1 २४२ कल्पान्तस्थायौ कल्माषपाद कल्पान्तस्थायी (सं० वि०) कल्पान्तपर्यन्तं तिष्ठति, ४ इथयौ। (पु.) ५ नरक विशेष, एक दोजन । कल्यान्त-स्था-णिनि । प्रलयकास पर्यन्त वर्तमान रहने ६ मास विशेष, एक महीना । जिस मास कम वाला, जो कयामत तक टिक सकता हो। नक्षत्रको मङ्गलवार वा शनिवार पाता, वह कलाव कल्पिक (सं.वि.) उपयुक्ल, कावित। कहाता और मनोदुःख देखाता है। (दीपिका) (वि.) कल्पित (सं० पु.) कल्याते सज्जीक्रियते असी, कल्प ७ मलिन, गन्दा, मैला। णिच् कर्मणि । १ सन्जितहस्ती, बड़ाईकेलिये कल्मषध्वंसकारी (सं• त्रि०) १ पाप वा तिमिर- सजा हुवा हाथी। वि०)२ रचित, बनाया हुवा । नाशक, गुना या अंधेरको दूर करनेवाला। २ पाप- "प्रमादि वयापर्यन्तं मायया कल्पितं जगत् ।" (महानिर्वाण) कमसे बचानेवाला, जो जुर्म करने न देता हो। ३ उंझावित, फर्नी, माना हुवा। ४ सम्मादित, कल्माष (पु.) कलयति, कल्-क्विप माषयति, ठीक किया हुवा। ५ सन्जित, सजा हुवा। ६ दत्त, खभासा अभिभवति, अन्यवान्, माष-पिच-पच; दिया हुवा। ७ आरोपित, लगाया हुवा। ८व. कल् चासो माषश्चेति, कमंधा। १ चित्रवर्ण, चित्- धारित, सोचा हुवा। कविम विषय सत्यकी भांति कबरा रंग। २ वणवणं, सांवला रंग। रास, स्थिरीकत, गुलसको तरह पराया हुवा। श्रादमखोर । ४ गधशालि, खुशबूदार चावल । कल्पिताघ, बल्पिताध्य देखो। ५ सर्पविशेष, एक सांप। ६ अग्निवियेष, एक पाग। कल्पिताध्य (स. त्रि०) कल्पितं दत्तं अध्यं यम। ७ सूर्यके एक अनुचर । ८ पूर्व जन्मके थाक्यमुनि । अयं दिया हुवा, जो अर्ध पा चुका ही। (वि.) चित्रवर्ण विशिष्ट, चितकबरा। १. क्ष- कल्पितोपमा (स. स्त्री० ) प्रभूतोपमा, अन्दाजी विन्दुयुक्त, काले धब्बेवाला। मिसाल। इसमें प्रत उपमान न मिलनेसे कल्पना कल्माषकण्ठ (स.पु.) कल्यावः कृष्णवर्णः कण्डो- लगती है। यस्थ, बहुब्री। नीलकण्ह, शिव। कल्यो (स वि०) कल्पयति, कप-णि-णिनि । कल्माषग्रीव (स० वि०) कल्माया कष्णवर्णा ग्रीवा १ रचनाकारक, बनानेवाला। २ भारीपक, लगा. यस्य, वावी.। १ कृष्णवर्थ ग्रोवावाला, जिसके कासी नेवाला । ३ वेशकारक, सुधारनेवाला । (पु.) गर्दन रहे। (पु.) कल्माषा ग्रीवा सामीप्यात् कण्डो ४ नापित, नाई। यस्य। २ महादिव। कल्या (वि०) झप-विच-यत् । १ रचनीय, कल्लापता (सं० स्त्री०) कमाणस्य भावः, कल्माष. बनाने लायक। २ पारोग्य, अच्छा हो सकनेवाला। सल। १ चित्रवर्णता, चितकवरापन। २ अच- ३ अनुष्ठेय, किया जानेवाला। ४ विधेय, मानने पाण्डरवर्णता, कालापन, स्याही। "रावस मावमापन' पाद कलनापता गवः।" (भाग २) लायक। कल्म (म. ली.) रस्योरक्यात्। कर्म, काम। कल्माषपाद (सं-पु.) कल्माषी वणवणे पादौ यश, कल्मलि (सं० पु.) कलयति अपगमयति मन्चम, बहुव्री। सौदास राजा। यह नवसखा राजा ऋतु पर्णके वंशीय थे। किसी समय सोदामने मृगयाको पृषोदरादित्वात् साधुः। तेजः, रोशनी। कलालीक (म.ली.) अति देखो। निकल एक राचस मारा था। उसका भाता र कालीक (स.पु.) कल्मलोकमवास्ति, कला निर्यातन उपायके अनुसन्धानको पाशासे राणाक घर सोक इनि। १ रुद्र। (वि.)२ तेजीयुक्त, चमकदार। प्रा पाचक वैयर रहने लगा। एक दिन राजगुरु कलाप (म.ली.) कर्म भकर्म. स्थति नापयति, वशिष्ठ भोजन करने पहुंचे। उसने नरमांस खानेको रखा। वशिष्ठने वह मांस देख रामाका दुहार पृषोदरादित्वात् साधुः । पाप, गुना। २ इस्ति- समझ सिया.और पमियाय दिया,-सौदास प्रम मच्छ, बायोकी पूछ। १ मलिनता, मैनापन।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२४१
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