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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३०६

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२ गौतम काचौरी -कागज . पद सब देशाम, प्रधामत: लिखनकार्यमें कागज- दव भवः । पा ४ ॥ ३॥ ५३॥ १. सौराष्ट्रमृत्तिका, एक खुशबू दार मट्टी। २ पड़ार, तोर । का व्यवहार होता है। यह कागज भी पाजकच काचीरो (सं० स्त्री०) वैशलोचना भेद, किसी किस्यका प्रधानतः नाना प्रकारक. वाष्यीय यंत्रोकी सहायतामे वंशलोचन । यूरोप, अमेरिका और एसियामें बनते हैं; किन्तु अब काचोव (सं० पु०) कु ईषत् बीवति, चीव-णिच भी एसियाके दक्षिण और पूर्व प्रदेशसमूहमें हाथों यथेष्ट परिमाणमें कागज तैयार होता है। को: कादेशः। श्रोभावनवृक्ष, एक पेड़। ऋषिके एक पुत्र। यह औशीनरी नानी शूद्राणीक कागज दुर्मूल्य है और विशेष विशेष कार्यों में व्यवहत गर्भसे उत्पन्न हुये। होते हैं। भारतवर्षमें विशेषत: जैनियोंके प्राचीन (हस्तलिखित) शास्त्र इसी कागनमें लिखे नाते थे "रुद्रायां गौतमो यव महरमा समितनमः । भौयोगण्यामननयत् काधीवाद्यान् सुतान् सनिः॥" (भारत, समा) और पब भी लिखे जाते.हैं। भारत; पूर्व-उपदीप, काक्षीवक, बाधीव देखो चीन, जापान, पारस्य प्रादि देशों में ही ऐसे 'काक्षीवत्, काचीवन देखो। हाथके बने हुए कागजका अधिक. पादर पाया काचीवत (सं.पु.) कक्षीवतो मनोरपत्य पुमान, जाता है। कधीवत्-पण। १ कधीवत् ऋषि सम्बन्धीय । भारतवर्ष में बंगाल, विहार, भुटान, नेपाल, साक्षीवती (सं० स्त्रो०). काचीवस-डीए। व्युषिता अहमदाबाद, सूरत, धारवाड़, कोल्हापुर, औरंगाबाद, खकी स्त्री। इनका नाम भद्रा था । पौर दौलताबादमें ऐसा (हायसे बनाया हुआ) कागन -काक्षीवान (सं० पु.) १ दीर्घतमाऋषिके शूदागर्भ यथेष्ट प्रस्तुत होता है। औरंगाबादका कागज सबसे जात एक पुत्र। २ घण्डकाशिकके पिता गौतम। उत्छष्ट गिना जाना है। देशीय रजवाड़ों में इसी ३ काई राजा। (भारत, पादि । प.) कागजका अधिक पादर है। यह कागज सब कागजों "काग, काम देखी। को अपेक्षा मसूण, चिक्कण और सुदृश्य होता है। - कागज पारसीक शब्द) कामज" क्या चीज है, इसके बाद दौलतावादके बहादुरखानि और यह किसी को समझाने की जरूरत नहीं। पृथिवीमें *माधागरि कागज समधिक पादरणीय होते हैं। ऐसे देश बहुत ही कम हैं, जहां कागज नहीं। भिन्न इन कागजों में बनाते व इसके मह पर स्वर्णका भिन्न देशों में इसके नाम भी भिन्न भिन्न है। जैसे, सूझ पात मिला देते है, फिर कागज बनने पर उसमें उत्तर-भारत और पारस्थमें कागज। ( कागजके ) सर्वत्र वह खयंका सूक्ष्मांश फैल नाता भारवमें कर्तास् । है; जिससे देखने में प्रति चमत्कार शोभा देता है,- तामिलम बरक। इस कागजका नाम "पाफगानि कागज" है। देशीय देन्मार्कमें रानन्यगण इस कागज (आफमानि) पर राजकीय फ्रांस और जर्मनी में कार्यादि करते हैं। इन हाथ बने हुए कागजों पर इटाली और प्राचीन बाटिनमें कार्ट वा काटी। दलीच, सनद, आदि लिखे जाते हैं। ‘प गरेज और स्पेनमें जिसके अपर लिखा जाता है, उसे संस्कृत में "प. -रूषियामें बुमाड्नी। कहते हैं। हिन्दी भाषामें (प्रचलित भाषामें ) दंगलैंडमें 'पो' वा "पत्ते" कहनेसे जो पर्थ ज्ञात होता भप्राचीन तान्त्रिक संस्कृत ग्रंथों में 'कागर्द' नाम है, संस्कृतमें "पत्र" शब्दका यथार्थ अर्थ वही है। पाजकल भी पामरा, एटा आदि किस लिए अक्षर, पत्र और सिखन प्रणालीको उत्पत्ति प्रान्तोंमें कागद' नाम प्रचलित है हुई, इस विषय में एक कौतूहलजनक होने पर भी - ... ... ... ... ... पेपिर। पेपियार। पेपेन। पेपर। भी मिलता -