पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२३५

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२३६. कारण कल्किापुराण: कल्किपुराणको.लोग हैपायन प्रणीत बताते हैं। कल्लिापुराणमें पुराणोपपुराण-वर्णित सकल किन्तु कोई कोई इस बातको नहीं मानते। विषयोंशी बहुल वर्णना नहों। लेखक इस सम्बन्धी वेदव्यासप्रणीत सकल पुराण धौर उपपुराण नामक जो कथायें लिखते,उनको देखते ही समझा जा सकता 'अन्यान्य ग्रन्थों में इसका नाम नहीं मिलता। एतद्भिन्न है कि वह सकच अंश केवल पुराणके सत्वशी रक्षा कल्किपुराणके मध्यही तृतीयांशके एकविंध अध्याय करने लिये ही ग्रन्थमें लगाये गये हैं। रघुवंग, नैषध, में एक स्थपर लिखा है, 'सकल पुराणाभिन्न बीम कुमार प्रभृति महाकायोंमें जैसे किसी एक व्यक्ति वा हर्षणनन्दन सूत वेदव्यासके शिष्य थे। हम उन्हें विषयको वर्णना चलती है, इसमें भी वैसे ही एक मात्र प्रणाम करते हैं।' यदि यह पुराण वेदव्यासरचित कल्किचरितको कथा मिलती है। कल्किपराणमें शृङ्गार, रहता, तो उनकी लेखनीसे स्खशिष्यले प्रति प्रणास शान्ति एवं वीररस विशेष देखाया, अन्यान्य रसोका जापक श्लोक लिखा देख न पड़ता। फिर कल्किा भाव अविस्पष्ट रूपले भन्नुकाया और पुराणादिको पुराणमें देदव्यासके रचना होनेका प्रमाण का भांति पुनशक्तिदोष वा अनर्थक प्रश्चय शब्दों का प्रयोग है १ . प्रथम अंशो शौनकादि ऋषियोंके प्रश्नानु नहीं लगाया है। चून सफल कारणों से इसको एक सार इस पुराणको व्याख्याका अनुबाम लगाया सुन्दर महाकाव्य कहना अधिश युन्तिमङ्गत है। इसको हैं। पुराणोत्पत्ति निरूपण करते समय उन्होंने कहा, रचनाप्रणाली पुराणों को भांति रसहीन नहीं। कल्लिा- 'पुराकालको नारदके पूछनेपर ब्रह्माने यह उपाख्यान पुरापको भाषाको भी प्राचीन कहर्नमें सन्देह है। सुनाया था। नारदने व्यासदेवके निकट व्याख्या की। इसमें कलियुग शेष पादशी वर्णना लिखी है। फिर वेदव्यासने स्वपुत्र ब्रह्मरात (शकादेव १)को उसके अनुसार कलिप्रभावसे समस्त पृथिवी एकवणे यह विवरण बताया था। ब्रह्मरातने अभिमन्यु के पुत्र होनेपर भगवान कल्लिा रूपसे जन्म ले कलिको विष्णु रात (परीचित १)को सभामें यह कथा कीर्तन घटावें और सत्ययुग चलावेंगे। सूक्ष्म भावमें मनोयोग को; किन्तु कथा शेष न हुयी। . विष्णुरात स्वर्गको पूर्वक विचार कर देखने से कल्किके समय पृथिवीको चले गये। मार्कण्डेय आदि महर्षियोंने शुकदेवसे वर्णित अवस्था शेपंपादकी नहीं-मघमपादकी घटना अनुरोधकर शेष पर्यन्त कथा सुनी थी। उनके मुखसे समझ पड़ती है। कल्किके साथ मायावादो बोका सुना हुवा विषय हम विकृत करेंगे। इसमें अष्टादश युद्ध जिस अंभमें लिखते है, वह अंश निविष्ट चित्तरी सइस मोका विद्यमान हैं। किन्तु बतीयांश के शेषपढ़नेपर सहनमें ही समझ सकते है शिवह वर्णना अध्यायमें ग्रन्थक उपसंहारकालमें उग्रशकै मुखसे भारतमें बौद्ध धर्म बदन समयको ठहरती है। यही ही मित्ररूप वर्णना मिलती है,-'निरतियशय- पापी बात कल्कि शब्दमें उद्धृत नोकरी भी प्रतिपत्र होती लोग भी इस पुराणके प्रभाव अभीष्ट लाभं कर सकते है। अनुमानसे कलिकपुराणकार उस समयके मातम हैं। इस कल्किापुराणके छह सहन एकशत झोकोंमें पड़ते,जिस समय दौड धर्मको प्रचलता घटनेसे ब्राझए- ‘सकल शास्त्रीका अर्थ और तत्व संग्रहीत हुवा है। धर्मके तत्त्व कुछ कुछ जपर उठत धे। उस समय प्रलयावधान में श्रीहरिके मुखसे यह काल्मिपुराण उनकी आंखों में भारतको जी दुर्दशा समायो, उन्होंने निकला है। इस पुराणसे चतुर्वर्ग मिलते हैं। भगवान् वही लिख करिकाक शेषपादको अवस्खा बतायो। वेदव्यासने ब्राह्मणजन्म परिग्रह किया था। उन्होंने कल्लिपुराणमें जिन स्थानों ( माहिती, शम्भत,. ही धरातलपर अवतीर्ण हो परम विस्मयकर भगवान कोकट, सिंहन, पाण्डा, सौद्य, सुराष्ट्र पुलिन्द मगध, कहिलके प्रभावको यह वर्णना सुनायो है।' पूर्वोडत मध्यकर्णाट, अन्ध, घोड़,..कलिङ्ग, अङ्ग, वङ्ग, कड़, दोनों अंश देख शोक संख्याक सम्बन्धपर. भी. विभिन्न कलापक, द्वारका, . मथुरा, वारणावत, परिखस, . कस्थल, माकन्द, इस्तिनापुरी, चोल, बवर, कपट,. रूप कथन मिलता है।