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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३२१

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1 ३२२ कागद-कानयम पत्रक विक्रेता, कागज फरोख्त करने वाला ! ५ खेत। यह तिब्बत में होती है। इसका सिर बड़ा पौर पर वर्ण कपोत, सफेद कबूतर । सूक्ष्मजलौकाको 'कागनी छोटा रहता है। मांसका पाखाद सुप्रसिद्ध है। जोंक' और सूक्ष्मत्वक् विशिष्ट निम्बुक को 'कागजी कागिया मांसके लिये ही पाली और मारी जाती नीबू' कहते हैं। कागजो वादामका भी हिल्का बहुत है (पु.) २ मिविशेष, एक कोड़ा। यह वाजरेको पतला होता है। हिन्दी में जिस वस्तुके पहले 'कागजो' विगाड़ता है। शब्द लगता, वह अति उत्तम रहता है। कागौर (वि. पु.) काकवलि, कौवेकी दिया जाने- कागद (हिं. पु०) पत्रक, कागज । वाला कौर। इसे नाबादि के समय कव्य निकाल कर काग भुसुण्ड, दारक भुसुण्डि (हि.) काभुति देखो। काकको खिलाते हैं। काकबलि देखो। कागर (दि. पु०) १ पत्रक, कागज। २ पक्ष, पर। काग्नि (सं०१०) ईषत् अग्निः । अल अग्नि, थोड़ी भार । कागरी (हि० वि०) तुच्छ, हकौर, पोछा। काढायन (सं.पु.) एक मुनि। इन्होंने चरक संहिता कागल-बबई प्रदेशके वोल्हापुर राज्यका एक क्षुद्र प्रणेता अग्निवेश ऋषि के साथ भरद्वाज-युनंबसु, से राज्य । यह अक्षा० १६३६० और देया०.७४ २० आयुर्वेद पढ़ा था। चरक संहिता देखने से धनको बनाई ३० पू० पर अवस्थित है। इसकी भूमि का परिमाण संहिता का भी पता लगता है। किन्तु वह देखने में १२६ वर्ग मोल है। प्रति वर्ष २००१) २० कर लगता नहीं पाती। है। वर्तमान सामन्त राजाके पूर्व पुरुष सखाराम राव काहायनमोदक, (संपु०) मोदक विशेष, किसी किम्म संधिया के एक कर्मचारी थे। १८०० ई० को उन्हें का लड्ड । यह हरीतको ५ पल, जौरक १ पल, मरिच कोल्हापुर राज्यके निकट कागलकी समद मिली। राजा १ पल, पिप्पली १ पल, पियचौमूल २ पल, चबिका १ साहब तोपोंको सलामो पात है। इस राज्यके नगर पल, चित्रकमूच ४ पल, शुण्डो ५ पल, यवक्षार २ पल, का नाम भी कागल ही है। दूग्धगङ्गा और वेदगङ्गा भल्लातक ८ पल तथा गुड़कन्द १६ यल (खांड) और नदी है। उक्त सर्व चूर्ण से हिगुण गुड़ डालने से बनता है। कागान~पक्षाब प्रदेशके इजारा जिलेकी एक उपत्यका। इसके सेवन से पौरोग अच्छा हो जाता है। दक्षिांश-व्यतीत इसने तोनों पार काश्मीर राज्य | कामयीय (सं०वि०) इच्छा के योग्य, चाहने लायक । पाकांचा, वर्गमोल और देय | काडा (सं० स्त्री०) काचि-अटाप्य । लगा है। भूमि का परिमाण.८०० ६. मौल तथा प्रस्थ १५ मील है। कागानके शृङ्ग प्रायः पूच्छा) १७००० फीट ऊंचे पड़ते हैं। यह हिमालयके अन्त- कान्ति (सं.वि.) कांधि-छ। १ अभिलषित, चाड़ा निविष्ट है । इसमें २२अरराय हैं। वनमें अच्छी अच्छी जानेवाला। (जी.)२ इच्छा, खाहिश । लकड़ी होती है। मनुष्य अधिक नहीं। कहीं कधीं | कॉक्षिता, (सं०स्त्री) अभिलाष, चाह । दो चार घरों में लोग रहते हैं। कागान नामक ग्राम काही (सं० वि०) काइतीति, काक्षि-णिनि । अभिलाषी, चाहनेवाला। 'भक्षा० ३४४६४५"उ. और देशान्तर. ७५ ३४ १५ पर अवस्थित है। कांक्षीरु (सं० पु.) कपक्षी, एक चिड़िया । कागाबासी (हि. स्त्री०) प्रातःकाल पी जानेवाली काशयम, मन्द्राज प्रान्तकै कोयम्बतूर जिले का विजया, कौवे बोलनेके समय छनने वाली भांग। कागारि (सं० पु०) कागस्य परिः काग: रिवा यस्य । पेचक, उल्लू। और देशा० ७७३६ पू० पर अवस्थित है। प्राचीन कागारोल (हि.पु०) काकरव, कौवों का थोर, एलड़। कागिया (जि. बी०) मेषी विशेष, एक सरहको मेड़। .. - एक ग्राम। यह धारापुर तहसील के अन्तर्गत पक्षा. १९१ . - नाम कोड है । सम्भवतः पूर्व कासको दाधिपायके कोडराजा यहां राजस्व रखते होंगे।