सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

था। काकसाचौतेल-काकरजो तथा खेतकुष्ठनायक है। महाखेत काकमाची । काकराला (ककराता)-युक्तप्रदेशके बुदाम जिलेको तुवर, उष्ण, रसायन, कटु, तिक, रुचिकर, और वात, दातागन तहसीखका एक नगर । यह. बुदाऊ कुष्ठ, पाण्ड, प्रमेह, कफ, छर्दि, कमि, ज्वर एवं पलि- नगरसे . छह कोस दूर है। यहां भारतीयोंके देव- सन्न होती है। रत काममाची जीवत्, वात एवं कफ मन्दिर और मुसलमानोंको मसजिटें विद्यमान हैं। कर, वृष्य रसायन और पित्त तथा त्रिदोषनाशक है। . सिपाही विद्रोहके समय बनवाईयोने ककराला जलाया काकमाचीतेन (सं०जी०) खनामख्यात पनशाकका १८७५ ई०के प्रपरल मासमें अंगरेज सेना- तेल, मकायका तेल! मनःशिला, सोमराजी वीज, नायक जनरल पेगो विद्रोहियोंका शासन करने आये। सिन्दूर तथा गन्धकके डाल चार पल कटुतैल काक किन्तु कुछ मुसलमानों (जाजियों)ने उन्हें मार डाला। माचीके रसमें पकाते हैं। इस तेलको १ शाण आखिर उनके सैन्यसमूहने विद्रोहियोंको सम्पूर्ण- ( ४ मासे ) लगानसे अरूंषिका (सरकी खुजली) रूपसे हराया था। लोकसंख्या प्रायः छह हजार है। अच्छी हो जाती है। (रसरवाकर ) भारतीयोंसे मुसलमान अधिक मिलते हैं। काकमाता (सं० स्त्री०) काकस्य मातेव पोषिका | ककरामींगी (हि.) कर्कटपको देखो। तत् फलप्रियत्वात्। काकमाची क्षुप, मकोयका पौदा। काकरिपु (सं• पु० ) उलूक, कौवेका शव उन्नू । काकमुख (वि.) काकस्य मुखमिव मुखं यस्य, काकरी (हिं०) कर्कटो देखो। बहुव्री। काकवत् मुखविशिष्ट, जो कौवको तरह काकरक, कारक देखो। मंह रखता हो। (पु.)२ पुराणोक्त जातिविशेष । काकरत, (स. क्लो) 'काकस्य स्तम्, ६-तत् । यह सम्भवतः महानदीके उपकूलमें रहते थे। काकरव, कौवेकी बोली। काकचरित्र देखो। काकमुहा (सं.स्त्री०) काकेन र्वषन्नलेन मुदं गच्कृति, काकरा (सं० स्त्री०) काक इव रोहति मूलशून्य- काक-मुद्-गम-ड टा। मुहपर्णी, मोट । मुगपर्ण देखो। तया वृक्षाद्यवलम्बनेन जायते, काक-कह-क-टाप यहा काकमग (स० पु०) वायस एवं हरिण, कौवा और काकपुरोषात् रोहति उत्पद्यते वृक्षोपरि इत्यर्थः । हिरन। वन्दावक्ष, बांदा, कोवेकी तरह चढ़ने यानी नड़ न काकम्बीर (वै० पु.) वृक्षविशेष, किसौ पेड़का नाम । रहनेसे पेड़ वगैरहके सहारे उपजने या कौवेक मेलेसे काकयव (सं० पु०) काकवत् निर्गुणो यः । शस्य निकलनेवाली वेल। हौन धान्य, खोखला धान। इसमें चावल नहीं होता। काकरूक ( स० वि०) कु कुत्सितं करोति, कु-क- "तर्थव पाचवाः सर्वे तथा काकयवा स्वा" (महाभारत) जक की: कादेशः। १ स्त्रीवशीभूत, पौरतका तावे- काकयान (स. क्ली) कोडणदेशख्यात हासानाम दार। २ नग्न, नङ्गा । ३ भोरु, डरपोक । ४ नि:स्त्र, वृक्षविशेष, एक पड़। गुरीब। (यु०) ५ दम्भ, धोका। काकन लूयते काकर-बम्बई प्रान्तके शिकारपुर जिलेको एक तह विद्यते, काक-लू कर्मवि किए संज्ञायां कन वस्य रः। सौल। यह अक्षा० २६ ५८७० और देशा० १७. पेचक, कौवेसे मारा जानेवाला उल्लू। ४४ पू० पर अवस्थित है। भूमिका परिमाण ५२८ काकीज़ा (हिं. पु०) १ बस्नविशेष, एक कपड़ा। वर्ग मील है। इसमें ११ थाने और फौजदारीकी २ यह काकरेजो होता है। २ वर्णभेद, एक रंग। यह अदालतें हैं। मालगुनारीमें गवरनमेण्टको १८६२११) काकरजी रहता है। रु. मिलता है। लोकसंस्था प्राय: पचास हजार है। काकरजी (फ्रा.पु.) १ वर्षभेद, कोकची, एक रंग। काकरव (पु.) भीरुपुरुष, डरपोक पादमी। यह लाल काला होता है । कपड़ेको पासके रंग बोर जो व्यक्ति काकवत् भयभीत हो कोसाल करता है | सोहारकी स्याहीसे रंगने पर काकरेजी निकलता है। उसको 'काकर' कहते हैं। (वि.).२ वर्णविशेष युक्त, बोकची, लासकासा। Vol. IY. 76