। २३२ कलिक वशिष्ठ, गालव, भृगु, पाराशर, नारद, टुर्वासा, देवल, उसके पछि करिक विशासन राज्यपर पर चढ़े। व ख, अश्वत्थामा, परशुराम, कृपाचार्य, त्रित, वेद विशाखयप, देवापि और मरु उनके पीछे थे। धर्म प्रमिति महर्षि रहे। उनके साथ मर और देवापि भी उसी समय वृद्द बामणवेशमें करिकके निकट नामक दो राजर्षिभी आये थे। कल्कि के परिचय अपना परिचय पा उनको पाखास दिया था। कोकट पूछने पर मरने कहा,- ,-'सूर्यवंशोभूत अग्निवर्णका बौडौके विदलित होनेकी बात सुन धर्म आल्हादित पौत्र और शास्त्रका पुत्र ई। व्यासदेवके मुखसे कल्कि हुये और सिद्धाश्रम अपने परिजनों को छोड़ कल्किके अवतारको कथा सुन दर्शन करनेको यहां चला पाया। पीछे चल दिये। देवापिने अपनेको चन्द्रवंशीय प्रतीपकरका पुत्र बताया। कन् कि खुश, काम्बोज, शवर, ववर प्रभृतिको वह थान्तनुको राज्य सौंप कलायग्राममें तपस्या करते दवाने के लिये कतिको पुरीके अभिमुख हुये। थे; व्यासके मुखसे कल्किका संवाद सुन देखनेको कलिको पुरी अत्यन्त भीषण थी। उसे देखते ही पहुंच गये। लोग कांपने लगते। सर्वदा भूत, सारमेय, काक, उनका परिचय पाकर भगवान् कल्किको पूर्वकथा उलूक और शृगाल वहां देख पड़ते थे। गोमांसका स्मरण पड़ी। उभयको पाश्वास दे उन्होंने कहा, पूनिगन्ध सर्वत्र परिपूर्ण रहा। कामिनियां धुत, 'मरु ! प्रजापीड़क तथा प्राणिहिंसक म्लेच्छोंको विवाद प्रति विषयों में अनुरक्त थीं। फिर मार तुम्हें अयोध्याके और पुक्कादिका उच्छेद साधन वही वहां कर्वी रहीं। अन्य प्रभुको बात चलती कर देवापिकी हस्तिनापुरके सिंहासनपर बैठावेंगे। तुम न थी। अस्त्र शस्त्र कतविद्य हो। अब योडवेशमै रथपर चढ़ कलिने ककिदेवको लड़ने आते सुन खोय मारे साथ चली। मक! तुम विशाखयूपको सुन्दरी परिजन बुला लिये। फिर वह पेचकाच रयपर चढ़ चिराङ्गी कन्याको पनी बनावो और देवापि तुम भी विशासन नगरके वाहर जाकर लड़नेको प्रस्तुत हुये। सचिराख यतिकी कन्या शान्ताको विवाह कर लावो।' कल्किने ससैन्य रणक्षेत्र पहुंच धर्मसे कति, ऋतसे कल्कि यह बात करते ही पाकासे अस्त्र-शस्त्र दम्भ, प्रसादसे बीम, प्रभयसे क्रोध, सुखसे भय, दृषसे मन्जित दो रथ सतर पड़े। उससे सबको विस्मय लगा व्याधि, प्रश्रयसे ग्लानि और मतिसे जराकी सड़ाया था। कल्किने कहा,-"तुम दोनों लोकपातनाथै था। अन्यान्य प्रतिइन्दियों में भी उन्होंने युद्ध घोषणा सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, यम पोर कुवेरके अंशसे धराधामपर करायो। क्रमक्रम विषम युह उठा था। पाशायी अवतीर्ण हुये हो। तुम्हारे ही लिये इन्द्रके प्रादेशी देवता देखने गये। मरु रामा खशों काम्बोजो, देवापि विसकर्माने यह रथ बमाये हैं। तुम इनपर चढ़कर चीनावों वर्वरी और विशाखरूप पुलिन्दो चण्डालोस हमारे पीछे पीछे चली। उनकी इस बातपर पुष्पहष्टि लड़ने लगे। कलिके काक और विकाक नामक दो होने लगी। दानव सेनापति थे। बकासुरके पौत्र और शकु. उसी समय सनक सदृश एक तेजापुन बमचारी निके पुत्र रहे। दोनों देखने में एक रूप थे। मासे जा पहुंचे। कल्किने पाद्यादि द्वारा उनकी पूजा कर पर पा वह देवतावाँसे प्रनय रहे। उन दोनों वीरोंक परिचय पूछा । ब्रह्मचारीने कहा,-'कमलापते । गदाहस्त रणमें कतरनेसे मृत्यु भी डर कर भागते थे। मैं आपका पादेशवह सत्ययुग ई। पायका पावि कल्किदेव खयं काक और विकाकके प्रतिहन्दी बने। र्भाव और प्रभाव देखानेको यहां पा पहुंचा है। युद्धमें प्रस्नोको भाड़ा झड़ी और वोरीको कड़ाकड़ीसे सत्ययुग यह कह कल्किका स्तव करने लगे। फिर पृथियो धरधराने लगी। अवशेषको कलिक पनुचर परावित हो नाना देयों में चले गये। कलि खयं हारने वह उनके अनुगामी वने थे। महर्षियोंने अपने अपने पर सीखामिक भवन में घुसा था। येचकापरथ पर स्थानको प्रस्थान किया।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२३१
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