पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३२०

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कागजात-कागजो ३२१ कागन बनते थे, जिनमेंसे (१) सर्वसाधारणके लायक घास पधिक पैदा नहीं होती; और इसका मूल्य भी कागज, (२) प्रमोर उमरावोंके कागज और (३) अधिक होता है। घुटे हुये कागज ही प्रधान हैं। घुटा हुमा कागज कहीं कह बांस से भी कागन बनाया जाता है। भी तीन तरहका था। इसदेश में बांस द्वारा कागज बनाने की कल-पभी तक १ सफेद ।-सिफ कुड़िया लुडियासे घिस कर स्थापित नहीं हुई है। पासाम और ब्रह्म देश के चिकना किया हुमा। जंगलों में यथेष्ठ बांस उत्पन्न होते हैं। बांसों की २रा जरासान-सुनहला पौर रुपहला : पर्थात् कटाई, रेसका किराया, मजदूरों को मजदूरी आदि दाक्षिणात्य "अफसानी" कागजकी भांतिका। जोड़ कर हिसाव लगाने पर १) या १७ मन से कम ३रा, टिकलीदार-जिसमें छोटी छोटी सुनहली नहीं पडेगा। जर्मनी में सिफ धान के पूलों से कागज और रुपहली टिकली नगी रहती हैं। यह मर्यादाके बनाया जाता है। पनुसार भिन्न भिन्न रूपसे व्यवहत होता था। हाल ही में कषि तत्वविद श्रीयुत निवारणचन्द्र, यह कागज चौड़ाईकी तरफ लम्बा होता था। चौधरी ने गवेषणा पूर्ण यह मन्तव्य प्रकाशित किया है इन कागजों पर विषय लिखे जानेके वाद, फिर इनको कि, 'मन, कटो' से कागज बन सकता है। उन्होंने मोड़कर अपरसे एक वैसे ही कागजका टुकड़ा लपेट रासायनिक परीक्षा करके देखा है कि 'सन कटौ से दिया जाता था। ऐसे कागजके टुकड़ेका नाम सैकडा पोछे ६. भाग कागज तैयार करने के सूत्र होते "कमरवन्द था। फिर मखमलकी थैली में रखकर, उसे है। उनके परीक्षा फन्न से जाना गया है कि- मखमनसे या जरीसे बांध कर रख दिया करते थे। सनकटी से सैकडा पोछे ६० भाग सूत्र कश्मीरमें एक तरहका पुराना देशो कागज देखा बांस से जाता है। यह कागज देखने में सफेद न होनेपर भी सबुई बाबुई घास" ऐसा चिकना कागज भारतमें बहुत कम ही है। नल से सुना गया है कि, ऐसा कागज कश्मीर में बहुत दिन धान के पूला से ३३ पहिलैसे बनता पाया है सनकटी पाजकत सिर्फ जलाने के काम में पाती पान तक परीक्षा करके जिन जिन उनिज और गांवों में कम कीमत में मिलती है। "या" वस्तुओंसे कागन बनाया गया, उनके नाम नीचे लिखे अनि मन इसका भाव है। श्रीयुत निवारणचन्द्र ने जाते हैं- हिसाव करके दिखाया है कि वंगान, विहार, उड़ीसा इससे पहिले मिलों में सनशी (परित्यक्ष ) जड़से | प्रदेश की सनकटियों से १साल में साढ़े पांच करोड़ कागज बनाया जाता था, परन्तु पाज कल मिलोंमें सन मन कागज के सूत्र बन सकते हैं। भारतवर्ष के लिये को जड़ से बोरे बनाये जाते हैं, इस लिये उसका मूल्य सिर्फ २५, पचीस लाख मम कागज-सूत्रकी जरूरत बढ़ गया है। इसी कारण सन को जड़से पाल कन्न है। वाकी के सूत्र वा बने हुए कागज विदेशों में भेजने कागज नहीं बनाये जावे। से देश की आर्थिक लाभ और गरीबों का कल्याण साबुई या बदुई घास ही कागजको मिली में हो सकता है। कागज बनाने के लिये अधिक काम में लाई जाती है। काग़जात (अ.पु.) पत्रादि, बहुतसे कागज,। यह छह लाख या सात लाख मन के करीव यह उत्पन्न शब्द कागज़ का बहुवचन है। होती है। यह धास ।) या १७ मन मिलती है। कागजो (अ० वि०) १ पत्रक सम्बन्धीय, कागजके मुता- 'नर' और मंजसे भी कागज बनाया जासकता है, शिक । २ पत्रकनिर्मित, कागजसे बना हुवा। १ सूम परन्तु इससे शिकायत नहीं हो सकती। क्योंकि यह ! त्वक् विशिष्ट, बहुत पतले लिएको वाचा। (पु.) ४ Vol. IY: M " Js J " ३ - 81