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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३०५

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मधुरा, काको, कालिका, वायसोन्त्री, परा, माचिका, काकोदर-काची सफेद कयां उठता है। यह एक प्रकारका खाद्य है। एक डचा। यह क्षौरकाकोलीके भांति लगती और यत्तियां काटकर पशुवोंको खिन्नाई जाती हैं। काठसे कुछ अधिक वणवणं होती है। इसका संरक्षम पर्याय- कोई बड़ा काम नहीं निकलता। यह प्राचीर फाड़कर छठ पाती और भवनको मिट्टीमें मिला देती है। वरा, शुक्ला, घोरा, मेदुरा, मापस, खादुमांसी, राजनिघण्टु के मतसे काकोडम्बरिका कषायरस, वयःस्था, जीवनी, शुलचीरा, पयखिनी, पयस्या और शीतल, तणनाशक, गर्भरक्षाके लिये हितकारक और शतपाकु है। राजनिघण्टोके मतसे काचोची-मधुर स्तन्यदुग्धवर्धक है। एतदव्यतीत भावप्रकाशमें इसे रस, शीतल, कफ एवं शुक्रवर्धक पौर चयरोग, पित्त, कफ, पित्त, खित्र, कुष्ठ, चर्म, पाण्डु और कामन्ना सातव्याधि, रत्नदोष, दाह तथा ज्वरनाशक होती है। नाशक कहा है। यह नेपाल वा मरङ्गसे पाती है। २ चौरकाकोली। काकोदर (सं० पु०) कु कुत्सितं अकति, कु-पक् ३ फलत, एक पकाया हुवा घो। फलत देखो। अच् कः कादेशः, काकं वक्रगमनकारि उदरं यस्य | काकोलीदय (स० क्लो०) काकोलीका नोड़ा, दोनो वा, बहुव्री०। सपं, सांप। काकोलो। काकोली और चौरकाकोजीको काकली- काकोदुम्बरिका, काकोडुमरिका देखो। हय कहते हैं। काकोदुम्बरिकाफल (सं० लो०) पनीर, कठगूलर। काकोलूकिका (स• स्त्री.) काकोलूक-बुन्-टाए। काकनालक ( पु) लवजातीय पक्षी, जौड़े के इन्दाहुन् वैरमथुनिकयोः । पा ४ ॥ ३॥ १२५ । काक और पेचकको साथ रहनेवाला परिन्द। स्वाभाविक शत्रुता, कौवे और उन्लू कजानी दुश्मनो। काकोर-युक्तप्रदेशके लखनऊ जिलेका एक नगर । काकोल्यादि (संपु०) तवामकोषधद्रव्यगण, काकोची यह प्रक्षा• २६. ५१५५“उ० और देशा०८०.४९' वगैरह, जड़ी बूटियोंका जखीरा। इसमें काकोरी, ४५ पू. पर अवस्थित हैं। काकोर नगर पति चौरकाकोली, जीवन, ऋषभक, मुहपर्णी, माषपर्णी, प्राचीन समझा जाता है। पहले यहां भारजातिके लोग मेदा, महामेदा, गुलच, कर्कटगृङ्गी, वंशन्नोचन, चोरी, रहते थे। भाजकन लखनऊ के वकीलों औरऐमुख्ता पद्मक, प्रपौण्डरीक, ऋषि, वृदि, भूहिका, जीवन्सी रोंको काकोरमें रहना बहुत अच्छा लगता है। यहां और मधुका काकोल्यादि दृश्य है। इसका गुण बहुतसे मुसलमान पोरोंके गोरस्थान मौजूद है। रक्तपित्त तथा वायुनाशक और शुक्र, प्रायुः, स्तन्य एवं काकोरका बाजार सप्ताहमें दो बार लगता है। श्लेषवर्धक है। (मुझत) कणं बंधको पाक्वति विशेष । काकोल (म. पु०-ली. ) कु कुत्सितं तीव्रतरं यथा | काकोष्ट, काकोष्ठक देखो। स्यात्तथा कम्नति पौड़यति, कु-कुल-धन् कोः कादेशः । काकोडक (पु.) काकस्य पोष्ठ इव कायति १ कृष्णवर्णस्थावर विषभेद, पेड़में पैदा होनेवाला काले प्रकाशते, काम-उठ--क। मांस शून्य सूक्ष्म अग्रभाग रंगका एक नहर। इसका संस्कृत पर्याय-उग्रतेजः, और रसविशिष्ट कर्ण पाली। निमससंचितापाल्पा कृष्णछवि, महाविष, गरल, खेड़, वत्सनाभ, प्रदीपन, शोणितपालिः काकोठंपालिरिति (सुश्रुत १५) शौक्तिकेय, अधपुव और विष है। २ द्रोणकाक, पहाड़. | काकौष्ठक, काकोष्ठक देखो। कौवा। ३ सपं, सांप। ४ वन्य शूकर, जङ्गली सूबर । काक्ष (म.पु.) कुत्सितं पक्ष यव, कोः कादेशः। का पयायो:-। पा६।३।१०। १ कटाक्ष, नजारा, तिरको ५ कुम्भकार,. कुम्हार। ६ काकन नामक औषधि कर्मधाः। २ कुमितचक्षु, बुरी भांख । विशेष, एक बूट। (को०) कानडलायते भच्यते अन्न, पृषोदरादित्वात् साधुः। ७ नरक विशेष, एक काचतव (स.ली.) कचतुका फल। कायसेनि (सं.पु.) अभिप्रतारीका नामान्तर। . दोजख । . इसमें कौवे पापीको नोच नोच खाते हैं। काकोली (सं-स्त्री.) काकोस-डी । १ कन्दविशेष, / काची (सं० स्त्री०) कचे को मकः कच-पर-डोप। नजर।