पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२५३

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उपाधि। २५४ कवितायी-कविल कवितायो . (हिं०) कविता देखो। कविरान (सं. पु.) कवीनां राजा श्रे, कवि- कवितावेदी (सं०वि०) कवितां वेत्ति, कविता-विट् राजन-टच्। १ कविश्रेष्ठ, बड़ा मायद। १ भार, णिनि । कवितान, शायरी समझनेवाला, जो कवितायी कवित्त कहनेवाची एक नाति। ३ वटगीय वैद्योश जानता हो। कविट (स• त्रि.) ज्ञानवान्, अलमन्द। कविराज, एक कषि। इन्होंने 'रावयाण्डवीर्य कवित्त (हिं० पु.) छन्दोविशेष। यह दण्डकके काव्य बनाया था। पायात्व मनसे यह ई. १"म अन्तर्गत है। इसमें चार पाद और प्रत्येक पादमें शताब्दमें विद्यमान रहे। इकतीस इकतीस अक्षर लगाते हैं। यह मनहरन | कविराजी (दि. स्त्री.) १ वदेशीय वैद्यक चित्रिया, और घनाक्षरी मी कहाता है। कवित्तका अन्तिम | हकीमी। (वि.)२ कविराजमम्बन्धीय, होमके वणं गुरु रहता, अन्य वर्ण केलिये गूरु लघका कोई मुतालिक। नियम नहीं चलता। उदाहरण नीचे लिखा है,- कविराजी, एक उपासक सम्प्रदाय । रूप कविराजने यह "वालन वाल पे तमालन पेमादन , वृन्दावन वौपिन विहार सम्प्रदाय चलाया था। गुस्ने रूपमे यापारिवी रम- बंगौवट पै। कई पदमाकर अखए रासमएल पे, मचित उमण महा पोके हाथका भोजन ग्रहण करनेको रोकाया। मोसे कालिंदौके तट पै। इत पर शन पर हजुन कटान पर लसित लतान उनोंने एक दिन प्रधारिणी गुरुपतीके हाथमे पर लादिलोको बट पै। पायौ मल कायौ या मरद नीन्दाई हि भोजन न किया। गुरुने या मुनकर उनकी तीन पायौ छवि पानी कन्हाईके मुकट पं" (पदमाकर) कण्डियों में दो कण्डियो छीन ली। फिर कम बची कवित्य (स'• पु०) कपित्य वृक्ष, कैथका पेड़। हुयी एक कण्ठो लेकर भागे थे। उड़ीसमें अनेक वैष्णव कवित्व (स. ली.) कवर्भावः, कवि-त्व।१ कविता उनके मतानुयायी हुये। इससे लोग इस सम्प्रदायवानों रचनाको शक्ति, शायरी करनेका माहा। २ जान, को कविराजी कहते हैं। कविराजो अन्य वैधवोंके घरमें समझदारी। न तो विवाह और न किमो दूसरेका बनाया मोत्रा कवित्वन (वै० को०) १ स्तुति, तारीफ। २ धान, करते हैं। यह प्रायः समौ सदाचारी होते हैं। कोई समझा कोई कविरानियों को ही 'स्पष्टदायक' कहते हैं। कविनासा (हिं.) कर्मनाशा देखो। कविराम, दिग्विजयप्रकाश नामक संस्कृत ग्रन्बके कविपुत्र (सं० पु.) कवेः भृगुपुत्रस्य पुनः, ६-तत्। रचयिता। कह नहीं सकन, यह किम राबाकी १शकाचार्य। २ भार्गव ऋषि। समाके पण्डित थे। इनका अन्य पढ़नसे समझते, कि "भूगोः पुव: कविविधान् ।" (महाभारत, आदि ६९०) कविराम यगोरवाले राजा प्रतायादित्वक समसामयिक कविप्रशस्त (वै० त्रि०) कवियों द्वारा अत्यन्त प्रशंसित, रहे। कविरामके दिग्विजयप्रकायमें भारतवर्षश ततः शायरोंसे बड़ा नाम पाये हुवा । कालीन भूहत्तान्त और प्रवाद लिखा है। कविभूषण (सं० पु०) कवीनां भूषणमिव । १ उपाधि २ विहारमें डोम जातिके शको भौ विराम विशेष, एक खिताब। २ कविचन्ट्रके पुत्र। कहते हैं। कविय (स.ली.) के मुखं प्रजति, क-पज-क, कविरामायण (स० पु.) कविना कवितया विषु पीजस्थान वि प्रादेशः। खसीन, लगाम । काव्येषु वा रामः प्रयनं प्राश्रयो यस्य, बबी.। कविरजन, बङ्गालके एक विख्यात शाल कवि। कवितासे रामका पाश्रय रखनवाचे वाल्मीकि मुनि । कविराय (हिं. पु.) कविराज, भाट। कविरथ (स. पु.) एक राजा। इनके पिताका कविस (वि.) कु कव वा वर्णने रलच । १ सोता, तारीफ करनेवाचा।२ शब्दकारक, पावाज देनेवाया। नाम चित्ररथ था। ! रामप्रसाद देखी।