पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२९६

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काकंतुण्डी-काकतेय फांध यस्याः, काकतण्ड-उन्-टाए । १ खेतगुवा, । शेड़ भाये। किसी व्यहिने पाकर उसे पुत्रको भांति सफेद धुंधची। २ महासकाकमाची, बहुत सफेद पाला पोसा। वयोप्राप्त होनेपर वह पारसलिङ्गका केवैया। काकचिवा, इधची। रक्षक इना। घटनाक्रमसे किसी रातको प्रख्यरान काकतुण्डो (सं० स्त्री०) काकं ईषत् दुःखं सुण्डते । मन्दिरमें देवदर्शन करने गये। साथमें नौकर चाकर . नाशयति, तडिक बधे भण्-डीए । राजयित्तल, किसी कोई न था। राजकुमार रानाको गुप्तभावसे नाते किस्सको पीतल। काकतुण्डस्येव . पावतिर्यस्याः। देख मोचने खगे, सम्भवतः चोर पाता है। फिर उनसे २.खनामख्यात लता, कौवाटोंटी। इसका मत रहा न गया। उन्होंने तलवार पाघात लगाया था। पर्याय-काकादनी, काकपोल, काकथिम्बी, रक्तचा, मलयरान धरा पर गिर पड़े। अन्तमें उन्हें मालूम .माझादनी, वक्रशल्या, दुर्मोहा, वायसादनी, माइनखी, हुपा कि वह उसी पुत्रको कार्य था, जिसको माव- .वायसी, काकदन्तिका और यांचदन्ती है। राजनि- कोड़मे निकांस अपनी रक्षाके लिये बनमें छोड़ा। घण्ट के मतसे यह कटु, उपा, तिक्त, द्रव, रसायन, उन्होंने देखा पदृष्टका लेख नहीं मिटती। पुत्रका -वायुदोषनाशक, रुचिकारक और पचित स्तम्भक क्या दोष था। पुनके हाथ उन्हें मरना रहा। अन्तिम (बानोंकी सफेदी रोकनेवाली) होती है। ३ गुना, काल पर राजाने पुत्रको प्रपना राज्य दे डाला। बुधची।. ४ मधुरत काकमाची, छोटी खाल केवैया। काकतिप्रलयके पुत्रका नाम बद्रदेव था। उन्होंने काकतुल्य (संवि०) काकस्य तुल्यम्, ६-तत् । पिढहत्यारूप महापातकके प्रायश्चित्तमें. सहन शिव- काकके समान, कौवेके बराबर, चालाक । मन्दिर बनवाये। उनके बाहुवलसे कटक और वन- काकतेय (काकत्य)-दक्षिणापथ का एक प्राचीन नादके राजाने वश्यता मानी थी। किन्तु कनिष्ठभाता राजवंश । इस वंशवाले प्रथम कल्याणके चालुक्य महादेवने विद्रोही ही युहमें उनकी हराया और रान- राजापौहारा शासित रहे। पाश्चात्य पुरातत्त्वविदोंके सिंहासन पाया। रुद्रदेव: मारे गये। कुछ दिन मसमें ई० एकादश शताब्दके शेष भाग इस वंशका पोछे महादेवगिरिके राजासे लड़ने चले पौर युद्दमें अभ्युदय हुपा। कट मरे। उनके पीछे रुद्रदेवके व्ये ठपुत्र गणपतिदेव .इस राजवंशमें जिन जिन रानाघीके नाम मिलते, राजा हुए। उन्होंने देवगिरिक रामराजाले. युद्धमें उनमें काकतिप्रलय प्रधान हैं। कहीं कहीं ऐसी बातें पिटव्यके मृत्यु का बदला लिया था. राम राजाको सुन पड़ती हैं. कि प्रलय राजाको पटरानी काकती कर देना पड़ा। उन्होंने अपनी कन्या प्रदान कर -देवीको पूजा करती थीं। राजाभी पनौके पीछे चल गणपति देवका बानुगत्य माना था। गणपतिदेवने काकती देवीके उपासक बने। इसीसे उन्होंने अपना पल्लिगारेकि यनसे बलनाद, नेचूर प्रभृति प्रदेश अधि- नाम काकतिप्रलय रख लिया। घटनाक्रमसे राजाने कार किये। वह बड़े जैनविदेषी थे। उन्होंने एक शिवलिङ्ग पाया। सम्भवतः वह पारस पत्थर तोड़ फोड़ असंख्य जैनमन्दिरोंके स्थान पर शिवलित था। उस प्रस्तरकै गुणसे रानाको विस्तर धन मिला। लगवा दिये। फिर गणपतिदेवने अनेक नगर पत्तन पत्थर बहुत भारी था। किसी में उसको हिलानेका बसाये। राजधानीका नाम 'एकशिक्षानगर' रखा 'मामयं न था। इससे प्रलयराजको .पनमकोण्ड गया और चारो ओर प्राचीर बना। उनके राजत्व छोड़ ८० यक (१०६पई)में उब शिवलिङ्ग मिलने के कालमें अनेक तेलङ्ग कवियोंने जन्म लिया था। स्थान पर नया नगर बसाना पड़ा। . प्रथम काकति मन्त्री गोपरानके यब नियोगो बाण : मामूली प्रनय चालुक्य राजाओंके अधःपतनसे स्वाधीन हुए। मोहरिर बनाये गये। वैदिक ब्राह्मणोंने इस नियमका पुत्रजन्म लेने .पर देवनाने राजासे कहा या, यई घोर प्रतिवाद किया था। किन्तु रानमन्त्रीका प्रादेश पिघाती होगा।..देवीकी बातसे वह.पुत्रको बनमें | कोई टालन.सका। Vol. IV. 75