वल्यलतिका-कल्पान्तर २४१ स्वहस्ता शगारुढ़ा पाम्ने यो, तण्डुल पर गदापाणि । कल्पसूत्र (सं• लो०) कल्पस्य वैदिककर्मानुष्ठानस्य मडियाकढ़ा याम्या,तपर खड़गपाणि नराख्दा नैती, प्रतिपादक-सूत्रम्। वैदिक कर्मविधायक ग्रन्य। यह बौर पर नागपाशहस्ता संस्था वारुयो, शर्करा पर अन्य पाखवायन आपस्तम्ब प्रकृतिने बनाये हैं। बैद और स वगष्ट देखो। मृगासना तयाकिनी, तिल पर सौम्या और नवनीत पर "पहोवधः संख्यांतः कत्लसूण माणः । शूरहवा वृषासना माहेश्वरी मूर्ति रूपसे वैठती है। चतुष्टोभमइतव प्रथम परिवलिपनम् " (रामायण १२७३) प्रत्येक मूर्ति मुकुटयुक्त, क्रोड़ देशमें पुनविशिष्ट और 'प्रसववदना चाहिये। लतावोंके पार्षमै दश धेनु, २ जैनियों का एक धर्मग्रन्य। भट्वाखामीने दश पूर्ण कुम्भ और दश जोड़ा वस्त्र रखते हैं। फिर इस प्रन्यका प्रचार किया था। जैन देखी। मङ्गल गीत गाये, वाद्य वजाये और वन्दियों द्वारा कल्पइिंसा (सं० स्त्री०) नेन मतानुसार हिंसाविशेष, सुतिपाठ सुनाये जाते हैं। उसी समय कुण्डके निकटस्थ पञ्चभूना, चल्हा जलने, सिनपर.मसाला पिसने, भाड़ चार कुम्भोदकसे यजमानको स्नान कराना चाहिये। लगने, पोखनौमें मूसर घलने और घड़े में पानी भरा सानके अन्त में यजमान शुक्लावस्त्र, अलङ्कार और रहनेसे कीडाका मारा जाना। मात्यादि पहनते हैं। उन्हें सतासमूहका तीन बार कल्पा (सं० स्त्री.) खेतजातीवर, सफेद चमेलिका प्रदक्षिणा करते करते मन्त्रपाठपूर्वक तीन पुष्पावलियां पेड़। २ मधु, शराव । देना पड़ती हैं। यथाविध कल्पलतादान कर दक्षिणा कल्यातीत (म० पु.) कल्पः अल्प काल: प्रतीतो यस्य बांटी जाती है। पन्तकी दरिद्र पनाथ प्रधतिका कल्पः सृष्टिः प्रतीत: प्रतिक्रान्तो येन वा, बहुश्री। सन्तोषमाधन और ब्राह्मणादिका भोजनकार्य सम्पादन कल्पकालकी अपेक्षा अधिक दिन रहनेवाले देवता करना चाहिये। विशेष, जो फरिश्ता कयामतसे भी ज्यादा दिन नो कल्पलतिका (सं० स्त्री०) कल्पहच। सकता हो) कभी न मरनेवाले देवताको कल्पातीत कल्पवर्ष (पु.) उग्रसेनचाता देवकके पुत्र । कहते हैं। जैन मतानुसार वैमानिक देव दो तरहके (भागवव १२५) होते हैं कल्लोपपत्र और कल्यातीत । सौधर्मसे लेकर कल्पवली (स' स्त्री०) कल्पलता, तूबा । अच्युत स्वर्गपटल पर्यन्तके विमानाम होनाधिक विमू- कल्पवायु (सं० पु०) प्रलयकालमें होनेवाला तिके अनुसार इन्द्र प्रतीन्द्र आदि की कल्पना है इस वायु, कयामतके वर्ग चलनेवाली हवा । लिये वे तो अल्पोपपत्र कहलाते हैं और जहां यह कल्पवास (सं० पु.) वासविशेष, एक रसायथ । माघ कल्पना नहीं है सव समान विभूतिके धारक होनेसे मासमें गङ्गासट पर सङ्गमके साथ रहनेको कल्पवास अपने को इन्द्र (पदमिन्द्र) समझते हैं उनको कल्पातीत करते हैं। कहते हैं। यह सब मिलाकर चौदह होते हैं। इनमें कल्पविटपी, कृपाच देखो। नौ ग्रंयक और पांच अनुत्तर है। कल्पविधि (सं० पु.) व्यवहारिक पाज्ञा पालन कल्पादि (सं० पु.) कल्पस्य सृष्टेः प्रादिः प्रथमः काला, करनेका एक नियम। ६-तत्। सृष्टिका भारम्भकात, दुनियाको इतिदा । कल्यहक्ष (स• पु०) कल्पतरू, तुवा। यह समुद्रके, कल्पानुपद (स• पु०) सामवेद के अन्तर्गत एक. ग्रन्य। 'मन्यनसमय निकला था। · कल्पान्ततक कल्पवध बना कल्पान्त (सं० पुः) कल्पस्य अन्तो यत्र, बहुव्री) रहता है। चौदह रनोम यह भी एक रन है। कोई .१ प्रचय, कयामत । २.ब्रह्माके दिनका अन्त ।
बोई गोरख मलीको भी. कल्पवच कहते हैं। "उपवासरतायव व कल्पानवासिनः". (समस्यय १४) २ विभीतक इच, बहेड़ेका पड़े। कल्पान्सरं सं किं) कल्पादन्तरम, ५-तव । पपर कमयासी, कलाप देखो। कल्प, दुनियांकी दूसरी पैदायशाः Vol.
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