कलिकपुराण-कल्प २३७ भल्लाट, काश्चनपुरी प्रकृतिके नाम लिखे हैं, उनमें वह. सुने सुनाये हैं। भगवान्की लीला अपार है। अधिकांश प्राचीन पौराणिक देख पड़ते हैं। कौन कह सकता है भविष्यत्में क्या होगा? दूसरे करिफपुराणकारने मर और देवापिको पाण्डवों. त्रिकालदर्शी महर्षिका कथनोपकथन समझना भी से जतन चतुर्थ पुरुष शान्तनुका माता कहा है। कुछ सरल नहीं। ऐसी अवस्थामें कल्किपुराणका उल्लि- अन्यान्य पुरायोको कथा देखते युधिष्ठिरादिर्न कलिके खित विषय भक्तिसहकारसे मान लेना ही अच्छा है। प्रारम्भमें ६५३ वर्ष राजत्व किया था ! सुतरां उनसे कल्कफस (सं० पु.) कल्कस्य विभौतकस्य फलमिव जवंतन चतुर्थ पुरुष कैसे बहु परवर्ती कलिके शेष फलं यस्य, मध्यपदलो । दाडिमवक्ष, अनारका पेड़ । पादमें पा सकते हैं। मर और देवापिमें भी सात दाहिम देखो। पुरुषोंका पार्थक्य पड़ता है। फिर कल्कि अवतारके कल्करोन (सं० पु.) पट्टिकारोन, लाल लोध। पीछे सत्ययुगका प्रारम्भ लिखा है। यदि कल्किदेवने | कल्किधर्म, कल्कि वृद्ध देखो। देवापि और मरुको पृथिवीका राज्य सौंप सत्ययुगका कल्किप्रादुर्भाव (सं० पु०) कलक: दशमावतारस्य प्रारम्भ किया ऐसा स्वीकार करें तो वे सत्ययुगकै प्रथम प्रादुर्भावः उत्पत्ति कल्कि अवतारको उत्पत्ति। . राजा ठहरते है। किन्तु अन्य किसी पुराणमें यह कल्कि राज - एक प्राचीन राजा। गुप्त राजवंश कथा नहीं मिलती। कल्कि देखो। पोंछे इन्द्रपुरमें इन्होंने ४१ वर्ष राजल किया । इतिहासको छोड़ पुराणकथाकी भांति यथार्थ (नन हरिश) एनके माता राजा अजितजय थे। समझो और भक्तिके साथ विखास करें तो इसका (नेन उत्तर पुराण) वर्णित विषय भविष्यत्में होनेकी बात है। किन्तु कल किवच (सं०पु०) विभौतक वृक्ष, बहेड़ेका पेड़। कल्कि पुराणको वर्णना पढ़नेसे वैधा मालम नहीं कलको : (सं० पु०) कल्कः पापं नाश्यतया प्रत्यस्य, पड़ता। इसमें जो कुछ लिखा है, उससे प्रतीत कल्क-इनि। १ कल्कि अवतार। (त्रि.)२ पापी, कालकी घटनाका ही ज्ञान होता है। मौन, गुनाहगार, मैला। उग्रश्रवा ऋषिने पूछनेपर कहा था, 'शुकदेवके कल्प (सं० पु०) कल्प्यते विधीयते. असो, कप-कर्मणि अनुमति क्रमसे हमने इस पुण्याश्रममें सकल भविष्य धन। १ विधि, तरीका। घटना सुनी थी। इस स्थल पर हम वही शुभकर "एप. प्रथमः कल्यः प्रदाने इम्यकव्ययोः।" (मनु २११७७) भागवतधर्म कीर्तन करते हैं। उग्रश्रवाके हो मुखसे कल्पति सृष्ठ नाशं वा अनु-प-णिच ।। २ प्रलय, भविष्यत् कालको बोधक एक बात निकली है। दूसरे कयामत। ससन्धियुक्त चतुर्दश मनु द्वारा प्रलय काल स्थतपर कहीं कुछ दिखलाई नहीं पड़ता। भविष्यत् / निर्णीत होता है। कानकी बतायी जाते भी यह कथा बैसो मालूम नहीं "मसन्धयते मनवः कल्पे यायतुर्दशा पड़ती। किन्तु महाभारत, भागवत, विशुपुराण, कतानायः कल्यादी सन्धिः पथदश अतः ।" (सूर्यसिद्धान्त) नारसिंह पुराण प्रभृतिमें कल्कि अवतारको जो कथा कल्यते स्त्रक्रियायै समर्थों भवति भव । ३.ब्रह्माका लिखी, उसमें समंत्र भविष्यत्काल-बोधक क्रिया लगी। दिन। देवताओंके दो सहर युगोंमें ब्रह्माका एक है। सुतरां समझ सकते है, कि उत्तर कालको दिन ( कल्प) और तीस कल्यों में एक मास होता है। कल्कि अवतार होने में कोई सन्देह नहि। फिर भी उनके संस्कृत नाम-खेतवारांई, नीललोहित, वाम- कल्किपुराणमें संक्षेपसे अनेक : गभीर भावमयो देव, गाथान्तर, रौरव, प्राण, वृहत्कल्प, कन्दर्प, सत्य, सत्कथाको पालोचना लगी है। पाठ करनेसे ईशान, ध्यान, सारस्वत, उदान, गरुड़, कोम, (ब्रह्माको आनन्द पाता है। इन्हीं कारणोंसे कल्किपुराणको पौर्णमासी), नारसिंह, समाधि, आग्नेय, विष्णु ज, 'अनुभागवत' कहते हैं। हमने जो तक ऊपर देखाये, और, सौम, भावन, सुप्तमालो. वैकुण्ठ, प्राचिंष, बल्मा- Vol. IV.
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