२६७ कसैरा-कसीना जातियोंके संवमें कंसवणिक .(कसेरे )से निम्न गभीर रात्रिको अन्धकार एहमें होता है। उसमें लिखित जातियां निकली है,- केवल विधवायें ही नाती, सधवायें अपवित्र समझ "शापिकात कासिक न्याय मणिकारय नायते। देखने नहीं पातीं। पुरष सिन्दूर चढ़ा विधवाको कोपकाराच माणिक्या सुवर्ण नाविको भवेन . अपने पत्नीत्व ग्रहण करता है। भोज, पामोद मणिमुवा कांस्खकारान गोपास्नस्य च सम्भवः । प्रमोद और शास्त्रके धर्मकर्म का प्रभाव रहता है गोपालान कास्यपुवा दे लेलिस्तान लिकप्तनः" (जातिमाला) समाजमें इन्हें सत्शूद्र कहते हैं। ब्राधण इनके शवणिक्के औरस एवं कंशवधिकको कन्याके हाथका पानी पी सकते है। गर्भसे मणिकार, कसवणिक औरस तथा मणि वङ्गदेशके कसेरों में पद,घर और गोत्र प्रचलित हैं,- कारकी कन्याक गर्भसे सुवर्णवणिक, सुवर्णवणिककी पद-कुण्ड, प्रमाणिक, दास, दा, पाल, नन्दन, कन्याक गर्म एवं कांस्यकार पौरससे गोपाल और दे इत्यादि । घर-सप्तग्रामी, मुहम्मदाबादी, गोपालके औरस तथा कंसवणिकको कन्याके गर्भसे मौता, मैती। तेली तंबोली हुये हैं। गोत्र-शाह ऋषि, शाण्डिल्य, सतवार्षि, ऋषिकेश, किन्तु कमेरे पपनेको प्रक्त वेश्यजाति बतलाते दधि ऋषि हैं। वास्तविक शिल्पियों और वणिकोंमें इनका सम्मान विवाहादि कार्यपर इन्हें विषम वायुमें गिरना कुछ कम नहीं। यह यज्ञोपवीत व्यवहार करते हैं। पड़ता । सब घरोको निमन्त्रण देना आवश्यक है। उपाधिके भेदसे कसे में सात शाखायें हैं,..१ पुरविहा, भोजका बड़ा पायोजन होता है। इसीसे गरीब कसेरे २ पछेहां, २ गोरखपुरी, ४ तडा, ५ सांचरा, ६ भरिक्षा एक ही साथ था. कन्यायोंका विवाह कर डालते हैं। और ७ गोलर। बङ्गाली कसेरों में विधवाविवाह नहीं चलता। सौर TH शाखाओं में परस्पर पादान प्रदान और पाहार भाद्रमासके ३० वें दिन विश्वकर्माको पूजा होती है। व्यवहार प्रचलित नहीं। मिर्जापुरमें कसैरे अधिक उस दिवसको कोयी कसेरा यन्त्रादि नहीं छुता। देख पड़ते है। वहां यह कसिके पात्र प्रभृति प्रस्तुत बखइके करे पपनेको कार्तिवारी बंशीय क्षत्रिय कर दूर देशान्तरको विकनेके लिये भेजते हैं। सेनापलिके औरस और क्षत्रियाण के गर्भसे उत्पन्न विहार अञ्चलके कसैरे हिन्दुस्थानी कमेरोंकी भांति बताते है। शूद्रों की अपेक्षा यह कुत्त, शील और पदमर्यादा पान सकते भी ठठेरे उगैरह दूसरे बनियोंसे मानमें बहुत श्रेष्ठ हैं। कुक्ष और शोलमें श्रेष्ठ हैं। ठठेरे बन्होंके बनाये ट्रष्य कसैलापन (हिं. पु०) कषायरस, वाकपन । पर खोदायी करते हैं। ठटेरा देखो। कसैची (हिं. स्त्री.) पूगफल, सुपारी। विहारके कसे में अनेक गोत्र चलते हैं,-बनौ- कसोरा (हिं० पु०) कटोरा, प्याला। धिया, बसैया, चौखर्गा, चौघरा, हरिहरना, लकड़. कसौंजा (हिं. पु. ) कासमद भेद, एक पौदा। यह महौलिया, मनुवा,महौलिया, मोहरिया, सुलरिया और वर्षा ऋतु में उपजता और तीन चार हाय अंचे उठता सुघट। यह अपने गोत्र में विवाह कर नहीं सकते। है। पत्रक एक सुपिर ( सौंके )में परस्पर सम्मु खोन फिर कन्याका विवाह वाल्यकाल में ही करना पड़ता है। पाते और प्रशस्त तथा तीक्ष्णाय देखाते है। शीतकान कभी कभी कन्याका बयस कुछ अधिक हो जाता और इसके फूलनेका समय है। फल छह-सात अङ्गुलि दीर्घ ऋतुमती बनने पीछे उसे पतिका मुख देखाता है। एवं समान होते हैं। बीज एक दिक् तीक्ष्याय रहते स्त्री रुग्ना, मृतवत्सा, मूढगर्भा पथवा वन्ध्या होने पर हैं। रतवर्ण कौंजा सतत हरित वृक्ष है। पत्र और पुरुष खतन्त्र पत्नी को वरण कर सकता है.। विधवाये | पुष्प रताभ होते हैं। यह कटु, उष्ण और कफ, वात मनमें मानसे 'सगाई प्रथाके अनुसार अपना विवाह सथा कास नाशक है। लोग इसका भाक भी बनाते
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२६६
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