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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२३७

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२३८ कल्प-कल्पक । सौरमान। कल्प, वैराज, गौरीकल्प, महेश्वर और पिळकल्ल होता है। फिर प्रत्येक कल्पमें सन्धिके साथ चतुर्दश (ब्रह्माकी अमावस्या) हैं। इसी प्रकार बारह मासमें (१४) मन्वन्तर रहते अर्थात् सन्धिवाले चतुर्दश ब्रह्माका एक वत्सर बीतता है। उनका प्रायुकाल मन्वन्तरोंको हो एक कल्प कहते हैं। एक सत्ययुगके शत वत्सर है। अभी ब्रह्माके पचास वर्ष प्रतीत हुये परिमाण पर ऐसे ही कल्पादिमें पञ्चदम (१५) है। एक पञ्चशतवर्षीय बेतवाराहकल्प चल रहा सन्धियां मानी जाती है। हैं। चैत्र मासको शुक्ल पतिपद से प्रथम कल्प लगा है, देवमान “मासि जगत् ब्रह्मा समज प्रथमऽहनि । आदिसन्धि ४८०० १७२८०.८ अखपचे समग्रन्तु वदा सूर्योदये सति । एकसप्तति महायुग ८५२००० प्रवत्यामास तदा कालस्य गणनामपि ॥" (वानपुराय) ३०६७२.... एकसन्धि चैत्रमासके शुक्ल पक्षीय प्रथम दिनको सूर्योदय ४८०३० १७२८०० एक मन्वन्तर होने पर ब्रह्माने समग्र जगत् बनाया और उसी समय- ८५६८०० ७०८४४८००० चतुर्दश मन्वन्तर २१८८५२०० ४३१८२०२०.. से कालको गणनाको चलाया हैं। १२०००००० ४३२०००००.. एकसप्तति (७१) महायुगोंमें एक मन्वन्तर सहस्र (१०००) महायुगोंमें एक कल्प होता है। पड़ता है। सत्ययुगके परिमाणसे मन्वन्तरको सन्धि प्रति कल्पके अवसानमें सर्वभूतोका विनाश अर्थात् निकलती है। प्रत्येक मन्वन्तर बीतने पर जलप्लावन प्रलय पड़ता है। एक कल्पमें ब्रह्माका एकदिन ठहरता • प्राणादि स्थल कालका नाम भूतकाल बुट्यादि परमास सदृश और उनकी रात्रिका परिमाण भी वैसा ही लगता है। सूक्ष्मकालका नाम अमृतकाल है। मुस्थ शरीर में निवास प्रवास लेने में जो पूर्वकथित अहोरात्रों की संख्यासे एशथत (१०) काल लगता, असे विधान प्राण कहते हैं। पर्थात् दश गुरु पचरीके वत्सरकाच बयाका पायु है। आज तक बधाको उच्चारणका काल प्राय है। यह अंगरेजी ४ सैकणोंकी बराबर पड़ता आयुका अईकाल (५० वत्सर) बोता है। वर्तमान है। ऐसेही । प्रामि । विनानी और ६० विनाड़ियों में । नाड़ी कल्पके पारम्भमें ब्रह्माके अवशिष्ट प्रायु (५० वत्सर) (द) होती है। ६. दर्शका १ नाक्षत्र भोगव और २० नाचव घहीरावीका १ नाचव मास भामा है। एक सूर्योदयसे दूसरे सूर्योदय का प्रथम दिवस देखना पड़ेगा। वर्तमान कप में भी वक १ सावन पोरान पोर ३० सावन पहोरामि १ सावन मास पड़वा छह मन्वन्तगेंके साथ सात सन्धियां प्रतीत हुई है। है। एक तिथिसे दूसरी तिथि तक चान्द्र पहोरान रहता है। ३० चान्द्र पान कल वैवस्वत नामक, सप्तम मनुका काल चलता अहोरावोंका एक चान्द्रमास ठहरता है। सूर्यके एक विरामि स्क्रमणसे है। फिर वैवखत मनु के भी सप्तविंशति (२७) युग दूसर राशि संक्रमण पर्यन्त सौरमास चषना है। इसी प्रकार धादश चुके हैं। इस अष्टाविंश (२८) युगके सत्य, बेता मासों में एक वर्ष बीतता है। एक सौर वत्सरमें देवतावौंका एक पौर हापरकाल गल गया, कलियुग लगा है। अहोरात्र होता है। देवताक दिनमें असुरोंकी रावि और देवतावोंकी (सूर्य सिद्धान्त, मध्यवाधिकार १५-२३) राविमें असरौंका दिन है। ऐसे ही ३६० अहोगामें देवतावों और ४विकल्प। असुरोंका एक एक वत्सर लगवा है। देवनावोंके १२००० बनसरों में एक ५न्धाया कल्पवृक्ष।८शास्त्र. महायुग (चतुर्युग) पाता है। महायुगमै ४३२०००० चौर वत्मर विशेष। इस गास्त्रमें बड़ावेदके अन्तर्गत याग- बीतते है। सन्ध्या ( प्रतियुगको श्रादिसन्धि ) एवं सन्धशिक्षा ( प्रति क्रियादिका उपदेश दिया गया है। व्याकरणका युगको अन्त सन्धि )के साथ चार युग जाते और धर्मपादकी व्यवस्था एक प्रत्यय । ईषद् जन अर्थमें यह प्रत्यय पड़ता अर्थात् भव्ययुगमें चार पाद, वेवायुगमै तोनपाद, हापरमैं दो पाद तथा "ते परस्परमामन्चा देवकला महर्षयः।" (भारत ॥१५४५) कलिमें एक पादके अनुसार युगका परिमाण ठहराते हैं। महायुगकै ८ सडल्य, इरादा। १. पच। ११ अभिप्राय, वत्सरौंको दश भाग भोर बन्ध भागफक्षको चार गुप करनेसे जो काल मतवव । १२ वेदका एक विधि। पासा, वही सत्ययुगका परिमाण कमवा है। फिर उसलब भागफलके विगुणसे वे ता, दिगुणसे दापर और एकगुणसे कलियुगका काल मिलवा कल्पक (सं• पु.) कल्पयति चौरकर्मादिना aj रचयति, क्ष-णिच्-खन् । है। प्रति युगका धादि एवं अन्ता पठांश ही सन्या क्या सम्धाथ है। १ नापित, नायी।