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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२६

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कवन्धता-कवरी पात्र, लकड़ीका बड़ा पोपा। ११ राक्षसविशेष। विभक्त हैं। उनमें बलिगि और तोत्तियार शाखा हो रामायणमें लिखा-दनु नामक किसी दानवको उग्र प्रधान है। तपस्या हारा तुष्ट करनेपर ब्रह्मासे दीर्घ जीवनका वर पहले कवरी खेतीवारीके लिये ज़मीन रखते थे। मिला था। वरके प्रभावसे प्रत्यन्त गर्वित हो किसी | उसी जमीनको अपर निकृष्ट जाति द्वारा जोता-बोवा 'समय वह इन्द्रसे युद्ध करनेको जा पहुंचा। इन्द्रने जी आय मिलता, उससे इनकी जीविकाका काम ववाघातसे उसका इस्त और मस्तक शरीरमें घुसेड़ चलता। आजकल इनमें वह पूर्व प्रधा रहते दिया था। किन्तु ब्रह्मवरके कारण उससे भी प्राण भी कितने ही लोग स्वयं कृषिकार्य करते हैं। फिर वियोग न हुवा। इसीप्रकारं विक्षत शरीरमें दिन दिन कोई नाव चलाता और कोई बनियेको दुकान क्लिष्ट हो दनु वारम्बार इन्द्रसे अनुग्रह प्रार्थना करने लगाता है। लगा। फिर इन्द्रन भी उसके प्रति सदय हो. योजन तोत्तियार शाखा किसी किसी स्थानमें तोत्तियान परिमित इस्तव्य और वक्षःस्थलके उपरिभागमें एक वा कम्वत्तार नामसे भी प्रसिद्ध है। यह परियमी वदन बना दिया था। दनु उसी मूर्तिसे वन-वन जा और बड़े उत्साही हैं। कृषि कार्य से लगा अनेक उच्च और दीर्घबाहु द्वारा वन्यजन्तु खा अवस्थान करने काय पर्यन्त इनके द्वारा सम्पन्न होते हैं। मन्द्राज' लगा। फिर एकदा पिताकी आज्ञा प्रतिपालन नगरमें तोत्तियार अनेक उत्तम उत्तम कार्य चन्नाते हैं। करनेको राम लक्ष्मण और सौसाके साथ उसी वनमें तोत्तियार गोमें विभक्त हैं। प्रत्येश श्रेणी जा पहुंचे। इस राक्षसने दीर्घ बाहुद्वारा उन्हें पकड़ अपर श्रेणोसे स्वतन्त्र रहती है। प्रायः पांच सौ वर्ष लिया था। रामने वोर्यभरमें लघु इस्तसे खीय खड्ग पहले कितने ही तोत्तियारोंने मदुरा जिले में जाकर हारा दनुका प्राण विनाश किया। रामइस्तसे मरने उपनिवेश किया था। पर कबन्ध दिव्यमूर्ति धारण कर स्वर्गको चला गया। यह सकल ही विष्णुके उपासक हैं। विष्णु को अन्नो- महाभारतके मतसे यह राक्षस पहले विश्वावसु किक लोला-क्रीड़ामें यह प्रान्तरिक विश्वास रखते हैं। नामक गन्धर्व रहा, 'पोछे किसी प्रामणके अभिशाप किसीक विष्णुको निन्दा करने पर उनके प्राणमें बड़ा वध राक्षसयोनिको प्राप्त हुवा । आघात लगता है। फिर निन्दाकारीको यथोचित कबन्धता (सं० स्त्री०) मस्तकहीनता, कत्ल, शिर भारित देनेसे कोई पीछे नहीं हटती। इनमें बहुतसे कट जानकी हालत । लोग इन्द्रजान्नु जानते हैं। इसीसे साधारण इनको कबन्धी (वै. पु.) १ ऋषिविशेष । 'अथ कवन्धी कात्यायन भय भहि देखाते हैं। सुनते-यह इन्द्रजाम्न वनसे उपेत्य पच्छ ।' (प्रोपनिषद) (त्रि.) के जलं बस्थास्ति, सांप काटेका विष उतार सकते हैं। पुरुष सस्तक क-बम इनि। जलयुक्त, आवदार । पर पगड़ी बांधते हैं। स्त्रियां नानाविध अलवार पहनती हैं। उनका वनःस्थन कितना हो पनावृत रहता है। किन्तु उससे उन्हें लज्जा नहीं पाती। कंबरा (हिं० वि०) कवंर, अवलक, सफेद रङ्गपर तोत्तियारों में बहुविवाहको प्रथा प्रचलित है। किन्तु प्रायः सकल ही एकवार विवाह करते हैं। काले, लाल, पोले या किसी दूसरे रंगके अथवा काले, एक पत्नोके मरनेपर अपर पत्नो ग्रहण की जाती है। पोले, लाल या किसी दूसरे रंगपर सफेद धब्बे इनके विवाह वा धर्मकर्ममें ब्राह्मणों को आवश्यकता रखनेवाला। नहीं पड़ती। कोड़ाङ्गिनायकन नामक इनका एक कबरिस्थान, कनस्तान देखो। प्रधान रहता है। वही विवाहादि सम्पन्न करता है। कबरी-जातिविशेष, एक कोम। मन्द्रानप्रदेशमें इस जातिके सोग रहते हैं। यह प्रायः १८ शाखामें । जन्मकुण्डली बनाना भी उसोका काम है। कवर, कव देखो। कुबरस्थान, कब्रस्तान देखो।