पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२६५

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२६६ कसूर-कसैरा कसूर, पनाब प्रान्तके लाहौर जिलेको अपनी तहसौन्त । हमारी कामना करनेसे पापको गुरुपत्रीके गमनका और प्रधान नगर । यह अक्षा० ३१ ६ ४६ 'उ० पौर महापातक लगेगा। हम किसी प्रकार पान आपके देशा० ७४° ३० ३१ पू• पर अवस्थित है। लाहौर। प्रस्तावमें सम्मत हो नहीं सकतौं । विश्वकर्माने नगरसे कसूर ३४ मोल दक्षिणपूर्व फौरोजपुरको सड़क वृताचीको वातसे प्रत्यन्त घबरा भाप दिया था, 'तूने पर पड़ता है। पहले सिन्धु नदके पूर्वसे पठान लोग मेरा मनोरथ पूर्ण न किया। अब मेरे अमोघ गायके । पाकर यहां बसे थे। १७६३ और १७७० ई० को प्रभावसे मर्त्यलोकमैं शूद्राके गर्भसे तुझे जन्म लेना सिखोंने भाक्रमण मार कुछ दिनके लिये पठानोंको पड़ेगा।' फिर कृताचीने भो विश्वकर्माको शापित किया दबाया, किन्तु १७५४ ई. को उन्होंने फिर अपना 'तू भी मेरे शायसे स्वर्ग छोड़ नरलोकमे जाकर उत्पत्र पूर्वाधिकार पाया। अन्तपर १८०७ ई. नवाब होगा।' वृताची नरलोकमैं शूद्राके गर्म से जन्म ले कुतव-उद-दीन खानको रणजिसिंहने हरा कसूर मदनगोपको पत्नी वनौं। उधर विश्वकर्मा किसी लादारसे मिला दिया। यहां घोड़े का साजसामान ब्राह्मणके घर उत्पन्न हुये। घटनावय मदनगोपको स्त्रोसे बनता है। किसी डिपटी कमिशनरको प्रतिष्ठित ब्राह्मणरूपो विश्वकर्माने सहवास किया था। इससे शिल्पशालामें नमदे और कालीन तैयार होते हैं। नौ युवाने जन्म लिया। उन्हों नौ पुत्रोंसे मालाकार, सिन्धु, पक्षाव, दिल्ली रेलवेको रायविन्द फौरोजपुर कर्मकार, कंसकार ( कसेरा) प्रभृति नौ जातियां शाखा इसे लाहोर और फीरोजपुरसे मिलाती है। चली हैं। मालाकार, कर्मकार शहकार, तन्तुवाय, अतिरिक्त असिष्टण्ट वामिशनरको कचहरी, तशीली, कुम्भकार, और कंसकार (कसेरा) कह जातियां पुन्तिसका थाना,पाठागार,भौषधालय पौर डाक बंगला प्रधान है। इधर्मपुराण के मतमें ब्राह्मणके औरस विद्यमान है। देशीय ट्रव्यांक व्यवसायका कसूर और वैश्याके गर्भसे पम्बट, गन्धवणिक, थपकार केन्द्रस्थल है। बड़ी सड़के पक्की बनी हैं। पानी और कांसकार ( कसेरा) जाति निकली है। निकलने का बड़ा सुभीता है। लोगोंके कथनानुसार भार्गवराम विरचित जातिमालामें लिखा है, मर्यादा पुरुषोत्तमके पुत्र कुशने कसूर वसाया था। "मान्धिकः शाहिक व कांसिको मणि कारकः। कसेरा (हिं. पु०) कांस्यकार, कांसको चौजें बनाने सुवर्णवणिकथेव पञ्चैते वणिजः स्मृताः।" और वैचनेवाला। यह एक बणिक जाति है। संस्कृत वणिक अर्थात् बनिया नाति पांच प्रकारको पर्याय कसकार, कसवणिक् और कांस्यकार है। इस है-गन्धवणिक, शववणिक, कंसवणिक ( कसेरा) जातिकी उत्पत्तिकै सम्बन्धमें मतका भेद लक्षित होता मणिकार और सुवर्णवपिक।' गन्धवणिको पौरस है। ब्रह्मवैवर्त पुराणके ब्रह्मखण्डम लिखा है, तथा शश्वणिक्की कन्याक गर्भसे ताम्र और किसी समय विश्वकर्मा स्वर्ग की वेश्या घताचीको कांस्य उपजीवी कंसवणिक (रा) जाति उत्पन्न देख कामके शरसे पीड़ित हुये। उस समय धृताची हुयी है। कामदेवके निकट जाती थौं। विश्वकर्माने अपना भार्गवरामके मतानुसार वितामक्रम पर अपर अभिलाष उनको बता कर कहा, ' सुन्दरी। हमने • "विश्वकर्मा च यदा वीर्याधान चार मः। कामदेवसे कामशास्त्र पढ़ा है। हमारी इच्छा पूर्ण तनो भव: पुवाय नत मित्कारियः । कीजिये। हम आपको विविध अलङ्कार देंगे।' मालाकार-कर्मकार याकार कुविन्दकाः । ताची बोल उठौं, 'देखो! पाप कामदेवसे कामशास्त्र सोखने की बात कहते हैं। इस समय हम उन्हीं काम- देवके चित्तरञ्जनको जा रही हैं। अाज हम तुम्हारे + “यायां प्राप्रथाबातः पबष्ठो गान्धिको परिक। कंसकारणाकारो बानयात् सबमुक्तः ॥" (पुराण): गुरु कामदेव की पत्नीके स्थानमें हैं। ऐसे स्थल पर ! । कुम्भकार सकारः पड़े शिलिना वरा" (ब्रमवैवर्टपुराण, प्रमखरा, (१९२०)