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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२९९

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. पड़ता है- « काकफाला-काक्रमाची काककला (सं० स्त्री) काकप्रियं फलमस्या, मध्य- | काकम् (सं० पु.) का मुनाति, काक-मृद:: 'पदलो।। काकजम्ब, जङ्गली जामन । अण् । महाकाचलता। किसी किस्मको कड़वी लाको।। काकवळ्या (सं० स्त्री०) काकीव वध्या, पुंवनावः । यह कौवेको मार डालता है। एकमात्रप्रसवा भार्या, एक हो बच्चा पैदा करनेवाली | काकमदक, काकमर्द देखो। औरत। काकी केवल एक बार प्रसव करती है, काकामांस (सं० क्लो..) वायसमांस, कौवेका गोश्त इसीसे नो स्त्री एक ही प्रसवसे वध्यो हो जाती.वह काकमाचिका (स्त्री०) काकमायो बाथै कन्- काकवन्ध्या कहाती है। टाइखः। काकमाची देखो। काकबलि (सं० पु.) काकेभ्यो देयो बलिरत्नादिकम् काकमाची (सं० स्त्री० ) काकान् मञ्चने, मचि पण.. मध्यपदली. काकको दिया जानेवाला भन्नादि। डोष् पृषोदरादित्वात् नलोपः । खनामख्यात पनशाक प्रथम काकको पाद्यादि दे निम्नोता मन्त्रसे पूजते हैं, विशेष, एक छोटा पेड़। इसका संस्कृत पर्याय- " यमधारावस्थित-नानादिग् देयीयवायसेभ्यो नमः ।" वायसी, माङचमाची, वायसाहा, सर्वतिता, बहुफला, फिर इस मन्त्रसे प्रार्थना की जाती है। कटुफला, रसायनी, गुच्छफला, काकमाता, खाटु- " काक ब यमदतोऽसि रहाण वसिमुन्न। पाका, सुन्दरी, तिलिका और बहुतिक्षा है। यमलोकगतं प्रेतं त्वमाम्यायितुमईसि" हिन्दीमें काकमाचौको केवैया या मकोय, बंगला में इस प्रार्थना पर पिण्डदान वा मन्त्रपाठ करना कासते या मधुनी, मराठीमें कमुनी या घाटी और तामिलमें मनौकवली कहते हैं। (Solanum.. (ओं) काकाय काकपुरुषाय वायसाय महात्मने । nigram). अवपिळ प्रयच्छामि कृप्यता धर्मराजनि।" यह शाकप्रधान क्षुद्र वक्ष है। भारत और सिंहलमें : आङ्गिकतत्वमें पिण्डदानका दूसरा मन्त्र कहा है, ७००० फीट चे इसे सर्वत्र पाते हैं। "ऐन्द्रावारुणवायव्याः सौम्या व मासथा। भारतके अनेक विभागों में इसके पत्र और मृटु वायसः प्रतिग्रह एन्तु भूमौ पिसं मयापितम् । क'शाकिन्यो नमः।" अधुर पालककी भांति उबालकर खाये जाते हैं। सुपक्क SH मन्त्रसे दान पिण्डपर जल छिड़कना पड़ता है। गुटिकायें बालकों के खानेमें पाती और कोई प्रसर काकमण्डी (सं० लो०) खेतगुवा, सफेद बुधची। नहीं देखातौं। काकभाण्डी (सं० स्त्री०) काकस्य ईशजलस्य मुख राननिघण्टु तथा राजवल्लभके मतमें यह कट, सावरूपस्य-भाण्डी क्षुद्रभाण्डमिव, उपमि०१ महा ति, उष्ण, वृष्य, रसायन, रोचक, भेदक, और कफ, करन, बड़ा करौंदा। २. लघु रकमाचिका, छोटी शूल, अशीरोग, शोथ, कुष्ठ एवं कण्डनाशक है। भाव- साल कौवाटोटी प्रकाश में इसे ज्वर, मेह, नेत्ररोग, हिका, वमि और काकभीर (सं. पु०) काकात भीरुभयशीलः, ५.सत् । हृद्रोग मिटानवाली भी कहा है। यजत् बढ़नेपर डेढ़ पाब काकमाचीके रस प्रयोगसे विशेष उपकार होता पेचक, कौवेसे डरनेवाला उन्लू । पेचक देखी। है। शीथरोगमें भी इसके पत्रका क्वाथ अथवा रस काकभुशुण्डि (सं० पु.) एक ब्राह्मण। यह रामके दिनमें तीनबार एक-एक डाम पिलाया जा सकता सच्चे भक रहे। लोमशक शापसे इन्हें कोक होना काकमाची खेत र भेदसे दो प्रकारको होतो. पड़ा था । काकभुशुण्डिने रामको कथा गरडसे है। खेतको. खेता तथा महाखेता और रक्षको कही है। रघुरन काकमाची कहते हैं। खेत काकमाची मधुर, काकमह (सं• पु०) काक इव अच्णो मदगुजलचर रसायन, पोत, कषाय, कट, तिक, डा, अमिमद,. पषिविशेषः। दात्यूह, पानीको मुरगी या कुकड़ी। सनुदाव्य कर और कफ, शोथ, अर्थ, पसित, पिता "तला त दुई काकमदमः प्रनायते ।" (भारत, १९९)