पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काकणन्ती-काकतुण्डिका ? बालाघाट पर्वत २९६ सन्ती, काकणन्ती-कन्टाप, कोः कदादेशः। १ गुजा, काकतिका (सं० स्त्रो०) काकासवत् तिला, मध्य- लाल धुंधची। ३ रनकम्बल वृक्ष, लाल बघोलेका येड़। पदलो। १ लताकरत, वैजदार करौंदा। २ काक. काकणन्ती (सं० स्त्री०) कु-कण-शट डी। अंधा, मसी, चकमेनो। ३ खेत गुच्चा, सफेद धची। काशनिका देखो। काकतिन्दु, बाकसिन्दुक देखो। काकणान्तक (सं० पु.) सिन्दूर । काकतिन्दुक (सं००) के जलं प्रति, क-प्रक-प्रणः काकणी (सं० स्त्री०) काकण-डोष् । १ गुच्छा काकचासौ तिन्तुको ति, कर्मधा• यहा काकवर्णस्ति- धुंधची। २ कुष्ठविशेष, किसी किस्मका जुनाम । न्टुकः काकप्रियो वा तिन्दुकः, मध्यपदलो। तिन्दुक- काकप देखी। विशेष, किसी किस्मका आबनूस । ( Diospyros काकण्डा (सं० स्त्री०) काकनासा, सफेद छोटो धुंधची। tomentosa ) काकतन्द्रा (सं० स्त्री०) काकस्य तन्द्रव तन्द्रा मध्य. इसे भारतके विभिन्न प्रदेशमें अन्दुली, निनाई पदलो। १ काकवी तन्द्राशी भांति प्रति सतर्क इन्मिन्द, पेद्दा इल्लिन्द, नोगरिक, औलो. उन्निन्द या भावमें तन्द्रा, कौवेकी काहिली-जैसी निहावत होशि लिमेरा कहते हैं। यह मध्य प्राकारका वृक्ष है। यारीमै सुस्ती। २ काककी तन्त्रा, कौवको काहिली। काकतिन्दुक दाक्षिणात्यमें उड़ीसे तक मिचता है। काकता (सं० स्त्री० ) काकस्य भावः, काका-तल्-टाप सूरत और नासिकौ यह अधिक देख पड़ता है। इसे १ काकका धर्म, कौवेका फर्ज । २ काकका खभाव, गोदावरी वनका झाड़ कहते हैं। कौवेकी आदत, कौवापन। और मन्द्राज में भी यह पाया जाता है। इसका फच्च काकतालीय (सं० क्लो०) काकतालमधिकृत्य उपदि गोल बड़े मटरकी भांति होता है। पकनेपर लोग एम, काक-ताल-छ। समासाच वदिषयात् । पा५३।०६। इसे खाते हैं। यह अति सुरस निकलता है। साठ न्याय विशेष, एक मन्तिक। सुपा ताल अपने पाप कठिन, स्थायी और सुन्दर वर्णविशिष्ठ रहता है। यह गिरते समय यदि काक वृषपर पाकर बैठ जाता, अनेक कार्योंके लिये उपयोगी है। ती कहा जाता कि काक हो ताज गिराता है। इसी काकतिन्दुकका संस्कृत पर्याय-काजेन्दु, कुलक, 'प्रकार कोई काम खतः सिद्ध होते यदि किसीका | वाकपौलुक, काकपोलु, काकाण्ड, काकस्यूर्ज, काका. हाथ लगता, तो वह उसीका किया ठहरता है। ऐसी और काकवीजक है। राननिघण्टु के मतसे यह गुरु, ही घटना काकतालीय न्याय होता है। कधाय, अन्न, वातविकारन और मधुर होता है। "तदिदं काकवालीयं वैरमासादितं त्वया।" (रामायण ३ | ४५।१७) इसका पक्व फल मधुर, किञ्चित् कफकारक और वमि (त्रि०) २ पाकस्मिक, दैवायत्त, नागदानी, तथा पित्तनाशक है। उत्तिफाको। (अव्य०) ३ अामात्, इत्तिफाकसे, काकतीयरुद्र (सं० पु. ) नागपुरके एक प्राचीन राजा। काकतुण्ड (पु.) काकतुण्डस्य व वर्णो ऽस्त्यस्य,. अचानक। काकतालीय न्याय, काकतालीय देखो। काकतुण्डअच् । १ कृष्ण पगुरु, काला अगर । २ जल- पतिविशेष, पानीको एक चिड़िया। ३ ग्रीवोधगत काकतालीयवत् (सं० अव्य०) अकस्मात्, इत्तिफ़ाक़से काकतुण्डाकार सन्धि, जिम का एज जोड़। यह अचानका काकतालुको (6. त्रि०) काकवत् तालुरस्यास्ति, बन्दीपतापगात पापिस्वादिनिः।पा।५। काकनासिका, सफेद ची। २१ २२८ । काकको भांति तातुविशिष्ट, कौवेकी तरह काक तालुक-इनि। इनुद्दय (दोनों जबड़ों) को सन्धि है। काकतुण्डफला (स० स्त्री• ) काकतुण्डमिव फत्त- मस्याः बहुब्री कावतुण्डा, काकतरिका देखो। काकडिका (स.बी.) काकतुहलेव वर्ण: 1 तालू रखनेवाला, खराब, बुरा। काकतिकाका, काकतिका देखो।