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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३११

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उनसे पसाब आदि उत्तर-भारतमें भी यह कागनः भाता था। मुसलमान-धर्मप्रवर्तक मुहम्मदको कुछ पुस्तकें मेसोको कन्धेको इड्डियोंकी पत्तियों पर लिखी कांगम दासे नानाप्रकारका तुलट कागज देशविदेशों में रवाना होता था। उस समय अंग्रेजोन हो चीनके किसी एक तरहके कागजका नाम "India proof" रक्खा था। मालूम होता है कि, वह कागज पहिले चीन देशमें उत्पन्न नहीं होता था; सबसे पहिले भारतवर्षसे हो गई थी। यह कागज चीन देश में पहुंचा हो। क्योंकि अगर ३।-बिलायतों कागजका इतिहास- ऐसा नहीं होता तो इसका ऐसा नाम ही क्यों पड़ता ? पहिले कहा जा चुका है कि, चीनवासियोंने ही, और चीनले साथ भारतका अन्तर्वाणिज्य पहिले ईश्वीके पूर्व समयमें कागज बनाने के लिए;. प्रचलित था, इसका प्रमाण यथेष्ट है। चार-पांच सौ सन, रेशम और फटे वस्त्रोंसे 'मंड' बनानेकी तरकीव वर्ष पहिले मालदहमें इस कागजका व्यवसाय निकाली थी। पारवीय लोगोंने इसे चीनसे सीख कर खुब हो विस्तृत था और किसी एक श्रेयौके ७०६ ईश्वीमें समरकंट शहरमे पहिले कारखाना लोगोंकी यही उपजीविका थी। अब भी अनेक पुराने खोला था। इनसे फिर यह कागज खो १२वीं नमीदारोंके घरमें साटिनकी भांति उज्ज्वल और नरम शतकसे पहिले गुरोपमें प्रचारित हुआ। इसी एकतरहके कागजपर बादशाही सनद, छाड़ इत्यादि समयमे ही सबसे पहिले स्पेन देशमें रईसे कागज देखनमें पाते हैं। यह सब पुरातन देशो कागज गौड़में बनानेका एक कारखाना खुला था। ११५० ई० में बनते थे। हमने तुलट कागज पर लिखी हुई छह सात भेन्लेन्सिया प्रदेशके प्राचीन नगर कटिमा नगरके सौ वर्षको प्राचीन पोथी देखी है। भारतवर्ष में मुसल. कारखानेके कागजको सबसे अधिक प्रसिद्धि हो गई। मान भी कागजका व्यापार करते थे। मुसलमान, यह कागज पूर्व और पश्चिममें सब देम जाया ताँतियोंको जैसे "जुलाह" तथा मत्स्यजीवियोंको क्रमशः मेखिन्सिया और टचोडो प्रदेशके "नकारी" आदि कहते थे, वैसेही इन कागनके खुष्टानोंने कागनके कारखानाको विशेष उन्नति को। व्यवसायियोंको “कागजी” कहते थे। .अब भी कागजी | ईश्वीय १२वीं शतकके अन्तके समयमें यूरोपमें मुसलमान लोग ढाका प्रान्तमें "कागज बनाकर ही सर्वत्र रई के बने हुए कागज व्यवहत होते थे। उसी जीविका निर्वाह करते है। कलकत्तेको अन्तर्जातीय कागज पर लिखी हुई एक दलील उत्तर सिरीया प्रदर्शनी (६० १८८३-८४)में कई प्रकार के पट सनके प्रदेशके गस नगरके एक मैदानमें सुरक्षित है। यह कागज, ढाका मुंशीगंजके 'मेधू कागजी के बने दलील रोमकसबाट दितीय के डारिकका पादेय-पत्र हुए एक तरहक कागज, साहाबाद समिरामसे ४ है। इसमें १२४२ ईखोकी तारीख लिखी हुई है। तरहके देशी कागज, बरहमपुर-कणहोलि (मुजफ्फर अवशेष, १४ वीं शतकमें सन और रेशमसे अधिक पुर) से दो तरहके देशो कागज, और भूटानसे एक कागज बन निकले और ये रुईके कागजये अधिक तरहके वृक्षको छालका कागन आया था। भुटिया व्यवहत होने लगे। तब रुईके कागनसे सनका कागज कागजमें कोड़े नहीं लगते। यही कागज सुन्दर और ज्यादा मजबूत बनता था। उस समय सन आदि नरम होता है-ऐसा प्रसिद्ध है। जो कागज बनता था, वर्तमान प्रणालीको भांति तब पहिले पारस्य देशमें कठिन वृक्ष छालसे सन धोकार सफेद नहीं किया जाता था, सिर्फ उसका मैल धो दिया जाता था। ये सब कागज जहां हैं, वहां एकतरक्षका कागज बनता था। उस छानका पाज तक भी खूब मजबूत और समान उज्ज्वल नाम तुस, वा तुल है। पहिलेके पारसौलोग इस हैं-देखते ही इनकी प्रशंसा करनी पड़ती है। तुजको चमड़ेके साथ मिलाकर कागज बनाये थे। ये लोग इस कागजको खूब व्यवहारमें लाते थे और करता था। १४वौं शताब्दीमें इंगलैंड, फ्रांस, इटाची और खेनमें