पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३२६

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काज-काजरौ ३२७ मुखसैन धौर सचन। यह विहारमें अधिकांश देख | काजर (हि.पू.) कन्नल, प्रांखमें लगनेवाली पड़ते हैं। दीयके धुयेंको कालिख। इसको सरवे या परई पर ललितपुरके कछियों में पूर्वी या १० श्रेणी नहीं पार लेते हैं।

होती। वह अछाह, सलौरिया, हरदिया और काजर-मुसलमानोंको एक नाति । पारस्य का

पम्बर-चार श्रेणियों में बंटे हैं। वर्तमान राजवंश इसी जातिका है। जिस समय झाँसीके काछो अपनेको कछवाह बताते हैं। वह सुकफवो वंशीय प्रथम सम्राट, शाइ इमाइलने शिया कछवाह राजपूतोंसे उपजे और उनके पूर्वपुरुष नरवर मतको पारस्यके राजकीय मतरूपमें फैलाया,. उस प्रदेशसे उस अचल में पहुंचे थे। समय तुर्की नातियां उनको पृष्ठपोषक थीं। काजर काकी नातिकी श्रेणीके नाम अनुधारण करने में उन्हीं सात जातियों में एक हैं। किसी समय प्राचीन समझ पड़ता-यह अपनी वासभूमिके अनुसार भिन्न हिरकोनिया (वर्तमान मसन्दरान) राज्य में काजरों- भिन्न श्रेणी में बंटे हैं कनौजिया-कनौज या कान्य- ने महा प्रतिष्ठा पायो थौ। १५०० ई.से. पहले इस कुम, हरदिया-हरदियागन, सिंगौरिया-सिंगौर जातिकी बात सुन नहीं पड़ती। उक्त समयके एक (इलाहाबादसे २५ मील उत्तर गङ्गाके पथिमकूच पर हस्तलिखित ग्रन्यमें "पिरिको काजर' नामक किसी अवस्थित है। यह रामायणीत निषादराज्य की नातिका उल्लेख है। जिससे पहले किसी भी साहित्य- "शृङ्गवेर पुरी है), जौनपुरिया-जौनपुर, मगहिया में "काजर, जातिका नाम नहीं पाया। प्रस्तराबाद मगध, कच्वाइ-कच्छ और सुखसेन सरिया पौर मसन्दरान प्रदेशमें यह अधिक संख्यक रहते हैं। (रामायणोता "साहाय। काली नदीके तौर राजपूतों की भांति यह केवल युद्धव्यवसायो होते हैं। मैनपुरी और फरुखाबादके बीच पान भी इसका इसी जातिके सम्भूत धागा मुहम्मद खां १८९४ ई०० भग्नावशेष विद्यामान है) से निकला है। को प्रथम सम्राट हुये और प्रस्तराबादके निकट रहे। अनेक स्थलों में दहें कोरी पौर मुराई भी कहते (यह एक सामान्य सैनिकके पुत्र थे और किसी हैं। यह कृषिकम्ममें प्रति पटु होते और पति समय नादिर शाहको समासे निकाले गये थे) परिष्कार परिच्छन्न रूपसे उत्तमोत्तम अश्यादि फल नादिरके एक मसौजेने इन्हें वाल्यकालमें खोजा उत्पादन कर सकते हैं। बना डाला था। यह लोमी. और पराक्रम प्रिय थे। पागरा अञ्चलमें काछवाह काछियोंकी ही संख्या इनके पीछे इनके चांतुष्य न फतेह अली-(१८८८०) अधिक है। दायिणात्यमें यह, जाति यथेष्ट है। सम्राट बने। उन्हों के समय में रूस और पारस्यका -यह कुरमी जातिको सदृश पदवी में गण्य हैं। बम्बई युद्ध हुवा। करनेल मैकग्रिगरके मतसे तैमूर बाद- प्रदेशमें यह फलंमूल पौर तरकारी वेचते तो हैं, शाह ८०३ हिजरको काजर वहां ले गये थे। इनमें 'किन्तु साधारण लो!के लिये नहीं। देशसेवाके लिये जोकरीबास और प्रासोगावास दो श्रेणी और प्रत्येक यह मस्ये पर चीजीको बेचते फिरते हैं। दाक्षि श्रेयौमें वंश भेद हैं। जियाडोगलु नामक काजर- पात्यमें इनके बीच केवल मात्र.२ श्रेणियोंका भद भातीय एक वंश रूसी परमेनियाके गाजी प्रदेशमें जा है-बंदला और नरवरी। कर रहा है। अजदानल बंधीय १म तमाम शाहको राजपूतानेके धौलपुर प्रदेशमें ही काही नाति समय यह मा प्रदेश, पहुंचे थे। किन्तु बुखारवाले यथेष्ट देख पड़ती है। खां साहचके अधीन उनवाक वंशीयों ने उन्हें निकाला काज (वि.पु.) १ कार्थ, काम । र व्यवसाय, रोजगार। और पवशिष्ट अनेकोंको समूल विनष्ट कर डाला। ३ प्रयोजन, मतलव । ४ विवाह, भादौ । ५ छिद्रविशेष, कानरी (हिं. स्त्रोक) एक गायः इसकी आंखो बटन लगाने का छेद। 'किनारे काला काला घेरा रहता है। .