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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२६

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होंगे। हम उन्हीं तीनों भायियोंके साथ कमि क्षय अतिथियोंकी रोमाञ्चितकलेवर कोसंवर्धनाको। मुखसे करेंगे। हमारी प्रियतमा लक्ष्मी पशा नाम पर सिंहस वैठने पर पिटकोडस्थ वासकको देखते ही उन्होंने देशमें ट्रथकी पत्नी कौमुदीके गर्भसे जन्मग्रहण समझ लिया, कि भगवान ने कलिकल्याविनाशके करेंगी। देवगण, तुम भी भूमण्डलमें अपने अपने लिये वह रुप परिग्रह किया था। वह बालकका अंशसे अवतार सो। हम तुम्हारे साहाय्यसे देवापि 'कल्कि' नाम ठहरा और नातकर्म तथा नामकरणादि और मर नामक दो राजावोंको पूथिवोके राज्य पर संस्कार करा प्रसन्न मन विदा हुये। फिर गंगे, भग, बैठा सत्ययुग तथा धर्म चलावेंगे। विष्णु को यह बात विशाल प्रभृति नामोसे देवता कल्किको जातिमें अवतार लेने लगे। सुन ब्रह्मा देवोंके साथ लौट पड़े। देवौको विदाकर भगवान ने शम्भलपाममें विष्णु उस समय शम्भल प्रामके निकटस्थ प्रदेशमें यथाके भारस और समतिके गर्भसे जन्म निया। इससे विशाखयूप नामक नरपति राजत्व करते थे। वह पहले कवि, प्राज्ञ और सुमन्त्रक नामसे विष्णुयशाके ब्राह्मणों के प्रतिपालक रहे। कुछ काल पीछे कलकिका तीन पुत्र हो चुके थे। यथाकाल वैशाख मासकी वयस उपनयनके योग्य होने पर विष्णुयशाने कहा,- सला हादशीके दिन भगवान्ने अवतार लिया। इस वत्स! हम तुम्हारा यज्ञस्वरूप प्रधान संस्कार सम्पन्न बार भी वह कृष्णावतारकी भांति भूमिष्ठ होते ही करेंगे. फिर तुम्हें चतुर्वेद पढ़ना पड़ेंगे। कल्किने यह चतुर्भुज देख पड़े। महाषषो धानी बनी थीं । भगवती बात सुन पूछा, वेद, सावित्री, यज्ञसूत्र, बाण, पम्पिकाने मामिच्छेदन किया। भागीरथीने गर्भका दशविध संस्कार, विष्णुपूजा प्रमतिका अर्थ क्या था। केद निकाला था। सावित्री देवीने नहलाया-ध्रुनाया फिर वह प्रश्न करने लगे,-जो बॉण सत्पथ पर था। पृथिवी देवीने दूध पिनाया था। षोडशमाट चल हरिके प्रिय बनते और विलोकका अभीष्ट तथा काने पायीर्वाद दिया। प्रया स्वर्गसे भगवान्को निखिल भुवनका उचार साधन करते, वह कहां चतुर्भन मूर्तिम अवतीर्ण होते देख बहुत घबरा गये। मिलते हैं। विष्णुयशाने इस प्रश्न उत्तर करिके उन्होंने पवनको सूतिकाण्ठहमें भेजा था। पवनने अत्याचारकी कथा सुनायो। पिताके मुख कलिका पाकर भगवान्के कानमें कहा-प्रभो। पापको संवाद पाकर कल्कि मानो जाग उठे। उनके मन में चतुर्भज मूर्तिका दर्शमनाम देवतावों को भी दुलभ कलिके निग्रहका अभिवाष उत्पन्न हुवा. था। पीछे है. सूतरां इस मूर्तिको छिया मनुष्यमूर्ति धारण यानियम उपनयन शेष होनेपर वह गुरुकुलमें कीजिये। भगवान् पवनके मुखसे ब्रह्माका अभिप्राय रानेको चल दिये। समझ उसी क्षण विभुज :मानव शिश बन गये। उस समय परशुराम महेन्द्र पर्वतपर वास करते विष्णुयशा एकायेक पुत्रका रुपान्तर देख विस्थित हुये। थे। उन्होंने कलिको भाते देख पाश्रममें लाकर . किन्तु विष्णुको मायामें मोहित हो उन्होंने पूर्वदृष्ट अपना परिचय दिया। और फिर वर कहने लगे, रुपको भ्रम ठहरा लिया। 'हम तुम्हें पढ़ावेंगे। भृगुवंशमें जमदग्निके औरससे भगवान्के जन्म ग्रहणसे शम्भलग्रामका. पापताप अमारा जन्म है। वेदवेदाङ्गक तत्व और धनुर्वि- भन्साहित हुवा था। अधिवासी मङ्गलानुष्ठान करने धाम हम पारदर्शी है। हमने समुदय प्रथिवी नि:- खगे। पुत्रको क्रमशः प्राप्तवय देख विष्णुयशाने वेदविद - क्षत्रियकर बामणोंको दक्षिणा दी है। भाजक ब्राह्मण वुला नामकरणका आयोजन उठाया था। तपयरपके लिये इसी महेन्द्रपर्वत पर रहते हैं। नामकरएक दिन परशुराम,कृपाचार्य, प्रखत्यामा पौर हमें गुरु समझो और अभिषित शास्त्र अभ्यास व्यासदेव भिक्षुकका रूप बना शिशरूपी हरिको देखने करो। कल्लिा परशरामको बात सुन पुचकित हुये गये। विष्णुयशाने पदृष्टपूर्व सूर्यसम तेजस्वी चारो और प्रणाम कर उनके निकट रहे। उन्होंने चतु:- .