कबा-कबीठ २७ कबरी प्रधानसः तेलङ्ग होते हैं। यह प्रधानतः खड़ी नसें जपरको उठ पाती हैं। फल गुच्छे में रहता तैलङ्ग भाषा ही व्यवहार करते हैं। किन्तु स्वदेश और गोल-मिर्च जैसा देख पड़ता है। इसे भी छोड़ अन्य स्थानमें रहनेवालोंकी बात स्वतन्त्र है। कबाबचौनी ही कहते हैं। यह खाने में मरिचसे 'कुवा (प. पु.) परिच्छदविशेष, पहननेका एक मृदु, कट एवं सित' लगती है। पहले यवहोप- कपड़ा। यह जानु पर्यन्त दीर्घ एवं ईषत् शिथिल होता वासी इसे किसी विदेशीयके हाथ बेचने में हिचकते है। इसका अग्रभाग मुक्त और बाहु चलित रहता है। थे। वह भय रखते-कोई हमारे इस अपूर्व फलको कबाड़ (हिं० पु.) १ निष्य योजन वस्तु, बेकाम अपने देशमें जाकर लगा न ले। अरबके प्राचीन चीज । २ निरर्थक कार्य, वेइदा काम। वैद्योंशो विदित था-कवावचीनी सूत्रप्रवाहके मार्ग को कबाड़ा (हि..पु.) निरर्थक व्यापार, झगड़ा लसदार झिल्लीको बड़ा.लाभ पहुंचाती है। किन्तु झन्झट। लोग इसे वायुनाशंक गन्ध द्रव्य की भांति ही व्यवहार कबाड़िया, कवाड़ी देखो। करते पाये हैं। कबाबचौनी धातुदोबस्य और प्रमेह- कबाड़ी (हि. पु०) १ निरर्थक वस्तुविकता, का महौषध है। यह दीपन, पाचन और मूत्रवर्धक बेकाम चीज़ बेचनेवाला । २ क्षुद्र व्यवसायी, जो होती है। बबईक वैध इसे औषोंमें अधिक व्यव- शख्स छोटा सोटा रोजगार करता हो। (वि.) हार करते हैं। कबाबचीनी कण्ड में खरको भो ३ नीच, वासोना, छोटा। सुधारती है। गाने-बजानवाले इसे प्रायः मुंहमें डाले कबाब (अ.पु.) मांसभेद, किसी किसाका गोश्त । रहते हैं। काकोल देखो। पहने मांसको भलो भांति काटकूट बारीक बनाते, कबाबी (अ.वि.)१ कंधाव वेचनेवाला । २ कबाब फिर उसमें वेसन, नमक और मसाला मिलाते हैं। खानवाला। पन्तको इसलो गोलियां बना लोहको सौखमें गोदते कवाय (हि.) क.वा देखो। और धौके पुटसे कोयलेको आंचपर सेंकते हैं। इन्हीं कबार (हिं० पु०) १ व्यवसाय, कामकाज । २ वक्ष- सेकी हुई गोलियों का नाम कबाब है। इसे प्राय: विशेष, एक पेड़। मुसलमान ही खाते हैं। कवाल (हि. स्त्रो० ) खरिकातन्तु, खजूरका कवाबचीनी (हि. स्त्री० ) शीतलचौनी। इसे रेशा। इसे बटकर रसो तैयार की जाती है। संस्कृतमें साकोल वा कोल, नैपान्तोमें सिम्मुई, कबाला (अ.पु.) लेख्यभेद, एक दम्तावेज । इसके कश्मीरौमें लुरतमज, मारबाड़ीमें हिमसौमौर, गुज द्वारा एकशी सम्पत्ति दूसरे के अधिकारमें जातो है। राती सर्दामरी, दक्षिणीने दुमकी, तामिलमें वाल बाबांचा लिखनेवाले मुहरिहको 'कबालानवीस', मिलकु, वेलगु तोकमिरियानु, कनारोमें बालमेनसु, और जायदाद बेचनेवालेको भारसे खरोदनेवालेको मन्नयमें कोपुनस, ब्राझौमें सिनबनकरव, सिंहलोमें दी जानेवालो सनदको 'कृपाला-नोलाम' कहते हैं। वलगुमदग्सि, अरबी में कबावा और फारसीम किवा- कबाइट (हिं) कवाहत देखो। a gari (Piper cubeba ) कबाहत (प्र० स्तो०) १ अभद्रता, बुराई । २ कठि- यह झाड़ी यवद्दीप और मोलुकास होपमें स्वभावतः नता, हिक्क,त, अड़चन । उत्पन्न होती है। भारतवर्ष भी कहीं कहौं इसको | कविस्थ (संपु०) कपित्थक्षक्ष, कैथेका पेड़। . कषि की जाती है। भारतवासी इसके फलको बाहर कबिल (सं० वि०) कपिल, भूरा, तांबड़ा । (पु.) से मंगाते हैं। इसके गोदको रान किसी बड़े काममें २ कपिलवयं, भूरा या तांबड़ा रंग। नहीं लगती। पत्र बेरके पत्रोंसे मिलते हैं। किन्तु कबीठ (हिं. पु०) १ कपित्थवच, केथेका पेड़। उनमें नुकीलापन कुछ अधिक रहता है। पोंको। २ कपित्थफल, कैथेका मेवा ।