पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२३०

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। कलिक ‘पर बैठाया। रथपर चढ़ते ही कलि नाग पड़े। है। भापाततः कुथोदरी हिमालय पर्वतपर मस्तक फिर व मुइत मध्य जिनके सम्मुख पहुचे थे। लगा और निषध पर्बतपर दोनों पैर फैला सो गयी युधमें इरा कल्किने उन्हें कटि तोड़ तोड़ मार डाला। है। हिमांचयको एक उपत्यकामें बैठ विकत जिनके चाता शुद्धोदन चारघातीसे प्रतिशोध लेने स्वन्यपानं करता है? उसो राक्षसीके निखोस गये थे। किन्तु कल्किके ज्येष्ठनाता कविने उनसे पवनसे प्रतिहत पौर विवश हो हम पापके शरण लड़ने लगे। शुद्धोदन और कविमें बड़ी गदायें चलौं। भाये । प्रापसे हमें चिरकान्त राक्षसी-मोतिने शुद्धोदनने कविको किसी प्रकार दवान सकनेपर माया उबारा है। इसवारभी आप कृपापूर्वक हमारा देवीका स्मरण किया। माया देवी सिंहध्वज रथपर दुःख मिटा दीजिये। चढ़ सैन्यके पुरोमागमें जा खड़ी हुई। मायाकै पाते करिक मुनियों की बात सुन हिमालयको उपत्यका ही कल्किका सैन्य अकर्मण्य बना था। बौधसेना पर पहुंचे थे। उन्होंने वहां एक दुग्धमयो नदी अति जयध्वनिके साथ आगे बढ़ी। किन्तु कारण समझनेपर खरसोतसे बहते देखीं। पूछने पर खबर लगी, कि कल्कि स्वयं मायाके सम्मुख जा पहुंचे। माया देखते हो वह कुथोदरीके एक स्तनको टुग्धधारा रहीं। विकन्न विष्णु के शरीरमें समा गयौं। मायाको न देख बौद्ध एकही स्तन पीता था। उससे पपर स्तनको दुग्ध सेना घबरायी थी। पन्तको युद्द होने लगा। क्रमशः धारा नदी बनकर बह चली। सप्तघटिका पोछे अपर शुद्धोदन, काकाक्ष, करोपरोमा प्रभृति बौद्धनायक खेत स्तन बदलते वह नदी सूख जाती और दूसरी ओर रहे। पनेक लोग भागे थे। फिर बौहपनियां लड़ने | नदीको दुग्धधारा बहते दीखती थी। फिर कनकि पहुचौं। कल्किने उन्हें अबलाजनसुलभ भवतित्व कुथोदरौंके भीषण अाकारको चिन्तामें पड़े और इसके समझा युइवे निवृत्त होनेको कहा। रमणियोंने अभिमुखको चल गये। उन्होंने जाकर देखा, कि उनकी बात म सुन पतिके शोकमें अस्त्र छोड़े थे। राक्षसीका कर्ण पर्वतगहरके भ्रमसे सिंहोंका पाश्रय किन्तु अस्त्रीने पत्र के प्रति न चच मूर्ति परिग्रह पूर्वक और लोमकूप पुत्रपौत्रादि सह हस्तियों के मुखसे रहने उनसे कह दिया,-जिन भगवान्को शक्तिकै आश्रयसे को निकेतन बना था। कल्किने राक्षसोको देख शर हम शत्रुवोको ध्वंस करते, यह वही भगवान् हरि देख · छोड़ा। राक्षसी शरविड होते गभौर गर्जन बरने पड़ते हैं। भगवान्ने प्रसाद के लिये जिस समय सिंह लगो। वह शब्द सुन कल्कि भी सेना मूछित हुयी। मूर्ति बनायी थी, उस समय भी हरिके गोत्रमें श्राघात फिर राक्षसीके खास लेते ही हस्ती, अख, रथ पौर मारने को हमारी कुछ चलने न पायो । .. अब हम पदासिके साथ कल्कि नासापथमें जाने लगे। उसने क्या कर सकेंगे। बौखकामिनियां वह बात सुन निकट पाकर सबको खा डाला। विस्मित हुयौं। और पवशेषको हरिके भरण गयीं। भगवान् कल्कि ससैन्य राक्षसोके उदरमें पहुचे थे। करिकने उन्हें भक्तियोगका उपदेश दिया था। फिर उससे भगतसंसार डर गया। फिर वह राक्षसोका उन्होंने भी क्रमशः मुक्ति पायो। उदर वाणाग्नि जला और करबालसे उड़ा बाहर कत्किने कोकटसे चक्रतीर्थकी जा सदल शास्त्र. निकले। सैन्य लोग भी योनिरन्धु कर्ण, नासारंध्र विहित विधानके अनुसार नान आदि किया था। प्रति स्थानों से निकल पड़े। कुथोदरी पञ्चवको 'एक दिन वहां भगवान्से वाल्यखिल्य नामक मुनियोंने पहुंची। विकन जननों को मरते देख निरायुध हाथ- विषय वदन जाकर कहा, कुम्भकर्णके निकुम्भ से कल्किना मारने लगा। कल्किने पञ्चवर्षीय भीषण नामक एक पुत्र रहा। उसके कुथोदरी नानी एक राक्षस शिशुको बध अस्त्रये यमालय भेज दिया। कन्या है। कालकन नामक किसी राक्षससे विवाह दूसरे दिन असंख्य ऋषि मुनि गङ्गाका स्तव पढ़ते वा। उनके विकल नामक एक सन्तान विद्यमान पढ़ते करिव को देखने गये। इनमें अत्रि, हिरा, -