पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२७६

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. कांगड़ा २७७ और इरावती तथा शस? नदीवे मध्यवर्ती प्रदेश में ०को रणजितसिंहने गोरखावोंके विपक्ष युद्धको शासनकर्ता बनाये गये। घोषणा लगायौ थी। भीषण समर पारम्भ हुवा। बड़े दिल्ली के बादशा का पूर्व पराक्रम विलुप्त होनेसे काष्ट में रणजितको जय मिला। गोरखा शतद्दुः उतर राज्य में एक प्रकारको पराजकता पाई थी। उसी गये। प्रथम उन्होंने समस्त कांगड़ा राज्य संसार- समय प्रायः १७५२ ई. को राजपूत-सरदार स्वाधीन हो चन्द्रको सौंप दिया, केवल कांगड़े का दुर्ग और 16 कांगड़ेका अधिकांश उपभोग करने लगे। केवल भग्न ग्रामोंका कर सैन्धव्ययके निर्वाहको अपने हाथ रख दुर्ग अहमद शाह दुरानोके आयत्तमें रहा। १७७४ खिया। पोछे रणजित् धौर धौरे पहाड़ी सरदारोंक ई०की जयसिंह नामक किसी सिख सरदारने कौशल अधीनस्थ स्थान अपने समयमें मिलाने लगे। १५२४ क्रमसे कांगड़ेका दुर्ग अधिकार किया, किन्तु १७८५ ई०को संसारचन्द्र मरे। उनके पुत्र अनिरुवचन्द्र ई०को कांगड़ेका राजपूत-सरदार संसारचन्द्रको सौंप राजा बने थे। अनिगमचन्द्र ने केवल चार वर्ष राजत्व दिया। इतने दिन पीछे कांगड़ेका दुर्ग फिर कतीच. किया। रणजित् सिंहने अपने मन्त्री ध्यानसिंहके राजवंशक हस्तगत हुा। कतीचरान संसारचन्द्र पुत्रसे अनिरुद्धको भगिनीका विवाह ठहराया ! कतोच अपने पूर्वपुरुषों को भांति स्वाधीन भावसे राजत्व राजकुमारने इससे अपनेको अपमानित होते देख चलाने लगे। पार्वतीय प्रदेशस्थ नाना स्थानों के सर राज्य छोड़ा और हरिहारको पोर मुंह मोड़ा। इसी दारोंने उन्हें कर दिया। दिगविजयकी निकलते समय समय समस्त कांगड़ा महाराज रणजितमिहके राज्यमें: सब सरदार सैन्ध ले संसारचन्द्रके अनुवर्ती बनते थे। मिल गया । १८४५ ई०को प्रथम सिख युद्ध होने पर वर्ष में एक एक बार प्रत्येक सरदार राजदर्शनको पाने अंगरेजोंनि कांगड़ा अधिकार किया। १८४५ई. को मूल पर वाध्य रहा। संसारचन्द्रने २० वर्ष प्रबल प्रतापसे तानो विद्रोहके पीछे यहांके पहाड़ी सरदारोंने विद्रोह राजत्व चलाया। सम्भ्रम और यशमें यह सब कतीच वढ़ानेको चेष्टा चलायी थी, किन्तु कुछ सिधिन पायो। राजावोंसे श्रेष्ठ थे। १८०५ ई०को संसारचन्द्र और फिर सिपाही विद्रोहके समय सूचना मिली कि कांगड़े. विलासपुरके राजाने शतट्ठ और धर्घरा नदी मध्यवर्ती में सामान्य विद्रोहको आग भड़को है। प्रदेशके गोरखा-सरदारोंसे साहाय्य मांगा था। गोरखा छह विद्रोही सरदारों को फांसी दी गयो पाज तक फिर शतद्रु नदी पार पाये । वह महलमोरी नामक स्थानमें कांगड़ेमें कोयो अशान्ति न फैली। (१६०१०) कतोच राजपूतों पर टूट पड़े। बाहु इस लिले के प्रधान नगरका मी नाम कांगड़ा है। बलक प्रभावसे राजपूतोंने हार पीठ देखायो। गोरखा यह पथा. ३२.५४ १३"३० और देशा० ७६.१५ सरदार कांगड़े राज्य में घुस दारुण अत्याचार मचाने ४६. पू. पर अवस्थित है। पहले यह नगर नगर- लगे। कांगड़ा रखके स्रोतमें डूबा था। नगर, ग्राम, शीट नामसे विख्यात था। कांगड़ा वाणगङ्गा और उपवन, सुन्दर रानप्रासाद प्रभृति सव उजड़ गये। विशाखा नदीसङ्गमके निकट पर्वत वसा है। इस उस समय कांगड़ा राज्य श्मशान और मरुभूमिकनगरमें एक बहुप्राचीन दुर्ग है। भवानी और भवानी समान था। कतोच-राजकुमारों ने प्राण छोड़ गिरिको पतिका पूर्वनिर्मित मन्दिर सुन्दर है। कांगड़े में जडाब गुहामें पाश्रय पाया। ऐसा सोमहर्षण-काण्ड क्या और मोनका काम अच्छा बनता है। कोयी कभी भूल सकता है। कांगड़े के प्रत्य क ग्राम कांगड़ेके लोग साहसा, बचशाली, सरल और एवं प्रत्येक नगरमें लोगोंके वृदय पर वह भीषण स्वाधीनचेता है। राजपूत अधिक देख पड़ते हैं। व्यापार खटकता है। यहां चिकित्सकों का एक दल रहता, जो नक- सौन वत्सर पत्याचार देखने पोछे संसारचन्द्रने कटोंको पच्छा कर सकता है। अकबर साहराउदः- महारान रणजित सिंहसे साहाय मांगा। १८०० दोन एक चिकित्सक थे। उन्होंने माक बनानेवी.. Vol. IV. 70 उस समय ।