरु ऋष्यादियुक्त मन्त्र हिजातिके दक्षिण कम तीन तख तोंके जोड़की लकीरको कलासी कहते हैं। : वार तथा वाम कप में एकवार और स्त्री वा शूद्रके वाम कत्ताहक (सं० पु.) कलं पाहन्ति, कत्त-श्रा-इन्-ड कम तीन बार एवं दक्षिण कण में एक बार सुनाते संज्ञायां कन्। काइल नामक वाद्ययन्त्र, एक वाजा। है। मन्त्रग्रहण पछि शिष्यको गुरुके चरणपर गिर- कलि (सं० पु०) कलवे कलेराश्रयत्वेन वर्तते, जाना और गुरुको उसे मन्त्र द्वारा उठाना चाहिये। १ विभीतक वृक्ष, बहेड़ेका पेड़। नवराजाके निर्यातन- शिष्य उठकर उक्त मन्त्र १०८ वार नपता और कुम, को किसो समय कलिने विभीतक वृक्षका अवलम्ब तिल एवं जल ले गुरुको स्वर्ण खण्ड दक्षिणा तथा लिया था, इसीसे उसका नाम कलि .पड़ गया। दीचाके ग्रहणकी समस्त सामग्री प्रदान करता है। (वामनपु० २०१०) कलते स्पर्धते । २ शूर, वीर, वहादुर। अन्यान्य ब्राह्मणों को भी यथाशक्ति दान दे परितुष्ट कलन्त स्पर्धमाना भाषन्ते । ३ विवाद, झगड़ा। करना पड़ता है। गुरु मन्चदानके पीछे अपनी शक्तिको ४ युद्ध, नहायो। कलयति पापिन जड़यति । ५ युग- रक्षाके लिये १.०८ वा १०८ वार मन्त्र जपते हैं। विशेष, एक जमाना। चतुर्थ युगको कलि कहते हैं। अन्तम वाहणोको मिष्टान्न आदि खिला शिष्य भोजन कल्किपुराणमें कलियुगको उत्पत्ति-कथा इस प्रकार- करता है। कारण दौमाके दिन गुरु और शिष्य से लिखी है,- दोनोंको उपवास निषिद्ध है। प्रलयके अन्तर्म लोकपितामह प्रयाने पृष्ठदेशले कचावन्त (हिं.) कवावान् देखी। पापमय भलिन घोर अधमकी सृष्टि की थी। अधर्मन कलावा (हिं. पु.) १ सूत्रविशेष, सूतका एक अपनी मानोरलोचना मिथ्या नाम्रो पबीके गर्भसे बच्छा। यह टेकुवेमें लिपटा रहता है। २ मङ्गलसूत्र, 'दम्भ' नामक पुत्र उत्पादन किया। फिर दम्भने राखीका चच्छा। इसका सूत्र रतपोत रहता है। इसे माया नाम्रो स्त्रीय भगिनीके गर्भसे लोभ नामक पुत्र महत कार्य में हस्त तथा कलस प्रभृति पर लपेट देते और 'निवति' नात्री कन्याको निकाला था। इन्हीं हैं। ३ सस्तीके कण्ठका एक सूत्र । इसमें कयौ नरें | माता भगिनीसे क्रोधने जन्म लिया। क्रोधके पौरस Vol. IV. 54