पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२८ कल्कि करिक अवतार वष्टि कला साद और धनुर्वेद पढ़ दक्षिणा देना चाहा था। परशुरामने दक्षिणा की बात सुन कर कहा,ब्राह्मणकुमार। भगवान् ब्रह्माने विष्णु- से कलिनिग्रहके निमित्त प्रार्थना की थी। विष्णुने वही प्रार्थना पूर्ण करने का अवतार लिया है। तुम वही पूर्णब्रह्मरूपी हरि हो। तुमने हमसे विद्या पढ़ी है। भागे तुम शिवने अस्त्र तथा सर्वज्ञ शुक यक्षी और सिंहलदेशको राजकन्या पद्मानानी लक्ष्मी पावोगे। फिर तुम्हारे हाथ से धर्महीन नृपतियों का विनाश, कलिका निग्रह और स्वधर्मका संस्थापन किया जायेगा। तुम पन्त, मरु पौर देवापिको पृथिवीके राज्यपर अभिषिक्षा कर गोलीक पहुंचोगे। तुम्हारे इस साधुकार्यके पनुष्ठानसे हम परम प्रसन्न होग। यही हमारी दक्षिणा हैं। कल्किने गुरु- देवसे आज्ञा ले विम्बोदकेश्वर नामक शिवमन्दिर, विशाखय्प भी स्वयं धर्माचरण अवलम्बन पूर्वक पहुंच महादेवको पूजा और सति को। स्तवसे विशुद्ध हृदय प्रजापालन करने लगे। कलिने तुष्ट हो देवादिदेव पार्वतीके साथ प्राविभूत हुये उपयुन समय देख खड्ग तथा धनुर्वाण लिया और और वर देकर कहने लगे,-'तुमने जो स्तव बनाकर अखपर चढ़ माहितीपुरको पोर गमन किया । पदा , वही सब पढ़ने वालेका सामोष्ट सिद्ध होगा। उनके दो भाता और गग भगीदि जातिगण मी यह द्रुतगामी बहुरूपी गाड़के अंशसे सबूत प्रश्न और पोछे पीछे चले। विशाखयप कलिको पाते सुन . यह सच शक तुम्हें देते हैं। पाजसे. मानव उन्हें भागे बढ़े थे। उन्होंने पुगेहार पर पहुंच देवता- सविध शास्त्र में निपुण, वेदपारदर्ज और सर्वभूत- परिहत उच्चैश्रवारोही इन्द्रकी भांति स्खननवेष्टित विजयी उम्मेगे। यह महाप्रभाशाली रत्नखचित | · कल्किको टण्डायमान देखा। विशाखपने अवनत मुष्टिाचार कराल करवाल पक्षण कगे। इसीसे हो कलिकाको प्रणाम किया था। कल्किाने मी प्रसन्न पृथिवीका भार हरण करना पड़ेगा। यह कह कर दृष्टसे उनकी ओर देख दिया। भगवानको कृपादृष्टि महार्टव रहित हुये। कल्कि भी हर पार्वतीको प्राप्तकर शिखयर सो दिनमे पुण्य मा बंष्णव बन गये। प्रणाम कर शिवदत्त वस्तु उठा पख पर चढ़े और कल्क गजाके साथ रहने लगे। फिर उन्होंने अपने घरको लौट जाये । विष्णुयशा पुवके मुखुरी संक्षेपमें प्राथमधर्मका निर्देश नगा कहा था,- अवगत हो इधर उधर उस समस्त कथाको पालो- हमारे अंशकाले कनिके पास घशचार बर्न, किन्तु चना करने लगे। क्रमश: राना विशाखयपको पन हमसे पा मिले हैं। तुम राजस्य और अश्वमेध यन्न कर हमारी उपासना उठावो। हम परमलोक खबर लगी। विभाखयप सुनते ही समझ गये, कि यथार्य विष्णु अवतीय हुये थे। कारण जिस और मौं सनातन धर्म है। काच, स्वभाव और संस्कार हमारा धनुगामी है। हम चन्ट्रीय देवापि समय कारकन जन्म लिया, उसी समयसे उनकी राजधानी मरमती मगरीमें याग, दान, तपस्या तथा सूर्यशीय मरुको धर्मराज्य पर संस्थापित और सत्य युग प्रवर्तित कर गोचौक चले जायेंगे। विभाग- और व्रतका अनुष्ठान होने लगा। ब्राह्मण, चविय और वंध्य प्रादि अपना दुराचरण छोड़ते थे। इससे यूपने यह बात सुन करिकसे देशव धर्म का प्रसार पूछा।