पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५२

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'कविक-कविता २५३ गू प्रभृतिमें जैसे पालि भाषा बौद्ध पीठस्थानोंके शिखा- । कविक (हिं• पु०) वृक्षविशेष, एक पेड़। यद्द लेखों में खोदित देख पड़ती, वैसेही पाजतक न चलते मलय.प्रायोहीपमें उपजता है। फल गोल और सरस भो. बालि आदि होपोंके शिलालेखों और धर्मपुस्तकों होते हैं। आज कल यह वङ्गन्देश, दक्षिणभारत में यह मिला करती है। यवद्वीपमें कवि शब्दका और बादेशमें भी लगाया जाता है। कविकका अर्थ रहस्य वा भाख्यायिका लगाते हैं। सम्भवतः अपर नाम मलका जामरूल है। प्राचीनकालको इस भाषाम रहस्य और आख्यायिका कविकण (मुकुन्दराम चक्रवती )-बङ्गालके एक बननेसे ही 'कवि' नाम पड़ा है। फिर कितनी ही के प्रसिद्ध और प्रधान प्राचीन कवि, चण्डीमङ्गलप्रणेता।" अनुमानमें संस्कृत काव्य शब्दसे 'कवि' की त्यत्ति है। कविकण्वहार (सं० पु.) कवीनां कण्ठहार इव किसी किसी शब्दशास्त्रविदक मतमें यह यवद्दीपको आदरणोय इत्यर्थः। १ कवियोंका उपाधि विशेष, देशीय भाषा नहीं,किसी समयमें भिन्न देशसे पाकर वहां थायरोका एक खिसाव । २ सुप्रसिद्ध पलार ग्रन्य। चली होगी। वस्तुत: भारतीय दक्षिण देशकी भाषाओं में | कविकर्णपुर, प्रसिद्ध वैष्णव ग्रन्थकार। यह काञ्चनपल्ली इसके अनेक मेल देख पड़ते हैं। किन्तु यवद्वीपको। (कांचड़ापाड़ा) ग्रामवाले परम वैष्णव शिवानन्द यवानीमावासे यह अधिक मिलती है। इसलिये कवि सेनके पुत्र थे। इनका प्रकृत माम परमानन्द रहा। भाषा भिन्न देशीय समझी जा नहीं सकती। पुरानी इन्होंने संस्थत भाषामें चैतन्यचरित महाकाव्य, हिन्दीसे जैसे नयी हिन्दी कम मिलती,वैसे ही प्राचीन आनन्दचम्मू और चैतन्यचन्द्रोदय' नाटक - प्रणयन कविभाषासे भी नवीन यवानी पृथक् लगती है। फिर किया। कायनपलो देखो। प्राचीन हिन्दीके व्यवहारानुसार जिस प्रकार अनेक कविका (सं० स्त्री० ) कषि स्वार्थ कन्-टाए । १ खलीन, अप्रचलित शब्द सहजमें लोगों को समझ नहीं पड़ते, लगाम । २ कविका पुष्य वृक्ष, एक फूलदार पेड़। उसी प्रकार कवि भाषाके अनेक शब्द वर्तमान यवहोपक ३ मत्स्यविशेष, एक मछली। कव्यो देखो। प्रधान प्रधान पण्डितोंको छोड़ साधारण के लिये कठिन | कविक्रत (वै त्रि.) ज्ञानवान्, समझदार। जंचते हैं। यवद्दीपका प्राचीन इतिहास जाननेको कवि कविचन्द्र, १ कविकर्णपूरके पुत्र और कविवलमके पिता भाषा सीखना चाहिये। · यवद्दीपमें मुसलमानोंके यह एक प्रसिद्ध पण्डित थे। इनके बनाये काय पानसे पहले बौद्धों और हिन्दुवोका राज्य था। उनका चन्द्रिका, धातुचन्द्रिका, रत्नावली, रामचन्द्र चम्म, विवरण इस भाषाके लिखित प्राचीन शिलालेखों में शान्तिचन्द्रिका, स्वरलहरी और स्तवावली नामक ग्रन्थ मिलता है यव और वालिके धर्मग्रन्य व्यतीत रामा विद्यमान हैं। २ वङ्गाल के भाषा रामायण, भागवंतादि यण, महाभारत, ब्रह्माण्डपुराण प्रभृति प्राचीन संस्कृत रचयिता एक प्राचीन कवि । पुस्तक यवभाषामें अनुवादित हुये हैं। इस भाषाका | कविच्छद (स' त्रि.) कविः शब्दः च्छद आवरण- लिखित 'बातयुद' अर्थात् भारतयुद्ध नामक अन्य सर्व वस्त्रमिव यस्य, वहुवी०। पण्डित, समझदार । प्रधान है। इस ग्रन्थको दया नामक प्रदेशीय राजा | कविज्येष्ठ (स'• पु०) सब कवियोंसे बड़े, वाल्मीकि । जयवयक प्रादेशसे भाग्युसुदा नामक किसी व्यलिने कविच्च क (स'• पु० ) पक्षिविशेष, एक चिड़िया। बनाया था। जयवयको कुरुसेनापति शल्यको कवितम (सं. नि.) अयमेषामतिशयेन कविः कथा बहुत अच्छी लगती थी। उन्हौं को मनस्तुष्टिंके कवि-तम । पतिशय ज्ञानवान्, निहायत समझदार। लिये कुरुपाण्डवका युद्ध अवलम्बन कर १११८ शकमे कवितर (म• त्रि०) पपेक्षाकृत बुद्धिमान, ज्यादा "ब्रासयुद (भारतयुह ) लिखा गया। समझदार। कविक (स'• क्लो. ) कवि खार्थे कन्। १ खसीन, कविता (सं• खो०) कवर्भावः, कवि-तल-टाप । लगाम । २ कवि, शायर। काव्य, शायरी, तुकबन्दो। Vol. IY. 1 64