२२८ काकदन्त-काकनिद्रा गपतिदेवके कोई पुव न था। उनकी एक यंक है। यह न्याय अनर्थक वितण्डा मच पर मात्र बन्या उमाकदेवीसे राज महेन्द्रोके राजकुमार चालुक्यतिलक वीरभद्रका विवाह हुपा। मृत्युसमय काकदन्तिका (म. बी. ) १ काकादनौ सता, मझेद गणयतिके दौहितका मी जन्म न था। मुसपं उनसी या नान बुधची । २ दन्तौवन, दानोबा पेड़। ३. पनी कद्रयादेवीने पमिषित हो २८ वयं राजल रखा। काकमाची, बालवैया फिर वयोप्राप्त होने पर माकदेवोके पुत्र प्रतापरुद्र काकट्ठम (म यु०) च वियप, एक पेड़। (Dal- देवको मातामह गणपतिदेवका सिंहासन मिच गया। bergia rinosa) श्री (मिरहट में इसे काम प्रतापरददेव ही बरसके पन्तिम खाधीन थे। कहते हैं। यह माडदार पेड़ है। काकट्ठम पूर्ण उन्होंने गोदावरीसे सेतुबन्ध-रामेखर पर्यन्त प्रतिहत हिमालयकै उष्ण प्रदेशमें 8... फौटचा होता है। प्रभावसे राजल चलाया। सुनने में प्राता है कि उनके स्वमिया पर्वत, यौहर और पाम्राममें इसे पधिक प्रबल प्रतापसे धवरा कटकके राजाने दिशीमें वादया. देखते हैं। यमुनासे पशिम मिवानिक प्राय और हसे साहाय्य मांगा था। मुसलमानोंका इतिहास पढ़ने हिमालयकै वहिर्मागर्म भी यह पाया जाता है। मर पर समझ पड़ता है कि १३२ को प्रतापरुद्र उनले चोर (वासोर )में इसकी अधि होती है। परास्त हुए और पकड़ कर दिशौ भेजे गये। कुछ | काकवन (म.पु.) का पचन वाय पान दिन पोछे प्रतापरुद्र स्वाधीनता लाभ कर वरालकों यस्य । वाडवाग्नि, समुद्रको मौतरको पाग। पहाधि चाटे थे। किन्तु फिर वह अधिक दिन इहलोकमें देखो। २ पौर्व ऋषि। न रहे। मरनेपर उनके पुत्र वीरभद्र राजा बने । उनके | काकनन्ती (सं०बी०) कुईयत् कनन्तो निमोरची, समय मुसलमानोंक पाक्रमपसे वरात राजधानी कोः कादिशः। कान्तिका, घचौ। भस्मीभूत हुई। वीरमद्रने पर छोड़ कोडवीड़ वाकनामा (म. पु.) काकन नाम व नाम यश, नामक स्थानमें एक नतन नगर बसाया था। उसी मध्यपदसी।वच, अगस्तिका पेड़ । बायो देशी समय वराच काकत्य (काकवेय) राजवंथका कारनामा कारनामा देखो। राजत्व जाता रहा। कोलगौड़, देखो। वाचनास (सं.पु.) काकस्य नामाया वर्ण इव फच्चे काकदन्त (सं.पु.) काकश्य दन्तः। काकका यथ। विकण्टक वृष, गोखुरीका पेड़ । दन्त, कौवेका दांत । कौवेके दांत नहीं होते। इसीसे काकनामा (सं० स्त्री०) काकन नासा इव फलमनाः । असम्भव विषयको काकदन्त कहते हैं। यविषाण, १ महाखेत काकमाची, कौवाटोंटी। (Solanum कूर्मचोम, पौर वयापुत्र की भांति यह भी निरर्थक indicum) यह मधुर, गौतम, पित्तत्र, रसायन, दार्थ- कर और विशेषतः पतिता होता है। (राक्रनिषद) काकदाकि (सं. पु.) प्राचीन पवियजातिविशेष। भावप्रकायम इसे कपाय, उष्ण, रम एवं पात्र में कटु काकदन्तकीय (सं० पु.) काकदन्तकि पवियोंके कफन, वान्तिकर, तिक पौर गोप, अशिव तथा एकराना। कुष्ठनायक कहा है। काकदन्तगवेषण (संपु०) काकस्य दन्ताः सन्ति न वा काकनासिका (सं• बी.) कावनामा नाय कर इति संशये तब वर्णमेदस्य संस्थाविशेषस्य च गवेषणमिव टाए पत इत्वम् । शनिहत चार निमीत।२ का अनर्थकः प्रयत्नो यत्र। अकारण पन्वेषषयोधक न्याय नंधा, चकसेनी। विशेष, वेफायदा सोनमें पड़नेका एक चौकिक न्याय। काकनिद्रा (सं.) कावन निद्रा १ निदा, काबवे दन्त राने या न रहनेका सन्देश, निधित होनेसे पहले वर्ष और संध्या पर बात बढ़ाना धम. कौवकी तरसोनियारो माव मोना। । वाक्य है। मध्यपहनी। बावको निद्रा जैसी प्रतिमत निद्रा,
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